सुकमा में नक्सलियों द्वारा घात लगाकर किए गए हमले में सीआरपीएफ के 25 जवान शहीद हो गए
नई दिल्ली:
नक्सलवादियों ने इस साल का सबसे बड़ा हमला किया है और अब ये सवाल उठ रहा है कि क्या नक्सलवाद से प्रभावित इस इलाके में सुरक्षा बलों से कोई चूक हुई, जिससे नक्सली इतना बड़ा हमला करने में सफल रहे. क्या जंगल में सड़क निर्माण पार्टी को सुरक्षा देने गए जवान खुद अपनी सुरक्षा के लिए बने स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (एसओपी) में चूक तो नहीं कर बैठे.
सुकमा जिले के चिंता गुफा कैंप से कुछ ही दूरी पर हुए इस हमले के बारे में गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सोमवार शाम को जानकारी दी. छत्तीसगढ़ से जो खबर आ रही है उसके मुताबिक जवानों का दल खाना खाने के लिये रुके तो नक्सलियों ने उन पर घात लगाकर हमला किया. सवाल ये है कि ऐसे किसी भी विश्राम के लिये जगह का चुनाव काफी सूझबूझ से किया जाता है और कुछ जवानों को पहरे पर लगाया जाता है. क्या इस एसओपी नियम का पालन हुआ.
जंगल के इलाके में जहां नक्सलियों के मुखबिरों का घना नेटवर्क हो, वहां जवानों ने क्या एक ही वक्त में कैंप से निकलने और फिर लौटने की गलती तो नहीं दोहराई. अक्सर इन जगहों में जवानों को अपनी मूवमेंट को काफी गुप्त रखना पड़ता है और उसमें बार-बार बदलाव करना पड़ता है. गौरतलब है कि माओवादियों ने ये हमला करीब करीब उसी जगह किया है, जहां 2010 में सीआरपीएफ के 76 जवान मारे गए थे.
ये सवाल इसलिये भी उठ रहे हैं क्योंकि पिछली 11 मार्च को जवान सुकमा के ही भेज्जी इलाके में हमला कर 12 जवानों को मार दिया था. यहां सीआरपीएफ की तैनाती को लेकर पिछले कुछ वक्त में चिंताएं बढ़ी हैं. पिछले 4 महीने से सीआरपीएफ के नियमित डीजी नहीं हैं. पिछले डीजी दुर्गादास के बाद नए डीजी की नियुक्ति अभी तक नहीं हुई है. अहम बात यह है कि नक्सलियों ने हमला ऐसे वक्त किया है, जब सरकार दावा कर रही थी कि बस्तर में नक्सलवादियों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया गया है.
सुकमा जिले के चिंता गुफा कैंप से कुछ ही दूरी पर हुए इस हमले के बारे में गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सोमवार शाम को जानकारी दी. छत्तीसगढ़ से जो खबर आ रही है उसके मुताबिक जवानों का दल खाना खाने के लिये रुके तो नक्सलियों ने उन पर घात लगाकर हमला किया. सवाल ये है कि ऐसे किसी भी विश्राम के लिये जगह का चुनाव काफी सूझबूझ से किया जाता है और कुछ जवानों को पहरे पर लगाया जाता है. क्या इस एसओपी नियम का पालन हुआ.
जंगल के इलाके में जहां नक्सलियों के मुखबिरों का घना नेटवर्क हो, वहां जवानों ने क्या एक ही वक्त में कैंप से निकलने और फिर लौटने की गलती तो नहीं दोहराई. अक्सर इन जगहों में जवानों को अपनी मूवमेंट को काफी गुप्त रखना पड़ता है और उसमें बार-बार बदलाव करना पड़ता है. गौरतलब है कि माओवादियों ने ये हमला करीब करीब उसी जगह किया है, जहां 2010 में सीआरपीएफ के 76 जवान मारे गए थे.
ये सवाल इसलिये भी उठ रहे हैं क्योंकि पिछली 11 मार्च को जवान सुकमा के ही भेज्जी इलाके में हमला कर 12 जवानों को मार दिया था. यहां सीआरपीएफ की तैनाती को लेकर पिछले कुछ वक्त में चिंताएं बढ़ी हैं. पिछले 4 महीने से सीआरपीएफ के नियमित डीजी नहीं हैं. पिछले डीजी दुर्गादास के बाद नए डीजी की नियुक्ति अभी तक नहीं हुई है. अहम बात यह है कि नक्सलियों ने हमला ऐसे वक्त किया है, जब सरकार दावा कर रही थी कि बस्तर में नक्सलवादियों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया गया है.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं