कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
राहुल गांधी कुछ ही हफ्तों में कांग्रेस पार्टी के प्रमुख बन जाएंगे और फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती देना उनके लिए कुछ आसान हो जाएगा. दरअसल, राहुल अब तक वोटरों को और अपनी पार्टी में भी कुछ लोगों को यह विश्वास दिलाने में नाकाम रहे हैं कि वह नेतृत्व के योग्य हैं. वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली करारी हार के बाद से प्रधानमंत्री राहुल को 'अयोग्य राजकुमार' की संज्ञा देते रहे हैं और पिछले दो-तीन सालों में राज्य विधानसभा चुनावों में भी मिली शिकस्त की वजह से वह बेहतरीन नेता के रूप में नहीं देखे जाते हैं. लेकिन अब अर्थव्यवस्था लड़खड़ाई हुई लग रही है, और कांग्रेस के नेताओं को लग रहा है कि प्रधानमंत्री के गृहराज्य गुजरात से शुरू होकर जल्द ही होने वाले कुछ राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजे उनकी पार्टी तथा उनके नेता को अगले लोकसभा चुनाव से पहले फायदा देंगे.
माना जा रहा है कि अपनी मां तथा कांग्रेस की मौजूदा अध्यक्ष सोनिया गांधी से पार्टी की कमान अपने हाथों में संभाल लेने से उन्हें मुद्दों पर बहस करने में मदद मिलेगी.राहुल गांधी के करीबी पार्टी नेता तथा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा, "आप कई बदलाव देखेंगे और हर बदलाव कांग्रेस की मान्यता की पुष्टि करेगा. सही समय आ गया है, जब प्रधानमंत्री के शासन करने के तरीके के खिलाफ जनता की नब्ज़ को पकड़ा जाए, और हम यह मौका नहीं चूकेंगे." कांग्रेस को भीतर से समझने वाले कुछ नेता कबूल करते हैं कि राहुल गांधी ने कई बार खुद ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनकी प्रतिबद्धता पर सवाल खड़े करने का मौका दिया है. नाम नहीं छापे जाने की शर्त पर पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, "राहुल गांधी के साथ अहम दिक्कत यह है कि वह कन्सिस्टेंट नहीं रहे हैं. वह कुछ ही रोड शो करते हैं, और बार-बार जल्दी-जल्दी ब्रेक लिया करते हैं, और यही अनकन्सिस्टेंसी है, जो बहुत बड़ा मुद्दा रही है."
यह भी पढ़ें: जीएसटी, यानी 'गब्बर सिंह टैक्स' वसूलने वाले कहते थे, 'न खाऊंगा, न खाने दूंगा' : गुजरात में गरजे राहुल गांधी
लेकिन अब पार्टी नेताओं का कहना है कि नौकरियां पैदा करने में नाकाम रहने के लिए राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री की आलोचना कर हाल ही में लय पकड़ ली है, और पार्टी ने कुछ उपचुनाव भी जीते हैं. अब राहुल प्रधानमंत्री का गढ़ माने जाने वाले गुजरात आ-जा रहे हैं, ताकि कांग्रेस कार्यकर्ताओं को जोश दिलाया जा सके, क्योंकि उन्होंने पिछले दो दशक से जीत का स्वाद नहीं चखा है. पार्टी की कुछ रैलियों से अनुपस्थित रहकर राहुल ने ट्रेड यूनियनों, डेरी कामगारों तथा छोटे व्यापारियों से मिलना बेहतर समझा, जो आमतौर पर प्रधानमंत्री का पॉवरबेस माने जाते हैं, लेकिन जीएसटी जैसे हालिया आर्थिक सुधारों से उन्हें नुकसान हुआ है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इसे भांप चुके हैं. पिछले ही सप्ताह उन्होंने भी अपने पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि नेहरू-गांधी परिवार "गुजरात को बर्बाद कर देगा."
उधर, बीजेपी प्रमुख अमित शाह ने हाल ही में उत्तर प्रदेश में गांधी परिवार के गढ़ और राहुल गांधी के संसदीय क्षेत्र अमेठी का दौरा किया और सोनिया गांधी के इतालवी मूल पर तंज सकते हुए कहा कि राहुल गांधी को अपने 'इटैलियन गॉगल्स' उतारकर 'गुजराती चश्मा' लगा लेना चाहिए, ताकि उन्हें वह आर्थिक विकास नज़र आ सके, जो बीजेपी ने इस क्षेत्र में किया. जैन यूनिवर्सिटी में राजनैतिक विद्वान तथा कांग्रेस विशेषज्ञ संदीप शास्त्री का कहना है, "BJP चाहेगी कि यह व्यक्तित्वों के बीच जंग बनकर रह जाए, और कांग्रेस को इसे दो अलग-अलग सोच और विचारधाराओं की जंग बनाना होगा." मीडिया से कभी-कभार ही बात करने वाले राहुल गांधी ने समाचार एजेंसी रॉयटर को कोई इंटरव्यू देने से इंकार कर दिया. गौरतलब है कि राहुल गांधी के पिता, दादी और परदादा सभी प्रधानमंत्री रहे हैं, लेकिन आलोचक उन्हें ऐसा राजनेता बताते रहे हैं, जिन्हें बने रहने के लिए परिवार के नाम के सहारे की ज़रूरत है.
यह भी पढ़ें: गुजरात में खरीद-फरोख्त मामले पर राहुल गांधी बोले- गुजरात अनमोल, उसे कभी खरीदा नहीं जा सकता
कांग्रेस को भीतर से समझने वाले नेता स्वीकार करते हैं कि पार्टी संभवतः दिसंबर में होने वाले गुजरात चुनाव में जीत हासिल नहीं कर पाएगी, लेकिन उनका कहना है कि बीजेपी के बहुमत में कुछ सेंध लगा पाने से भी यह मजबूत संकेत जाएंगे कि राहुल गांधी में 'बेहद लोकप्रिय' प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सामना करने की कूवत है. राहुल गांधी ने नई दिल्ली में एक नई सोशल मीडिया टीम का गठन किया है, जो उनकी चवि पर काम करेगी, और पदाधिकारियों का कहना है कि वह क्षेत्रीय पार्टियों से भी बेहतर ताल्लुकात बना रहे हैं, जो इस देश की राजनीति में अहम भूमिका अदा करती हैं. गुजरात के एक हालिया दौरे में राहुल गांधी ने राज्य में शक्तिशाली व्यापारी समुदाय से मुलाकातें कीं, जो GST से परेशान है. राहुल के काफी करीबी एक नेता ने नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर कहा, "हमें गुजरात चुनाव से पहले उन्हें (राहुल गांधी को) पार्टी के चेहरे के रूप में पेश करना होगा."
VIDEO: गांधीनगर रैली में राहुल गांधी ने पीएम मोदी पर जमकर साधा निशाना
उधर, बीजेपी नेताओं का कहना है कि उन्हें इससे कोई दिक्कत महसूस नहीं हो रही है, क्योंकि राहुल गांधी का रुख और असर अपने आप कुंद हो जाएगा, जब अर्थव्यवस्था रफ्तार पकड़ेगी. बीजेपी प्रवक्ता नलिन कोहली ने कहा, "उनकी पहचान का आधार क्या है? सिर्फ दो महीने प्रचार कर लेने से वह सक्रिय राजनेता नहीं बन सकते."
(इनपुट रॉयटर से)
माना जा रहा है कि अपनी मां तथा कांग्रेस की मौजूदा अध्यक्ष सोनिया गांधी से पार्टी की कमान अपने हाथों में संभाल लेने से उन्हें मुद्दों पर बहस करने में मदद मिलेगी.राहुल गांधी के करीबी पार्टी नेता तथा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा, "आप कई बदलाव देखेंगे और हर बदलाव कांग्रेस की मान्यता की पुष्टि करेगा. सही समय आ गया है, जब प्रधानमंत्री के शासन करने के तरीके के खिलाफ जनता की नब्ज़ को पकड़ा जाए, और हम यह मौका नहीं चूकेंगे." कांग्रेस को भीतर से समझने वाले कुछ नेता कबूल करते हैं कि राहुल गांधी ने कई बार खुद ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनकी प्रतिबद्धता पर सवाल खड़े करने का मौका दिया है. नाम नहीं छापे जाने की शर्त पर पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, "राहुल गांधी के साथ अहम दिक्कत यह है कि वह कन्सिस्टेंट नहीं रहे हैं. वह कुछ ही रोड शो करते हैं, और बार-बार जल्दी-जल्दी ब्रेक लिया करते हैं, और यही अनकन्सिस्टेंसी है, जो बहुत बड़ा मुद्दा रही है."
यह भी पढ़ें: जीएसटी, यानी 'गब्बर सिंह टैक्स' वसूलने वाले कहते थे, 'न खाऊंगा, न खाने दूंगा' : गुजरात में गरजे राहुल गांधी
लेकिन अब पार्टी नेताओं का कहना है कि नौकरियां पैदा करने में नाकाम रहने के लिए राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री की आलोचना कर हाल ही में लय पकड़ ली है, और पार्टी ने कुछ उपचुनाव भी जीते हैं. अब राहुल प्रधानमंत्री का गढ़ माने जाने वाले गुजरात आ-जा रहे हैं, ताकि कांग्रेस कार्यकर्ताओं को जोश दिलाया जा सके, क्योंकि उन्होंने पिछले दो दशक से जीत का स्वाद नहीं चखा है. पार्टी की कुछ रैलियों से अनुपस्थित रहकर राहुल ने ट्रेड यूनियनों, डेरी कामगारों तथा छोटे व्यापारियों से मिलना बेहतर समझा, जो आमतौर पर प्रधानमंत्री का पॉवरबेस माने जाते हैं, लेकिन जीएसटी जैसे हालिया आर्थिक सुधारों से उन्हें नुकसान हुआ है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इसे भांप चुके हैं. पिछले ही सप्ताह उन्होंने भी अपने पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि नेहरू-गांधी परिवार "गुजरात को बर्बाद कर देगा."
उधर, बीजेपी प्रमुख अमित शाह ने हाल ही में उत्तर प्रदेश में गांधी परिवार के गढ़ और राहुल गांधी के संसदीय क्षेत्र अमेठी का दौरा किया और सोनिया गांधी के इतालवी मूल पर तंज सकते हुए कहा कि राहुल गांधी को अपने 'इटैलियन गॉगल्स' उतारकर 'गुजराती चश्मा' लगा लेना चाहिए, ताकि उन्हें वह आर्थिक विकास नज़र आ सके, जो बीजेपी ने इस क्षेत्र में किया. जैन यूनिवर्सिटी में राजनैतिक विद्वान तथा कांग्रेस विशेषज्ञ संदीप शास्त्री का कहना है, "BJP चाहेगी कि यह व्यक्तित्वों के बीच जंग बनकर रह जाए, और कांग्रेस को इसे दो अलग-अलग सोच और विचारधाराओं की जंग बनाना होगा." मीडिया से कभी-कभार ही बात करने वाले राहुल गांधी ने समाचार एजेंसी रॉयटर को कोई इंटरव्यू देने से इंकार कर दिया. गौरतलब है कि राहुल गांधी के पिता, दादी और परदादा सभी प्रधानमंत्री रहे हैं, लेकिन आलोचक उन्हें ऐसा राजनेता बताते रहे हैं, जिन्हें बने रहने के लिए परिवार के नाम के सहारे की ज़रूरत है.
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कांग्रेस को भीतर से समझने वाले नेता स्वीकार करते हैं कि पार्टी संभवतः दिसंबर में होने वाले गुजरात चुनाव में जीत हासिल नहीं कर पाएगी, लेकिन उनका कहना है कि बीजेपी के बहुमत में कुछ सेंध लगा पाने से भी यह मजबूत संकेत जाएंगे कि राहुल गांधी में 'बेहद लोकप्रिय' प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सामना करने की कूवत है. राहुल गांधी ने नई दिल्ली में एक नई सोशल मीडिया टीम का गठन किया है, जो उनकी चवि पर काम करेगी, और पदाधिकारियों का कहना है कि वह क्षेत्रीय पार्टियों से भी बेहतर ताल्लुकात बना रहे हैं, जो इस देश की राजनीति में अहम भूमिका अदा करती हैं. गुजरात के एक हालिया दौरे में राहुल गांधी ने राज्य में शक्तिशाली व्यापारी समुदाय से मुलाकातें कीं, जो GST से परेशान है. राहुल के काफी करीबी एक नेता ने नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर कहा, "हमें गुजरात चुनाव से पहले उन्हें (राहुल गांधी को) पार्टी के चेहरे के रूप में पेश करना होगा."
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उधर, बीजेपी नेताओं का कहना है कि उन्हें इससे कोई दिक्कत महसूस नहीं हो रही है, क्योंकि राहुल गांधी का रुख और असर अपने आप कुंद हो जाएगा, जब अर्थव्यवस्था रफ्तार पकड़ेगी. बीजेपी प्रवक्ता नलिन कोहली ने कहा, "उनकी पहचान का आधार क्या है? सिर्फ दो महीने प्रचार कर लेने से वह सक्रिय राजनेता नहीं बन सकते."
(इनपुट रॉयटर से)
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