प्रतीकात्मक फोटो
नई दिल्ली:
कुछ साल पहले सरकार ने एक कानून के जरिए यह साफ कर दिया था कि आठवीं तक बच्चों को किसी भी कक्षा में फेल नहीं किया जाएगा. लेकिन इस व्यवस्था से कई लोग नाराज भी हुए और आरोप लगाया कि इससे शिक्षा के स्तर में कमी आएगी. कुछ वर्षों में कई राज्य सरकारों ने भी ऐसा ही महसूस किया और मांग की कि इस व्ववस्था में बदलाव किया जाए. लोकसभा में नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार दूसरा संशोधन विधेयक 2017 पेश किया गया जिसमें प्रावधान किया गया है कि पांचवी और आठवीं कक्षा में नियमित परीक्षा ली जाए और इन परीक्षा में विद्यार्थियों के असफल होने पर पुन: परीक्षा का एक मौका दिया जाएगा और उसमें भी सफल नहीं होने पर दोनों कक्षाओं में बच्चों को रोका जा सकेगा. हालांकि किसी बालक को प्रारंभिक शिक्षा पूरी किये जाने तक विद्यालय से निष्कासित नहीं किया जाएगा.
लोकसभा में मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री उपेन्द्र कुशवाहा ने नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार दूसरा संशोधन विधेयक 2017 पेश किया. विधेयक में प्रस्ताव किया गया है कि प्रत्येक शैक्षणिक वर्ष के अंत में पांचवीं और आठवीं कक्षा में नियमित परीक्षा होगी. यदि कोई बालक इसमें असफल हो जाता है तब उसे अतिरिक्त शिक्षण दिया जायेगा और परिणाम घोषित किये जाने की तारीख से दो महीने की अवधि के भीतर पुन: परीक्षा देने का अवसर दिया जायेगा. इसमें कहा गया है कि कोई छात्र पुन: असफल होता है तब पांचवी या आठवीं कक्षा या दोनों कक्षाओं में रोका जा सकेगा. विधेयक में प्रस्ताव किया गया है कि किसी छात्र को प्रारंभिक शिक्षा पूरी किये जाने तक विद्यालय से निष्कासित नहीं किया जाएगा.
यह भी पढ़ें : मुफ्त और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार संशोधन विधेयक पेश
विधेयक के उद्देश्यों और कारणों में कहा गया है कि नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम की धारा 16 में यह उपबंध किया गया है कि किसी विद्यालय में प्रवेश प्राप्त बालक को किसी कक्षा में नहीं रोका जायेगा या विद्यालय में प्राथमिक शिक्षा पूरी किये जाने तक निष्कासित नहीं किया जायेगा. ऐसा बच्चों को हतोत्साहित या निरूत्साहित होने से बचाने के उद्देश्य से किया गया था.
VIDEO: दिल्ली सरकार पर कर चुकी थी यह मांग
इसमें कहा गया है कि हाल के वर्षों में राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों द्वारा बच्चों के ज्ञान के स्तर पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव से संबंधित मुद्दों को उठाया गया क्योंकि मूल अधिनियम की धारा 16 बालकों को प्रारंभिक शिक्षा पूरी होने तक कक्षा में रोके जाने की इजाजत नहीं देती है. अत: परिणामों में सुधार लाने के लिये सभी पक्षों से विचार विमर्श के बाद धारा 16 को प्रतिस्थापित करने का प्रस्ताव किया गया है. (भाषा की रिपोर्ट पर आधारित)
लोकसभा में मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री उपेन्द्र कुशवाहा ने नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार दूसरा संशोधन विधेयक 2017 पेश किया. विधेयक में प्रस्ताव किया गया है कि प्रत्येक शैक्षणिक वर्ष के अंत में पांचवीं और आठवीं कक्षा में नियमित परीक्षा होगी. यदि कोई बालक इसमें असफल हो जाता है तब उसे अतिरिक्त शिक्षण दिया जायेगा और परिणाम घोषित किये जाने की तारीख से दो महीने की अवधि के भीतर पुन: परीक्षा देने का अवसर दिया जायेगा. इसमें कहा गया है कि कोई छात्र पुन: असफल होता है तब पांचवी या आठवीं कक्षा या दोनों कक्षाओं में रोका जा सकेगा. विधेयक में प्रस्ताव किया गया है कि किसी छात्र को प्रारंभिक शिक्षा पूरी किये जाने तक विद्यालय से निष्कासित नहीं किया जाएगा.
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विधेयक के उद्देश्यों और कारणों में कहा गया है कि नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम की धारा 16 में यह उपबंध किया गया है कि किसी विद्यालय में प्रवेश प्राप्त बालक को किसी कक्षा में नहीं रोका जायेगा या विद्यालय में प्राथमिक शिक्षा पूरी किये जाने तक निष्कासित नहीं किया जायेगा. ऐसा बच्चों को हतोत्साहित या निरूत्साहित होने से बचाने के उद्देश्य से किया गया था.
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इसमें कहा गया है कि हाल के वर्षों में राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों द्वारा बच्चों के ज्ञान के स्तर पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव से संबंधित मुद्दों को उठाया गया क्योंकि मूल अधिनियम की धारा 16 बालकों को प्रारंभिक शिक्षा पूरी होने तक कक्षा में रोके जाने की इजाजत नहीं देती है. अत: परिणामों में सुधार लाने के लिये सभी पक्षों से विचार विमर्श के बाद धारा 16 को प्रतिस्थापित करने का प्रस्ताव किया गया है. (भाषा की रिपोर्ट पर आधारित)
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