
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने संसद और सुप्रीम कोर्ट की शक्ति को लेकर एक बड़ा बयान दिया है. उन्होंने कहा कि सबसे सर्वोच्च संसद ही है, उससे ऊपर कोई अथॉरिटी नहीं है. ऐसा इसलिए है क्योंकि संसद में जो सांसद चुनकर आते हैं वो आम जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं. सांसद ही सबकुछ होते हैं, इनसे कोई ऊपर कोई नहीं होता. आपको बता दें कि जगदीप धनखड़ ने ये बातें मंगलवार को दिल्ली विश्वविद्यालय में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कहीं. इस दौरान उन्होंने सुप्रीम कोर्ट पर अपने पिछले हमलों की आलोचना पर भी पलटवार किया और कहा कि किसी संवैधानिक पदाधिकारी (खुद के बारे में) द्वारा बोला गया हर शब्द सर्वोच्च राष्ट्रीय हित से निर्देशित होता है.
लोकतंत्र में संसद ही सुप्रीम
उन्होंने कहा कि संविधान कैसा होगा और उसमें क्या संसोधन होने हैं, यह तय करने का पूरा अधिकार सांसदों को है. उनके ऊपर कोई भी नहीं है. उपराष्ट्रपति का यह बयान तब आया है जबकि सुप्रीम कोर्ट को लेकर की गई उनकी टिप्पणी का एक वर्ग आलोचन भी कर रहा है. उपराष्ट्रपति ने कहा कि लोकतंत्र में संसद ही सुप्रीम है. संवैधानिक पद पर बैठा हर व्यक्ति का बयान राष्ट्र के हित में होता है. निर्वाचित प्रतिनिधि तय करते हैं कि संविधान कैसा होगा. उनके ऊपर कोई और अथॉरिटी नहीं हो सकती.
सुप्रीम कोर्ट पर सार्वजनिक रूप से किए गए अनुचित हमलों में संविधान की प्रस्तावना के बारे में दो अलग-अलग ऐतिहासिक फ़ैसलों में विरोधाभासी बयानों के लिए आलोचना शामिल थी - 1967 का आईसी गोलकनाथ मामला और 1973 का केशवानंद भारती मामला.धनखड़ ने 1975 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल के दौरान अदालत की भूमिका पर भी सवाल उठाए. उन्होंने कहा कि एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने प्रस्तावना संविधान का हिस्सा नहीं है.दूसरे मामले में एससी ने कहा कि यह संविधान का हिस्सा है.लेकिन संविधान के बारे में कोई संदेह नहीं होना चाहिए. चुने हुए प्रतिनिधि ही संविधान के अंतिम स्वामी होंगे. उनसे ऊपर कोई अथॉरिटी नहीं हो सकता.
उन्होंने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने आपातकाल लागू करने के मामले में नौ उच्च न्यायालयों के फ़ैसलों को भी पलट दिया है. जिसे उन्होंने "लोकतांत्रिक इतिहास का सबसे काला दौर" और मौलिक अधिकारों के निलंबन का नाम दिया है.मैं 'सबसे काला' इसलिए कह रहा हूं क्योंकि देश की सबसे बड़ी अदालत ने नौ उच्च न्यायालयों के फ़ैसले को नज़रअंदाज़ कर दिया.
उप-राष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि एक प्रधानमंत्री जिसने आपातकाल लगाया (श्रीमती गांधी का जिक्र करते हुए) उसे 1977 में जवाबदेह ठहराया गया (तब सत्ता में रही कांग्रेस आम चुनाव हार गई). इसलिए, इस बारे में कोई संदेह नहीं होना चाहिए - संविधान लोगों के लिए है और यह इसकी सुरक्षा का 'भंडार' है.
धनखड़ की आज की टिप्पणी, संविधान के अनुच्छेद 142 का हवाला देकर शुरू हुए विवाद के बाद आई है, जो सर्वोच्च न्यायालय को ऐसे आदेश पारित करने की विशेष शक्तियां प्रदान करता है. जो पूरे देश में लागू होते हैं और "उसके समक्ष लंबित किसी भी मामले में पूर्ण न्याय करने के लिए आवश्यक हैं".
राष्ट्रपति और राज्य के राज्यपालों के लिए राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने के लिए समयसीमा निर्धारित करने वाले सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के कुछ दिनों बाद,धनखड़ ने शिकायत की थी कि अनुच्छेद 142 लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ एक परमाणु मिसाइल बन गया है, जो न्यायपालिका के लिए चौबीसों घंटे उपलब्ध है.
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