पूर्व में मुलाकात करते अटल बिहारी वाजपेयी और नवाज शरीफ (इनसेट में दिलीप कुमार)
लाहौर:
करगिल संघर्ष शुरू होने के बाद भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने तबके समकक्ष नवाज शरीफ से शिकायत की थी कि उनके साथ उचित व्यवहार नहीं किया गया। उन्होंने इस मामले पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की भारतीय सिनेमा के दिग्गज अभिनेता दिलीप कुमार से भी बात कराई थी जिन्होंने शरीफ से स्थिति पर नियंत्रण करने के अपील की। यह बात एक नई पुस्तक में बताई गई है।
पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री खुर्शीद कसूरी ने इस दिलचस्प किस्से का जिक्र किया जिसके बारे में मई 1999 में करगिल युद्ध के दौरान प्रधानमंत्री शरीफ के पूर्व प्रधान सचिव सईद मेहदी ने उन्हें बताया था।
कसूरी ने कहा, 'सईद के अनुसार, वह एक दिन प्रधानमंत्री शरीफ के साथ बैठे हुए थे। तभी टेलीफोन की घंटी बजी और एडीसी ने प्रधानमंत्री को बताया कि भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी उनसे तत्काल बात करना चाहते हैं।'
कसूरी ने अपनी पुस्तक 'नीदर ए हॉक नॉर ए डोव' में लिखा कि इस बातचीत के दौरान वाजपेयी ने शिकायत की कि लाहौर आमंत्रित करने के बाद शरीफ ने उनके साथ उचित व्यवहार नहीं किया।
वाजपेयी की इस बात पर शरीफ हैरान दिखाई दे रहे थे। वाजपेयी ने शिकायत की कि लाहौर में एक तरफ उनका इतना गर्मजोशी से स्वागत किया जा रहा था, और दूसरी तरफ पाकिस्तान ने करगिल पर कब्जा करने में कोई देर नहीं लगाई।
कसूरी ने अपनी पुस्तक में लिखा कि शरीफ ने कहा कि वाजपेयी उनसे जो कुछ भी कह रहे हैं, उन्हें उसके बारे में कुछ भी पता नहीं है। उन्होंने आर्मी स्टाफ प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ से बात करने के बाद उनसे दोबारा बात करने का वादा किया। बातचीत समाप्त होने से पूर्व वाजपेयी ने शरीफ से कहा कि वह अपने समीप बैठे एक व्यक्ति से इस बारे में उनकी बात कराना चाहते हैं।
उन्होंने लिखा कि शरीफ, दिलीप कुमार की आवाज सुनकर बहुत हैरान हुए। दिलीप कुमार ने कहा, 'मियां साहिब, आपने हमेशा पाकिस्तान और भारत के बीच अमन के बड़े समर्थक होने का दावा किया है इसलिए हम आपसे इसकी उम्मीद नहीं करते।'
पाकिस्तान के सर्वोच्च नागरिक सम्मान निशान-ए-इम्तियाज से नवाजे गए दिलीप ने शरीफ से कहा, 'मैं एक भारतीय मुसलमान के तौर पर आपको बताना चाहता हूं कि पाकिस्तान और भारत के बीच तनाव की स्थिति में भारतीय मुस्लिम बहुत असुरक्षित हो जाते हैं और उन्हें अपने घरों से भी बाहर निकलना मुश्किल लगता है। इसलिए हालात को काबू रखने में बराय मेहरबानी कुछ कीजिए।'
कसूरी को लगता है कि दिलीप कुमार यह बताने में कामयाब रहे कि 'अगर भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव के दौरान दिलीप कुमार जैसे महान आइकन को एक भारतीय मुसलमान के तौर पर असुरक्षा महसूस होती है', तो यह कल्पना करना मुश्किल नहीं होगा कि दोनों देशों के बीच तनाव की स्थिति में आम मुस्लिमों को किन मुश्किलों का सामना करना पड़ता होगा।
पूर्व विदेश मंत्री ने कहा कि उन्होंने प्रत्यक्ष रूप से यह देखा है कि दोनों देशों के बीच अर्थपूर्ण शांति प्रक्रिया संभव है और इस प्रकार की प्रक्रिया उनके बीच संबंधों के परिप्रेक्ष्य को किस प्रकार तेजी से बदल सकती है।
उन्होंने निष्कर्ष निकालते हुए कहा कि दोनों देशों के बीच शांति प्रक्रिया संभव है और इसका दोनों देशों में अल्पसंख्यकों की स्थिति पर बहुत सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री खुर्शीद कसूरी ने इस दिलचस्प किस्से का जिक्र किया जिसके बारे में मई 1999 में करगिल युद्ध के दौरान प्रधानमंत्री शरीफ के पूर्व प्रधान सचिव सईद मेहदी ने उन्हें बताया था।
कसूरी ने कहा, 'सईद के अनुसार, वह एक दिन प्रधानमंत्री शरीफ के साथ बैठे हुए थे। तभी टेलीफोन की घंटी बजी और एडीसी ने प्रधानमंत्री को बताया कि भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी उनसे तत्काल बात करना चाहते हैं।'
कसूरी ने अपनी पुस्तक 'नीदर ए हॉक नॉर ए डोव' में लिखा कि इस बातचीत के दौरान वाजपेयी ने शिकायत की कि लाहौर आमंत्रित करने के बाद शरीफ ने उनके साथ उचित व्यवहार नहीं किया।
वाजपेयी की इस बात पर शरीफ हैरान दिखाई दे रहे थे। वाजपेयी ने शिकायत की कि लाहौर में एक तरफ उनका इतना गर्मजोशी से स्वागत किया जा रहा था, और दूसरी तरफ पाकिस्तान ने करगिल पर कब्जा करने में कोई देर नहीं लगाई।
कसूरी ने अपनी पुस्तक में लिखा कि शरीफ ने कहा कि वाजपेयी उनसे जो कुछ भी कह रहे हैं, उन्हें उसके बारे में कुछ भी पता नहीं है। उन्होंने आर्मी स्टाफ प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ से बात करने के बाद उनसे दोबारा बात करने का वादा किया। बातचीत समाप्त होने से पूर्व वाजपेयी ने शरीफ से कहा कि वह अपने समीप बैठे एक व्यक्ति से इस बारे में उनकी बात कराना चाहते हैं।
उन्होंने लिखा कि शरीफ, दिलीप कुमार की आवाज सुनकर बहुत हैरान हुए। दिलीप कुमार ने कहा, 'मियां साहिब, आपने हमेशा पाकिस्तान और भारत के बीच अमन के बड़े समर्थक होने का दावा किया है इसलिए हम आपसे इसकी उम्मीद नहीं करते।'
पाकिस्तान के सर्वोच्च नागरिक सम्मान निशान-ए-इम्तियाज से नवाजे गए दिलीप ने शरीफ से कहा, 'मैं एक भारतीय मुसलमान के तौर पर आपको बताना चाहता हूं कि पाकिस्तान और भारत के बीच तनाव की स्थिति में भारतीय मुस्लिम बहुत असुरक्षित हो जाते हैं और उन्हें अपने घरों से भी बाहर निकलना मुश्किल लगता है। इसलिए हालात को काबू रखने में बराय मेहरबानी कुछ कीजिए।'
कसूरी को लगता है कि दिलीप कुमार यह बताने में कामयाब रहे कि 'अगर भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव के दौरान दिलीप कुमार जैसे महान आइकन को एक भारतीय मुसलमान के तौर पर असुरक्षा महसूस होती है', तो यह कल्पना करना मुश्किल नहीं होगा कि दोनों देशों के बीच तनाव की स्थिति में आम मुस्लिमों को किन मुश्किलों का सामना करना पड़ता होगा।
पूर्व विदेश मंत्री ने कहा कि उन्होंने प्रत्यक्ष रूप से यह देखा है कि दोनों देशों के बीच अर्थपूर्ण शांति प्रक्रिया संभव है और इस प्रकार की प्रक्रिया उनके बीच संबंधों के परिप्रेक्ष्य को किस प्रकार तेजी से बदल सकती है।
उन्होंने निष्कर्ष निकालते हुए कहा कि दोनों देशों के बीच शांति प्रक्रिया संभव है और इसका दोनों देशों में अल्पसंख्यकों की स्थिति पर बहुत सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
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