नई दिल्ली:
आपराधिक मानहानि की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर कोई पॉलिसी किसी को पसंद नहीं है तो उसकी आलोचना मानहानि के दायरे में नहीं है। भारतीय संविधान में सभी को बोलने व अभिव्यक्ति का अधिकार मिला है। ऐसे में आलोचना में कुछ भी गलत नहीं है, लेकिन ऐसी कोई भी आलोचना जिससे किसी व्यक्ति विशेष के सम्मान को ठेस पहुंचे, तो वह मानहानि के दायरे में होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आलोचना की एक सीमा होती है। वह कानून के दायरे में होनी चाहिए लेकिन अगर किसी की छवि खराब करने के लिए ऐसा किया जाता है तो मानहानि माना जाएगा।
पिछली सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता व दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल की ओर से दलील दी गई थी कि उक्त प्रावधान को खत्म किया जाना चाहिए क्योंकि यह औपनिवेशिक कानून है और इसका दुरुपयोग हो रहा है। इस पर विचार करने और इसे खत्म करने की जरूरत है।
आईपीसी की धारा-499 व 500 को केजरीवाल के अलावा कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और भाजपा नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने भी चुनौती दी है। याचिकाकर्ता की दलील थी कि आईपीसी का उक्त प्रावधान संविधान से मिले अधिकारों का उल्लंघन करता है।
केंद्र सरकार की दलील है कि मानहानि से संबंधित कानूनी प्रावधान सही है। हर व्यक्ति को 'राइट टू लाइफ एंड लिबर्टी' मिली हुई है, और यह मूल अधिकार है। राइट टू लाइफ का मतलब मान सम्मान और प्रतिष्ठा के साथ जीवन जीने का अधिकार है। ऐसे में मानहानि से संबंधित कानूनी प्रावधान को बरकरार रखना जरूरी है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आलोचना की एक सीमा होती है। वह कानून के दायरे में होनी चाहिए लेकिन अगर किसी की छवि खराब करने के लिए ऐसा किया जाता है तो मानहानि माना जाएगा।
पिछली सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता व दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल की ओर से दलील दी गई थी कि उक्त प्रावधान को खत्म किया जाना चाहिए क्योंकि यह औपनिवेशिक कानून है और इसका दुरुपयोग हो रहा है। इस पर विचार करने और इसे खत्म करने की जरूरत है।
आईपीसी की धारा-499 व 500 को केजरीवाल के अलावा कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और भाजपा नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने भी चुनौती दी है। याचिकाकर्ता की दलील थी कि आईपीसी का उक्त प्रावधान संविधान से मिले अधिकारों का उल्लंघन करता है।
केंद्र सरकार की दलील है कि मानहानि से संबंधित कानूनी प्रावधान सही है। हर व्यक्ति को 'राइट टू लाइफ एंड लिबर्टी' मिली हुई है, और यह मूल अधिकार है। राइट टू लाइफ का मतलब मान सम्मान और प्रतिष्ठा के साथ जीवन जीने का अधिकार है। ऐसे में मानहानि से संबंधित कानूनी प्रावधान को बरकरार रखना जरूरी है।
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