लखनऊ:
बुंदेलखण्ड की एक कहावत 'दुइज का बदला, तीज में दिया' उत्तर प्रदेश की नई सरकार को चरितार्थ करने जा रही है। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की मायावती सरकार अपने पूरे कार्यकाल में अम्बेडकर गांवों के विकास पर ध्यान केंद्रित किए रही, अब समाजवादी पार्टी (सपा) की अखिलेश सरकार लोहिया गांवों के विकास का पिटारा खोलेगी। लेकिन सवाल यह है कि उन गांवों का क्या होगा, जो न 'अम्बेडकर' और न 'लोहिया' योजना के दायरे में होंगे।
वर्ष 2007 में बसपा की सरकार बनी तो मायावती ने मुलायम सिंह यादव सरकार के ज्यादातर फैसले पलट दिए थे। इस चुनाव में सपा को प्रचंड बहुमत मिला तो अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली नई सरकार पूर्ववर्ती सरकार के फैसले पलटने से आखिर कैसे चूक सकती है। वह तो मायावती के 'दुइज' का बदला 'तीज' में देगी ही।
माया सरकार ने लोहिया ग्राम योजना बंद कर इसके ज्यादातर कार्य अम्बेडकर ग्राम्य विभाग के हवाले कर दिया था और अब नई सरकार अम्बेडकर ग्राम्य विकास विभाग को कमजोर कर फिर से लोहिया ग्राम योजना शुरू करने जा रही है।
हाल ही में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने लखनऊ में कहा था कि अब लोहिया ग्राम योजना फिर से संचालित की जाएगी और जरूरतमंद गांवों में विकास का कार्य किया जाएगा।
सपा-बसपा की इस 'बदले की जंग' में उन गांवों का क्या होगा? जो गांव अम्बेडकर ग्राम्य विकास विभाग के लिए 'अछूत' बने रहे और अब समाजवाद के जनक डा. राममनोहर लोहिया के नाम से संचालित होने जा रही लोहिया ग्राम योजना के दायरे से भी बाहर होंगे।
यहां चयनित अम्बेडकर गांवों में हुए कथित विकास की चर्चा भी जरूरी है। बानगी के तौर पर बांदा जनपद के विकास खंड महुआ के गांव अर्जुनाह को देखा जा सकता है, जहां पिछले साल अपने औचक निरीक्षण में मायावती पहुंची थीं। इस गांव में लोक निर्माण विभाग द्वारा दो दिन में खड़ंजा, नाली व मजरों को जाने वाले सम्पर्क मार्गो का डामरीकरण कराया गया था। करोड़ों रुपये खर्च होने के बाद इस गांव की हालत अब पूर्व जैसी हो गई है, यानी जिस रफ्तार से विकास हुआ उसी गति से सब कुछ टूट भी गया।
इस गांव के पूर्व प्रधान शिव प्रसाद श्रीवास ने बताया, "गांव की ऐसी कोई गली नहीं है, जिसमें हुए नाली-खडं़जा के काम की पहचान बची हो।"
बबेरू क्षेत्र से सपा विधायक विश्वम्भर सिंह यादव कहते हैं कि पूर्व सरकार की ज्यादातर योजनाएं कमीशन के लिए बनाई जाती रही हैं, अखिलेश सरकार में ईमानदारी और पारदर्शिता से सभी कार्य होंगे।
उन्होंने कहा कि अम्बेडकर ग्राम्य विकास विभाग द्वारा जातीय आबादी के आधार पर गांव विशेष का चयन किया जाता रहा है, लेकिन लोहिया ग्राम योजना के अंतर्गत राज्य कृषि उत्पादन मंडी परिषद द्वारा जरूरतमंद सभी गांवों में कार्य कराए जाएंगे।
राजनीतिक विश्लेषक और बांदा के बुजुर्ग पत्रकार राजकुमार पाठक कहते हैं, "सपा-बसपा की राजनीतिक रंजिश में जनता की हालत चक्की के दो पाटों के बीच पड़े गेहूं जैसी हो गई है। बसपा ने डा. अम्बेडकर को आगे कर सत्ता का स्वाद चखा और अब सपा डा. लोहिया के नाम पर छलेगी।"
उन्होंने कहा, "गांवों के साथ ऐसा सौतेलापन न तो अम्बेडकर की सोच में था और न ही डा. लोहिया का समाजवाद ही इसका समर्थन कर सकता है, फिर भी दोनों दलों के नेता अपने-अपने तरीके से विकास करने की बात करते हैं, जिसका खामियाजा जनता को ही भोगना पड़ेगा।"
ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क से जुड़े अधिवक्ता शिवकुमार मिश्र कहते हैं, "गांवों के विकास से लोगों का विकास जुड़ा हुआ है, सरकार को सभी गांव के विकास के लिए एक जैसी योजना संचालित करनी चाहिए।"
वर्ष 2007 में बसपा की सरकार बनी तो मायावती ने मुलायम सिंह यादव सरकार के ज्यादातर फैसले पलट दिए थे। इस चुनाव में सपा को प्रचंड बहुमत मिला तो अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली नई सरकार पूर्ववर्ती सरकार के फैसले पलटने से आखिर कैसे चूक सकती है। वह तो मायावती के 'दुइज' का बदला 'तीज' में देगी ही।
माया सरकार ने लोहिया ग्राम योजना बंद कर इसके ज्यादातर कार्य अम्बेडकर ग्राम्य विभाग के हवाले कर दिया था और अब नई सरकार अम्बेडकर ग्राम्य विकास विभाग को कमजोर कर फिर से लोहिया ग्राम योजना शुरू करने जा रही है।
हाल ही में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने लखनऊ में कहा था कि अब लोहिया ग्राम योजना फिर से संचालित की जाएगी और जरूरतमंद गांवों में विकास का कार्य किया जाएगा।
सपा-बसपा की इस 'बदले की जंग' में उन गांवों का क्या होगा? जो गांव अम्बेडकर ग्राम्य विकास विभाग के लिए 'अछूत' बने रहे और अब समाजवाद के जनक डा. राममनोहर लोहिया के नाम से संचालित होने जा रही लोहिया ग्राम योजना के दायरे से भी बाहर होंगे।
यहां चयनित अम्बेडकर गांवों में हुए कथित विकास की चर्चा भी जरूरी है। बानगी के तौर पर बांदा जनपद के विकास खंड महुआ के गांव अर्जुनाह को देखा जा सकता है, जहां पिछले साल अपने औचक निरीक्षण में मायावती पहुंची थीं। इस गांव में लोक निर्माण विभाग द्वारा दो दिन में खड़ंजा, नाली व मजरों को जाने वाले सम्पर्क मार्गो का डामरीकरण कराया गया था। करोड़ों रुपये खर्च होने के बाद इस गांव की हालत अब पूर्व जैसी हो गई है, यानी जिस रफ्तार से विकास हुआ उसी गति से सब कुछ टूट भी गया।
इस गांव के पूर्व प्रधान शिव प्रसाद श्रीवास ने बताया, "गांव की ऐसी कोई गली नहीं है, जिसमें हुए नाली-खडं़जा के काम की पहचान बची हो।"
बबेरू क्षेत्र से सपा विधायक विश्वम्भर सिंह यादव कहते हैं कि पूर्व सरकार की ज्यादातर योजनाएं कमीशन के लिए बनाई जाती रही हैं, अखिलेश सरकार में ईमानदारी और पारदर्शिता से सभी कार्य होंगे।
उन्होंने कहा कि अम्बेडकर ग्राम्य विकास विभाग द्वारा जातीय आबादी के आधार पर गांव विशेष का चयन किया जाता रहा है, लेकिन लोहिया ग्राम योजना के अंतर्गत राज्य कृषि उत्पादन मंडी परिषद द्वारा जरूरतमंद सभी गांवों में कार्य कराए जाएंगे।
राजनीतिक विश्लेषक और बांदा के बुजुर्ग पत्रकार राजकुमार पाठक कहते हैं, "सपा-बसपा की राजनीतिक रंजिश में जनता की हालत चक्की के दो पाटों के बीच पड़े गेहूं जैसी हो गई है। बसपा ने डा. अम्बेडकर को आगे कर सत्ता का स्वाद चखा और अब सपा डा. लोहिया के नाम पर छलेगी।"
उन्होंने कहा, "गांवों के साथ ऐसा सौतेलापन न तो अम्बेडकर की सोच में था और न ही डा. लोहिया का समाजवाद ही इसका समर्थन कर सकता है, फिर भी दोनों दलों के नेता अपने-अपने तरीके से विकास करने की बात करते हैं, जिसका खामियाजा जनता को ही भोगना पड़ेगा।"
ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क से जुड़े अधिवक्ता शिवकुमार मिश्र कहते हैं, "गांवों के विकास से लोगों का विकास जुड़ा हुआ है, सरकार को सभी गांव के विकास के लिए एक जैसी योजना संचालित करनी चाहिए।"
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