ओडिशा हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में एक समलैंगिक जोड़े को लिव-इन-रिलेशनशिप में रहने की इजाजत दे दी है. कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि अलग-अलग लैंगिक पहचान के बावजूद, हर इंसान को अपने अधिकारों का पूर्ण लाभ लेने का हक है. जस्टिस एस के मिश्रा और जस्टिस सावित्री राथो की खंड पीठ ने इस हफ्ते की शुरुआत में 24 साल के ट्रांसमैन (जो जन्म के वक्त महिला थी) की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका (habeas corpus petition) पर सुनवाई करते हुए कहा कि, 'राज्य को उनको हर प्रकार का संरक्षण देना चाहिए जिसमें जीवन का अधिकार, कानून के समक्ष समानता का अधिकार और कानून का समान संरक्षण शामिल होना चाहिए.'
अपनी पहचान एक पुरुष के तौर पर करने वाले याचिकाकर्ता ने कहा कि उसके साथी की मां और रिश्तेदार उसे जबरन जयपुर ले गए थे और उसकी शादी दूसरे व्यक्ति के साथ तय कर दी जिससे उसे अदालत का रुख करना पड़ा.
बेंच की अध्यक्षता कर रहे न्यायमूर्ति एस के मिश्रा ने फैसला दिया कि जोड़े को अपनी यौन प्राथमिकता पर फैसला लेने का अधिकार है और जयपुर पुलिस अधीक्षक को यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया कि याचिकाकर्ता की साथी भुवनेश्वर में उसके साथ रह सके. उन्होंने कहा कि महिला की मां और बहन को याचिकाकर्ता के घर पर महिला से मिलने की इजाजत दी जाएगी.
जस्टिस सावित्री राथो ने कहा कि दोनों को पसंद की स्वतंत्रता मिली है, जिन्होंने साथ रहने का फैसला किया है. बेंच ने यह भी कहा कि न्यायिक हस्तक्षेप पर महिला भले ही याचिकाकर्ता के साथ रह सकती है लेकिन अगर वह याचिकाकर्ता के साथ न रहकर अपनी मां के पास वापस जाना चाहे तो उसपर कोई रोक नहीं होगी.
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