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‘नखरे, ड्रामा, नारेबाजी...' : पीए संगमा होते तो शायद पीएम मोदी यह न कहते; इतिहास बनाने वाले स्पीकर की कहानी

दस सालों बाद भारत के लोगों ने किसी एक दल को लोकसभा चुनाव में बहुमत नहीं दिया.यूं तो पीएम मोदी पहले भी विपक्ष को जिम्मेदार बनने की सीख देते रहे हैं, मगर आज जब उनकी पार्टी को लोकसभा में बहुमत नहीं है बल्कि गठबंधन को मिला है. तब पीए संगमा याद आते हैं...

‘नखरे, ड्रामा, नारेबाजी...' : पीए संगमा होते तो शायद पीएम मोदी यह न कहते; इतिहास बनाने वाले स्पीकर की कहानी
पीए संगमा को 3 अलग-अलग प्रधानमंत्रियों के साथ स्पीकर के तौर पर काम करने का मौका मिला.

देश के विकास के लिए जरूरी है कि सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों देश के लिए काम करें. अगर एक भी चूका तो देश विकास के रास्ते से भटक जाता है. यही कारण है कि 18वीं लोकसभा के पहले सत्र में सदन में जाने से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि देश की जनता विपक्ष से संसद की गरिमा बनाए रखने की उम्मीद करती है ना कि ‘नखरे, ड्रामा, नारेबाजी और व्यवधान' की. उन्होंने कहा कि देश को एक अच्छे और जिम्मेदार विपक्ष की आवश्यकता है. उन्होंने कहा, ‘‘सभी सांसदों से देश को बहुत अपेक्षाएं हैं. मैं सभी सांसदों से आग्रह करूंगा कि वे जनहित के लिए इस अवसर का उपयोग करें और जनहित में हर संभव कदम उठाएं.'' पीएम का यह भाषण सुनकर अचानक पीए संगमा याद आ गए. जी हां, पीए संगमा पूरा नाम पूर्णो अगितोक संगमा.

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कौन थे पीए संगमा?
पीए संगमा ने लोकसभा स्पीकर के तौर पर कई इतिहास रचे. दो साल से भी कम के कार्यकाल में वह 3 प्रधानमंत्रियों के साथ काम करने के अलावा विपक्षी दल का नेता हुए स्पीकर बनने वाले पहले और अब तक आखिरी व्यक्ति रहे. इसके साथ ही सबसे कम उम्र का लोकसभा स्पीकर भी उन्हीं ने बनाया. वह पहले आदिवासी लोकसभा स्पीकर भी थे. पीए संगमा का जन्म 1 सितंबर 1947 को मेघालय के रमणीक पश्चिमी गारो हिल जिले के चपाहाटी गांव में हुआ था. अंतरराष्ट्रीय संबंधों में उन्होंने डिब्रूगढ़ विश्वविद्यालय से एमए किया. इसके बाद उन्होंने कानून की पढ़ाई भी की. राजनीति में आने से पहले उन्होंने शिक्षक, वकील और पत्रकार के रूप में काम किया.

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कार्यकर्ता बनकर जुड़े कांग्रेस से
कांग्रेस पार्टी में कार्यकर्ता की तरह जुड़कर तेजी से बढ़ते हुए संगमा 1974 में मेघालय प्रदेश युवा कांग्रेस के महासचिव बन गए. फिर 1975 में उकी प्रतिभा देखते हुए मेघालय प्रदेश कांग्रेस कमेटी का महासचिव बना दिया गया. 1980 तक वह इसी पद पर काम करते रहे. 1977 के लोकसभा चुनाव में वह मेघालय के तुरा संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर निर्वाचित हुए. 30 वर्षीय संगंमा ने संसद में ऐसे समय प्रवेश किया, जब देश में एक बड़ा राजनीतिक परिवर्तन हो रहा था और कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद पहली बार केंद्र में चुनावों में हार के बाद सत्ता से हट रही थी. उभरते हुए सांसद के लिए अपनी छवि बनाने का यह एक सुअवसर था और प्रखर वक्ता संगमा ने एक ईमानदार तथा अध्यवसायी सदस्य के रूप में स्वयं को प्रतिष्ठित करने के लिए इस अवसर का पूरा लाभ उठाया. दो वर्षों से भी कम समय में राष्ट्रीय राजनीति में स्थितियां बिल्कुल बदल गयीं और जनता पार्टी अपदस्थ हो गयी. चरण सिंह की सरकार, जिसने बाद में सत्ता संभाली, केवल कुछ ही महीनों तक टिक सकी. 1980 के मध्यावधि चुनावों में इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी केंद्र में सत्ता में लौट आई. संगमा उसी निर्वाचन क्षेत्र से लोक सभा के लिए फिर से निर्वाचित हुए.

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राजीव गांधी ने बड़ी जिम्मेदारी दी
1980 में केद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किए जाने से पूर्व पीए संगमा अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के संयुक्त सचिव बने तथा नवम्बर 1980 में उद्योग मंत्रालय में उपमंत्री बनाए गए. दो वर्षों के बाद वह वाणिज्य मंत्रालय में उपमंत्री बने और दिसम्बर 1984 तक उस पद का कार्यभार संभाला. 1984 के आम चुनावों में संगमा आठवीं लोक सभा के लिए पुनः निर्वाचित हुए. उनकी क्षमताओं और कांग्रेस की विचारधारा के प्रति उनकी निष्ठा को पहचानते हुए राजीव गांधी ने उन्हें अपने मंत्रिमंडल में शामिल किया और इस बार उन्हें वाणिज्य तथा आपूर्ति का प्रभार देते हुए राज्य मंत्री बनाया. कुछ समय के लिए उन्होंने गृह मंत्रालय के राज्य मंत्री का कार्यभार भी संभाला. अक्तूबर, 1986 में, संगमा ने श्रम मत्रालय के राज्य मंत्री का स्वतंत्र प्रभार संभाला. श्रम मंत्री के उनके कार्यकाल के दौरान उद्योगों में हड़तालों और तालाबंदी में काफी कमी आई. 

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नरसिंह राव सरकार में ये काम किया
कांग्रेस पार्टी ने पीए संगमा को 1988 में मेघालय का मुख्यमंत्री बनाया. अपने राज्य के राजनैतिक इतिहास के उथल-पुथल के दौर में उन्होंने 48 सदस्यों वाली साझा सरकार का नेतृत्व किया. वर्ष 1990 में सरकार गिरने के बाद वह राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता बने. 1991 के आम चुनावों में वह लोक सभा के लिए निर्वाचित हुए और इस बार तत्कालीन प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिंह राव ने उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया. संगमा को कोयला मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार सौंपा गया. जनवरी, 1993 में उन्होंने श्रम मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार संभाला. फरवरी, 1995 में संगमा को कैबिनेट स्तर का मंत्री बनाया गया. इस स्तर पर पहुंचनेवाले वह पहले आदिवासी व्यक्ति थे. सितम्बर, 1995 में संगमा ने सूचना और प्रसारण मंत्री का पदभार संभाला तथा ग्यारहवीं लोक सभा के लिए आम चुनाव होने तक वह उस पद पर बने रहे.

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अटल बिहारी वाजपेयी ने इसलिए बनाया स्पीकर
फिर 1996 में 11वीं लोकसभा का चुनाव हुआ मगर किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला. राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने अटल बिहारी वाजपेयी को सबसे बड़ी पार्टी का नेता होने के कारण सरकार बनाने का आमंत्रण दिया और उन्हें 15 दिनों के अंदर बहुमत साबित करने को कहा. इस बीच कांग्रेस ने अपना स्पीकर बनाने का दांव चल दिया. भाजपा को लगा कि कहीं स्पीकर के चुनाव में ही बहुमत फेल न हो जाए तो उसने कांग्रेस के स्पीकर उम्मीदवार पीए संगमा को सर्वसम्मति से स्पीकर चुन लिया. इस तरह से विरोधी दल में होते हुए लोकसभा स्पीकर बनने वाले वे पहले और अब तक के अंतिम नेता रहे हैं. हालांकि, 13 दिन बाद ही अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिर गई. इस लोकसभा का कार्यकाल 25 मई 1996 से लेकर 23 मार्च 1998 तक ही रहा. मगर यह कई मायनों में यादगार बन गया. अटल बिहारी के बाद एचडी देवेगौड़ा और इंद्र कुमार गुजराल उनके कार्यकाल में प्रधानमंत्री बने. तीनों को संगमा ने साध लिया और लोकसभा को अच्छे ढंग से चलाया.

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अपने दल के साथ सत्ताधारी दल को भी साधा 
पीए संगमा के पास कानूनी प्रशिक्षण, सांसद तथा मंत्री के रूप में लंबा अनुभव होने का साथ-साथ निष्पक्षता के लिए नेकनामी, पारदर्शिता, शालीनता, बुद्धिमता तथा हाजिरजवाबी जैसे वे सभी गुण मौजूद थे जो इस महिमामय पद के लिए आवश्यक होते हैं. अध्यक्ष पद संभालते ही उन्होंने जिस सूझबूझ और विश्वास से अपनी जिम्मेदारी निभायी उससे ऐसा प्रतीत होता है कि वह इस कार्य में स्वभावतः निपुण थे. संसदीय सुधारों के लिए उनकी कार्यशैली अनूठी थी. अध्यक्ष के रूप में उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि वाद-विवाद के उत्तेजनापूर्ण क्षणों के दौरान भी सदस्य नियमों का पालन करते रहें. कांग्रेस उनके कार्यकाल में लगातार अविश्वास प्रस्ताव लेकर आती थी. ऐसे में उन्हें कांग्रेस के साथ सत्ताधारी दल को भी बैलेंस करना होता था. अपने अध्यक्ष पद के कार्यकाल के दौरान उन्होंने महिलाओं को शक्तियां प्रदान करने संबंधी स्थायी संयुक्त संसदीय समिति का गठन किया ताकि वह लोक सभा और राज्य विधान सभाओं में महिलाओं को 33 1/3 प्रतिशत आरक्षण उपलब्ध कराने हेतु संविधान (81वां संशोधन) विधेयक, 1996 पर विचार कर सके.अध्यक्ष के रूप में संगमा के कार्यकाल के दौरान सार्वजनिक जीवन में नैतिकता तथा आदर्शों के बारे में प्रतिवेदन प्रस्तुत करने के लिए विशेषाधिकार समिति के एक आठ सदस्यीय अध्ययन दल का गठन किया गया था. उनके इस कदम को सभी ने अत्यधिक सराहा. इस अध्ययन दल के प्रतिवेदन को बाद में बारहवीं लोक सभा में प्रस्तुत किया गया.

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विदेशों में भी बढ़ाया मान
भारत की स्वतंत्रता के स्वर्ण जयंती समारोहों के उपलक्ष्य में 26 अगस्त से 1 सितम्बर, 1997 तक संसद के दोनों सदनों का विशेष अधिवेशन आयोजित करना उनके द्वारा उठाया गया एक और बड़ा कदम था. इस अधिवेशन में उपलब्धियों पर चर्चा की गयी तथा भविष्य के लिए राष्ट्रीय एजेंडा भी निर्धारित किया गया. विशेष सत्र का शुभारंभ करते हुए भारतीय संसदीय इतिहास में पहली बार अध्यक्ष ने सभा को संबोधित किया और एक दूसरे स्वतंत्रता आंदोलन की आवश्यकता पर बल दिया.
संगमा ने अध्यक्ष के रूप में भारतीय संसदीय शिष्टमंडल का कुआलालम्पुर में अगस्त 1996 में तथा पोर्ट लुई में सितम्बर, 1997 में हुए राष्ट्रमंडल संसदीय संघ सम्मेलनों में नेतृत्व किया. उन्होंने भारतीय संसदीय शिष्टमंडल का बीजिंग में सितम्बर, 1996 में अंतर-संसदीय संघ के 96वें सम्मेलन में तथा काहिरा में सितंबर, 1997 में हुए 98वें सम्मेलन में भी नेतृत्व किया. संगमा ने इस्लामाबाद में अक्तूबर, 1997 में हुए "सार्क " अध्यक्षों तथा सांसदों के संघ के सम्मेलन में भी भारतीय शिष्टमंडल का नेतृत्व किया. उन्होंने भारतीय संसद द्वारा फरवरी, 1997 में नई दिल्ली में आयोजित "राजनीति में महिलाओं तथा पुरूषों के बीच सहभागिता की ओर " विषय पर अंतर-संसदीय संघ के विशेषीकृत सम्मेलन की अध्यक्षता की थी. उनके घटनापूर्ण कार्यकाल के दौरान " सार्क " संसदों की लोक लेखा समितियों के सभापतियों तथा सदस्यों का सबसे पहला सम्मेलन भी अगस्त, 1997 में नई दिल्ली में हुआ था.

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फिर कांग्रेस से हुआ मोहभंग
हालांकि, 1999 में सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे के खिलाफ विद्रोह करने वाले नेताओं में संगमा भी शामिल थे. उन्होंने, शरद पवार और तारिक अनवर ने कांग्रेस छोड़कर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) का गठन किया. बाद में संगमा राकांपा छोड़कर तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए. फिर संगमा ने तृणमूल कांग्रेस छोड़कर अपनी खुद की नेशनल पीपुल्स पार्टी का गठन किया. वह पार्टी के टिकट पर वर्तमान 16वीं लोकसभा में निर्वाचित हुए थे. 2012 में संगमा ने राकांपा छोड़ दी और राष्ट्रपति पद के चुनाव में प्रणब मुखर्जी के खिलाफ भाजपा के आधिकारिक उम्मीदवार बने. पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पी.ए संगमा का 4 मार्च 2016 को दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया. तब वह 68 साल के थे. संगमा के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि सदन की कार्यवाही आनंदपूर्ण माहौल में कैसे चलाते हैं, सच कहें तो इसके बारे में उन्हें संगमा से सीखने को मिला. वह कुल 9 बार सांसद रहे.

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पीएम मोदी ने भी की थी तारीफ
साल 2012 में पीएम मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे. उस समय उन्होंने कहा था कि मैं संसद की कार्यवाही देखने में इसलिए रुचि रखता था कि स्पीकर की कुर्सी पर पीए संगमा बैठे होते थे. किसी भी मसल पर उनका बॉडी लैंग्वेज आप याद कीजिए..वह एक छोटे बालक की तरह निर्मल थे. पीए  संगमा ने नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले एक बार कहा था, ‘मोदी में प्रधानमंत्री बनने के गुण हैं. हिंदी भाषी क्षेत्र में उनका जनाधार है. उन्हें गैर-हिंदी भाषी क्षेत्र में, खासकर दक्षिण में अपनी स्थिति आंकनी होगी.देश के लोग आज विकास और सुराज चाहते हैं और उन्होंने गुजरात में साबित किया है.'

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