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This Article is From Jun 18, 2016

संसदीय सचिवों की नियुक्ति : दिल्ली सरकार ने अपने कानून विभाग की राय मानी होती तो...

संसदीय सचिवों की नियुक्ति : दिल्ली सरकार ने अपने कानून विभाग की राय मानी होती तो...
नई दिल्ली: संसदीय सचिवों को नियुक्ति के बारे में अगर दिल्ली सरकार अपने ही कानून विभाग की राय मान लेती तो शायद विधायकों के निलंबन की तलवार न लटकती। पिछले साल जब 21 विधायकों को संसदीय सचिव बनाने का प्रस्ताव तैयार हो रहा था तभी दिल्ली सरकार के कानून विभाग के सचिव आर किरन नाथ ने एक सलाह दी थी। उन्होंने ट्रांज़ैक्शन आफ बिजनेस के नियम 55 का हवाला देकर राय दी थी कि पहले इस प्रस्ताव को उपराज्यपाल के जरिए केंद्र से मंजूरी ली जाए। फिर इसे दिल्ली विधानसभा में पास करके संसदीय सचिवों को तैनात किया जाए ताकि बाद में यह लाभ के पद का मामला न बनने पाए। लेकिन उस वक्त के तत्कालीन कानून मंत्री कपिल मिश्रा ने इस राय को दरकिनार कर दिया था। बिना केंद्र सरकार की मंजूरी लिए ही दिल्ली सरकार ने इस प्रस्ताव को विधानसभा से पास करके संसदीय सचिवों की नियुक्ति कर दी थी।

पहले भी हुई है संसदीय सचिवों की नियुक्ति
हालांकि आम आदमी पार्टी का तर्क है कि दिल्ली में पहले भी संसदीय सचिवों की नियुक्ति होती रही है। उन्हें गाड़ी, तनख्वाह और आफिस तक दिए जाते रहे हैं जबकि दिल्ली सरकार अपने संसदीय सचिवों पर अतिरिक्त कुछ नहीं खर्च कर रही है। वहीं विपक्षी पार्टियों का कहना है कि दिल्ली में बीजेपी के वक्त मुख्यमंत्री के एक संसदीय सचिव थे जबकि शीला दीक्षित के पास तीन संसदीय सचिव थे। आम आदमी पार्टी ने मुख्यमंत्री के साथ मंत्रियों के भी संसदीय सचिव को भी नियुक्त किया है। हालांकि बाद में दिल्ली सरकार ने दोबारा इन संसदीय सचिव का प्रस्ताव उपराज्यपाल के जरिए राष्ट्रपति को भेजा था। लेकिन इसे राष्ट्रपति की मंजूरी नहीं मिली जिसके चलते अब इन 21 विधायकों पर निलंबन की तलवार लटकी हुई है।

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