तीस्ता सीतलवाड़ केस : 190 पूर्व जजों और अफसरों ने कहा- न्यायपालिका में हस्तक्षेप स्वीकार्य नहीं

मामले में 13 पूर्व जजों, 90 रिटायर्ड नौकरशाहों और 87 पूर्व सैन्य अधिकारियों ने साझा बयान जारी किया

तीस्ता सीतलवाड़ केस : 190 पूर्व जजों और अफसरों ने कहा- न्यायपालिका में हस्तक्षेप स्वीकार्य नहीं

तीस्ता सीतलवाड़ (फाइल फोटो).

नई दिल्ली:

तीस्ता सीतलवाड़ (Teesta Setalvad) पर आए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के फैसले में दखल का विरोध किया गया है. पूर्व न्यायाधीशों और नौकरशाहों के एक समूह ने सुप्रीम कोर्ट से "जकिया एहसान जाफरी बनाम गुजरात राज्य और अन्य" के मामले में अपनी किसी भी टिप्पणी को नहीं हटाने का आग्रह किया है. कहा गया है कि "न्यायपालिका में हस्तक्षेप स्वीकार्य नहीं है." इस बारे में 13 पूर्व जजों, 90 रिटायर्ड नौकरशाहों और 87 पूर्व सैन्य अधिकारियों ने साझा बयान जारी किया है. इस बयान पर कुल 190 लोगों के हस्ताक्षर हैं.

दरअसल, गुजरात दंगों को लेकर ज़ाकिया जाफरी की याचिका पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले में तीस्ता सीतलवाड़ तथा अन्य लोगों के खिलाफ टिप्पणियों को हटाने की मांग हो रही है. साझा बयान में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में अपने फैसले की टिप्पणियों को नहीं हटाना चाहिए.

बयान में कहा गया है कि, ''माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने टिप्पणी की कि तीस्ता सीतलवाड़ और अन्य लोग घटनाओं से व्यथित जकिया अहसान जाफरी की भावनाओं का शोषण करके अपने गुप्त डिजाइन के लिए प्रतिशोधी रूप से इस मुकदमे में लगे हुए थे. सुप्रीम कोर्ट ने तीस्ता सीतलवाड़ के दुस्साहस पर भी ध्यान दिया, कि उन्होंने एसआईटी को लिखे गए अपने पत्रों को संयुक्त राष्ट्र में मानवाधिकार के उच्चायुक्त कार्यालय (OHCHR) को आक्षेप लगाने की मंशा से फारवर्ड किया. उन्होंने माननीय सर्वोच्च न्यायालय की एसआईटी की निष्पक्ष और पूर्ण जांच को स्वीकार करने के खिलाफ आरोप लगाया." 

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर तीस्ता सीतलवाड़, आरबी श्रीकुमार और संजीव भट्ट के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है. सिविल सोसायटी के कुछ लोग इसका विरोध कर रहे हैं. उनकी मांग है कि एफआईआर खारिज की जाए. इस एफआईआर के आधार पर तीस्ता सीतलवाड़ और आरबी श्रीकुमार को गिरफ्तार किया गया है.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि तीस्ता सीतलवाड़ और अन्य ज़किया जाफरी की भावनाओं से खेलते हुए इस याचिका को आगे ले जा रहे थे.

सुप्रीम कोर्ट ने 2002 के गुजरात दंगा मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और 63 अन्य लोगों को विशेष जांच दल (SIT) द्वारा क्लीन चिट दिए जाने को चुनौती देने वाली याचिका 24 जून को खारिज कर दी थी. न्यायालय ने इसके साथ ही कहा कि इन आरोपों के समर्थन में पुख्ता तथ्य उपलब्ध नहीं हैं कि 2002 के गोधरा दंगों को गुजरात में सर्वोच्च स्तर पर रची गई आपराधिक साजिश के कारण पूर्व-नियोजित घटना कहा जाए.

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