नई दिल्ली:
आधी रात हो चुकी थी, तभी नौसेना मुख्यालय पर तैनात वरिष्ठ नौसेनाधिकारी का फोन बजा... कॉल करने वाले की आवाज़ आई, "'द ऑस्ट्रेलियन' ने एक ख़बर छापी है, जिसमें उसने दावा किया है कि उसके पास प्रोजेक्ट 75 (पनडुब्बी प्रोजेक्ट का आधिकारिक नाम) की डिटेल्स लीक हो गई हैं..."
कुछ ही मिनट बाद जब यह ख़बर फोन पर सुना दी गई, नौसेना प्रमुख एडमिरल सुनील लाम्बा को सूचना दे दी गई.
रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने, जिन्हें इसकी जानकारी उसी समय दूसरे माध्यमों से दे दी गई थी, तुरंत नौसेना से डैमेज एसेसमेंट (नुकसान का आकलन) करने और यह पता लगने के लिए कहा कि लीक कहां से हुआ हो सकता है.
फिर सुबह होने पर पर्रिकर ने पत्रकारों को बताया, "हमें कल रात इसके बारे में पता चला..." लेकिन जो उन्होंने पत्रकारों को नहीं बताया, वह था रातभर मची रही हलचल...
और फिर एक ही घंटे के भीतर प्रोजेक्ट 75 पर निगरानी रखने वाले दक्षिणी दिल्ली वाले ऑफिस में सभी पहुंचे हुए थे... कुछ अधिकारी स्कॉर्पीन पनडुब्बी से जुड़े ओरिजिनल दस्तावेज़ को उस रिपोर्ट के दस्तावेज़ों से मिलाकर देख रहे हैं, जो 'द ऑस्ट्रेलियन' में छपी है... कुछ अन्य अधिकारी इस बात की जांच कर रहे हैं कि किस-किस अधिकारी की पहुंच इन दस्तावेज़ों तक थी, और दस्तावेज़ कहां-कहां पहुंचे थे, ताकि पता लगाया जा सके कि लीक कहां और कैसे हुआ...
ठीक उसी वक्त, देशभर में अलग-अलग स्थानों पर तैनात भारतीय नौसेना के साइबर विशेषज्ञ, जिन्हें बेहतरीन में शुमार किया जाता है, दोहरे काम में जुटे थे... वे भारत में कम्प्यूटरों से लीक की जड़ का पता लगाने की कोशिश भी कर रहे थे, और साथ ही यह भी जानने की कोशिश कर रहे थे कि समाचारपत्र को दस्तावेज़ किस तरह पहुंचे हो सकते हैं... उधर, मुंबई में उस मझगांव डॉक पर भी यही कवायद जारी थी, जहां इन पनडुब्बियों का निर्माण किया जा रहा है...
रातभर इसी तरह जांच चलती रही... सुबह होने के बाद ही अधिकारियों को घर जाकर नहाने-धोने और तैयार होने की इजाज़त दी गई, और एक ही घंटे में सभी दोबारा काम पर लौट आए...
छोटी और तथ्यपरक शुरुआती जांच रिपोर्ट रक्षामंत्री के सामने पेश की गई, जो सुबह चार बजे तक एक समारोह में शिरकत करने के बावजूद 10 बजे से पहले अपने ऑफिस में पहुंचे हुए थे...
दोपहर तक प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी, जो देश में सुरक्षा मामलों को लेकर फैसले करने वाली सबसे बड़ी इकाई है, की बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा होने की संभावना थी...
जैसे ही वह बैठक के लिए रवाना हुए, मनोहर पर्रिकर ने नौसेना से इस घटना को लेकर आधिकारिक सूचना जारी करने के लिए कहा, जिसमें बताया गया कि दस्तावेज़ भारत से लीक नहीं हुए हैं... रातभर जागकर काम करते रहे साइबर विशेषज्ञों ने मंत्रालय को बताया कि लीक हुए दस्तावेज़ का साइबर ट्रेल भारत से शुरू नहीं हुआ था...
जैसे ही वह बैठक से लौटे, नौसेना प्रमुख ने मनोहर पर्रिकर को फिर मामले की ताजा जानकारी दी. यह ब्रीफिंग पहले से ज़्यादा जानकारीयुक्त थी, और लीक से हो सकने वाले संभावित नुकसान पर भी इसमें चर्चा की गई... नौसेना का निष्कर्ष वही रहा, जो शुरुआती आकलन के समय मंत्रालय को बताया गया था...
रक्षामंत्री को बताया गया कि भारत ने यह सौदा मैसर्स अरामिस के साथ किया था, डीसीएनएस के साथ नहीं, लेकिन बाद में डीसीएनएस ने अरामिस को खरीद लिया... लीक हुए दस्तावेज़ बताते हैं कि वे डीसीएनएस से निकले... मनोहर पर्रिकर को यह भी बताया गया कि लीक हुए दस्तावेज़ों में दी गई जानकारी अलग है...
इस मामले से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने NDTV को बताया, "(पनडुब्बी का) बेसिक आकार और ढांचा, जैसे ऊंचाई वगैरह वही हैं, लेकिन हमारी ज़रूरतों के हिसाब से इसमें काफी बदलाव किए गए थे... आसान शब्दों में कहें, तो कम्प्यूटर प्रोग्राम विन्डोज़ में बेसिक समानताएं होती हैं, लेकिन 2007 और 2010 के विन्डोज़ में काफी अंतर है..."
देर शाम तक मनोहर पर्रिकर और नौसेना के बीच फिर बैठक हो रही थी... नौसेना ने फिर कहा कि सभी तरफ से यही संकेत मिलता है कि लीक विदेश में ही हुआ, और यदि कोई नुकसान हो रहा है, तो वह बेहद मामूली है... रक्षामंत्री ने नौसेना से फ्रांसीसी निर्माता डीसीएनएस को खत भेजने के लिए कहा, जिसमें उनसे लीक का पता लगाने और भारत को उसकी सूचना देने के लिए कहा जाए...
कुछ ही मिनट बाद जब यह ख़बर फोन पर सुना दी गई, नौसेना प्रमुख एडमिरल सुनील लाम्बा को सूचना दे दी गई.
रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने, जिन्हें इसकी जानकारी उसी समय दूसरे माध्यमों से दे दी गई थी, तुरंत नौसेना से डैमेज एसेसमेंट (नुकसान का आकलन) करने और यह पता लगने के लिए कहा कि लीक कहां से हुआ हो सकता है.
फिर सुबह होने पर पर्रिकर ने पत्रकारों को बताया, "हमें कल रात इसके बारे में पता चला..." लेकिन जो उन्होंने पत्रकारों को नहीं बताया, वह था रातभर मची रही हलचल...
और फिर एक ही घंटे के भीतर प्रोजेक्ट 75 पर निगरानी रखने वाले दक्षिणी दिल्ली वाले ऑफिस में सभी पहुंचे हुए थे... कुछ अधिकारी स्कॉर्पीन पनडुब्बी से जुड़े ओरिजिनल दस्तावेज़ को उस रिपोर्ट के दस्तावेज़ों से मिलाकर देख रहे हैं, जो 'द ऑस्ट्रेलियन' में छपी है... कुछ अन्य अधिकारी इस बात की जांच कर रहे हैं कि किस-किस अधिकारी की पहुंच इन दस्तावेज़ों तक थी, और दस्तावेज़ कहां-कहां पहुंचे थे, ताकि पता लगाया जा सके कि लीक कहां और कैसे हुआ...
ठीक उसी वक्त, देशभर में अलग-अलग स्थानों पर तैनात भारतीय नौसेना के साइबर विशेषज्ञ, जिन्हें बेहतरीन में शुमार किया जाता है, दोहरे काम में जुटे थे... वे भारत में कम्प्यूटरों से लीक की जड़ का पता लगाने की कोशिश भी कर रहे थे, और साथ ही यह भी जानने की कोशिश कर रहे थे कि समाचारपत्र को दस्तावेज़ किस तरह पहुंचे हो सकते हैं... उधर, मुंबई में उस मझगांव डॉक पर भी यही कवायद जारी थी, जहां इन पनडुब्बियों का निर्माण किया जा रहा है...
रातभर इसी तरह जांच चलती रही... सुबह होने के बाद ही अधिकारियों को घर जाकर नहाने-धोने और तैयार होने की इजाज़त दी गई, और एक ही घंटे में सभी दोबारा काम पर लौट आए...
छोटी और तथ्यपरक शुरुआती जांच रिपोर्ट रक्षामंत्री के सामने पेश की गई, जो सुबह चार बजे तक एक समारोह में शिरकत करने के बावजूद 10 बजे से पहले अपने ऑफिस में पहुंचे हुए थे...
दोपहर तक प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी, जो देश में सुरक्षा मामलों को लेकर फैसले करने वाली सबसे बड़ी इकाई है, की बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा होने की संभावना थी...
जैसे ही वह बैठक के लिए रवाना हुए, मनोहर पर्रिकर ने नौसेना से इस घटना को लेकर आधिकारिक सूचना जारी करने के लिए कहा, जिसमें बताया गया कि दस्तावेज़ भारत से लीक नहीं हुए हैं... रातभर जागकर काम करते रहे साइबर विशेषज्ञों ने मंत्रालय को बताया कि लीक हुए दस्तावेज़ का साइबर ट्रेल भारत से शुरू नहीं हुआ था...
जैसे ही वह बैठक से लौटे, नौसेना प्रमुख ने मनोहर पर्रिकर को फिर मामले की ताजा जानकारी दी. यह ब्रीफिंग पहले से ज़्यादा जानकारीयुक्त थी, और लीक से हो सकने वाले संभावित नुकसान पर भी इसमें चर्चा की गई... नौसेना का निष्कर्ष वही रहा, जो शुरुआती आकलन के समय मंत्रालय को बताया गया था...
रक्षामंत्री को बताया गया कि भारत ने यह सौदा मैसर्स अरामिस के साथ किया था, डीसीएनएस के साथ नहीं, लेकिन बाद में डीसीएनएस ने अरामिस को खरीद लिया... लीक हुए दस्तावेज़ बताते हैं कि वे डीसीएनएस से निकले... मनोहर पर्रिकर को यह भी बताया गया कि लीक हुए दस्तावेज़ों में दी गई जानकारी अलग है...
इस मामले से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने NDTV को बताया, "(पनडुब्बी का) बेसिक आकार और ढांचा, जैसे ऊंचाई वगैरह वही हैं, लेकिन हमारी ज़रूरतों के हिसाब से इसमें काफी बदलाव किए गए थे... आसान शब्दों में कहें, तो कम्प्यूटर प्रोग्राम विन्डोज़ में बेसिक समानताएं होती हैं, लेकिन 2007 और 2010 के विन्डोज़ में काफी अंतर है..."
देर शाम तक मनोहर पर्रिकर और नौसेना के बीच फिर बैठक हो रही थी... नौसेना ने फिर कहा कि सभी तरफ से यही संकेत मिलता है कि लीक विदेश में ही हुआ, और यदि कोई नुकसान हो रहा है, तो वह बेहद मामूली है... रक्षामंत्री ने नौसेना से फ्रांसीसी निर्माता डीसीएनएस को खत भेजने के लिए कहा, जिसमें उनसे लीक का पता लगाने और भारत को उसकी सूचना देने के लिए कहा जाए...
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