नई दिल्ली:
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने सोमवार को यह खुलासा किया कि अपनी उम्मीदवारी की घोषणा के बाद संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी ने उन्हें फोन तो किया था लेकिन उन्होंने उनसे समर्थन नहीं मांगा।
आडवाणी ने अपने ब्लॉग पर लिखा, "प्रणब की उम्मीदवारी की घोषणा के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने फोन किया और इसकी जानकारी दी। इसके कुछ ही देर बाद खुद मुखर्जी का फोन आया।"
उन्होंने कहा, "मुखर्जी ने यह सूचना दी कि उन्हें राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में नामित किया गया है लेकिन उन्होंने समर्थन देने की मांग नहीं की। उन्होंने उन दिनों की याद दिलाई कैसे हम 1970 से संसद में साथ रहें और एक दूसरे का स्नेह और प्यार हासिल किया।"
मुखर्जी ने आडवाणी को उस घटना की भी याद दिलाई जब आडवाणी ने राज्यसभा से विदाई लेने के दिन प्रणब को साथ-साथ दोपहर का भोजन करने के लिए जोर दिया।
आडवाणी ने कहा, "मुझे याद है कि हमारे रिश्ते कितने मधुर और सौहार्दपूर्ण रहे हैं। ये रिश्ते एक दिन के नहीं बल्कि कई वर्षों के हैं।"
आडवाणी ने राष्ट्रपपति चुनाव के लिए आम सहमति न बनाने के लिए लगाए जा रहे आरोपों का भी जवाब दिया। उन्होंने कहा कि राजनीतिक हलकों में यह फैशन बन गया है कि राष्ट्रपति चुनाव सर्वसम्मति से होना चाहिए और यह सवाल हम पर उछाल दिया जाता है। उन्होंने कहा, "इस सवाल का जवाब पूरी तरह सत्ताधारी दल के व्यवहार पर करता है।"
आडवाणी ने अपने ब्लॉग पर लिखा, "प्रणब की उम्मीदवारी की घोषणा के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने फोन किया और इसकी जानकारी दी। इसके कुछ ही देर बाद खुद मुखर्जी का फोन आया।"
उन्होंने कहा, "मुखर्जी ने यह सूचना दी कि उन्हें राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में नामित किया गया है लेकिन उन्होंने समर्थन देने की मांग नहीं की। उन्होंने उन दिनों की याद दिलाई कैसे हम 1970 से संसद में साथ रहें और एक दूसरे का स्नेह और प्यार हासिल किया।"
मुखर्जी ने आडवाणी को उस घटना की भी याद दिलाई जब आडवाणी ने राज्यसभा से विदाई लेने के दिन प्रणब को साथ-साथ दोपहर का भोजन करने के लिए जोर दिया।
आडवाणी ने कहा, "मुझे याद है कि हमारे रिश्ते कितने मधुर और सौहार्दपूर्ण रहे हैं। ये रिश्ते एक दिन के नहीं बल्कि कई वर्षों के हैं।"
आडवाणी ने राष्ट्रपपति चुनाव के लिए आम सहमति न बनाने के लिए लगाए जा रहे आरोपों का भी जवाब दिया। उन्होंने कहा कि राजनीतिक हलकों में यह फैशन बन गया है कि राष्ट्रपति चुनाव सर्वसम्मति से होना चाहिए और यह सवाल हम पर उछाल दिया जाता है। उन्होंने कहा, "इस सवाल का जवाब पूरी तरह सत्ताधारी दल के व्यवहार पर करता है।"
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