
7 मई की रात भारतीय सेना ने इतिहास रच दिया. जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में मारे गए निर्दोष लोगों को न्याय दिलाने के संकल्प के साथ भारतीय सेना ने एलओसी पार जाकर दुश्मन के दिल में ऐसा वार किया, जिसकी कल्पना पाकिस्तान ने भी नहीं की थी. 22 अप्रैल से ही सेना बदला लेने की तैयारी में थी. अगले 15 दिनों तक चिनार कोर के नेतृत्व में जबरदस्त रणनीतिक मंथन हुआ. लक्ष्य स्पष्ट था उन आतंकियों और उनके संरक्षकों को खत्म करना, जिन्होंने भारत की सरजमीं पर खून बहाया था. लेकिन कब और कैसे यह वार करना है, यह रहस्य सिर्फ कोर कमांडर के पास था.
सेना ने ‘सरप्राइज' को अपनी सबसे बड़ी ताकत बनाया. किसी भी सेक्टर पर अतिरिक्त मूवमेंट नहीं हुई, कोई गतिविधि नजर नहीं आई. लेकिन अंदर ही अंदर देश भर से हथियार, उपकरण और आवश्यक संसाधन जुटाए जा रहे थे. रोज़ाना की तैयारी अपने चरम पर थी.
भारतीय सेना ने किया अचूक हमला
फिर आई 7 मई की वह रात. सेना ने एलओसी से करीब 34 किलोमीटर अंदर, पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के शवाई नाला और सैयदना बिलाल आतंकी कैम्पों पर हमला किया. हमला इतना अचानक और सटीक था कि पाकिस्तानी सेना को शुरुआत में समझ ही नहीं आया कि हुआ क्या है. जब तक वे प्रतिक्रिया देने की स्थिति में आए, भारतीय आर्टिलरी और एयर डिफेंस गन ने उनकी हर कोशिश को नाकाम कर दिया.
सिर्फ आतंकी ही थे निशाने पर
सेना ने सटीकता से केवल उन्हीं ठिकानों को निशाना बनाया, जहां आतंकियों की मौजूदगी की पुष्टि थी. जहां महिलाओं और बच्चों की मौजूदगी पाई गई, वहां मानवीय मूल्यों को ध्यान में रखते हुए हमला नहीं किया गया. इस हमले में कश्मीर के दूसरी तरफ पाकिस्तान के करीब 64 सैनिक ढेर हुए, जबकि 15 से ज्यादा आतंकियों को मौत के घाट उतार दिया गया.
सेना का यह अभियान न केवल सैन्य ताकत का प्रदर्शन था, बल्कि यह संदेश भी कि भारत अपने नागरिकों पर हुए किसी भी हमले का करारा जवाब देगा. चुपचाप, पर पूरी तैयारी और सटीकता के साथ.
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