पूरी दुनिया इस समय कोविड-19 महामारी की चुनौती से जूझ (Fight against Covid) रही है. भारत की बात करें तो यहां कोरोना की तीसरी लहर की आशंका को लेकर लोग डरे हुए हैं. इस बीच, नए वैश्विक अनुसंधानों ने कोविड-19 और वैक्सीनेशन (Covid and vaccination) को लेकर पूर्व की मान्यताओं को बदल दिया है. इन रिसर्च के निष्कर्ष बताते हैं कि कोविड के खिलाफ हमारी यह 'जंग' पहले से कहीं ज्यादा मुश्किल साबित होने वाली है . वैश्विक रिसर्च में खुलासा हुआ है कि वैक्सीन की 'ढाल' ( संरक्षण) लंबी नहीं चलती है. यहां तक कि पूरे साल भर में नहीं, जैसी कि पहले उम्मीद लगाई जा रही थी. अब यह लगभग स्पष्ट है कि पूरी तरह से वैक्सीनेट व्यक्ति की वैक्सीन की प्रभावशीलता माह दर कम होती जाएगी.
Pfizer की वैक्सीन 95% तक संरक्षण/ प्रभावशीलता का दावा करती है लेकिन केवल चार माह. इसका प्रदर्शन बाद मेंगिरकर निराशाजनक 48% तक पहुंच जाता है. इसी तरह Astra-Zeneca की वैक्सीन जो भारत में कोविशील्ड के नाम से जानी जाती है, की शुरुआत 75% 'प्रोटेक्शन' से होती है जिसकी प्रभावशीलता चार माह में गिरकर 54% तक पहुंच जाती है.
प्रोटेक्शन यानी कोविड के खिलाफ सुरक्षा में कमी का पहलू देश के टीकाकरण कार्यक्रम पर असर डाल सकता है. वैक्सीन का प्रोटेक्शन चार से पांच माह में 50% से नीचे गिरने के चलते बूस्टर (या तीसरे ) डोज की जरूरत महसूस हो रही है. यह जरूरी है कि दूसरी डोज के छह या आठ महीने बाद बूस्टर डोज लिया जाए. भारत को जल्द से जल्द बूस्टर डोज देने की शुरुआत करनी होगी. इसकी शुरुआत डॉक्टरों, नर्सों और सभी फ्रंटलाइन वर्कर्स से करनी होगी. दूसरे नंबर पर 60+ के लोगों और गंभीर/अन्य दूसरी बीमारियों से पीडि़त Co-morbidities) को इसके दायरे में लाना होगा. इसके बाद पूरी तरह से वैक्सीनेट हुई आबादी को बूस्टर डोज देनी होगी. 15 करोड़ लोगों को कोरोना वैक्सीन की दोनों डोज लगाई जा चुकी हैं और इन्हें तीसरी यानी बूस्टर डोज की जरूरत होगी. यह संख्या हर माह बढ़ती जाएगी.
नए वैश्विक शोध में जो सबसे ज्यादा परेशान करने वाली बात सामने आई है वह यह है कि बच्चे भी अब कोरोनवायरस से संक्रमित हो रहे हैं. अब तक ऐसा माना जाता था कि बच्चों पर इसका असर बहुत ज्यादा नहीं है. ब्रिटेन में पिछले कुछ सप्ताह में बच्चों के कोरोना पॉजिटिव होने की संख्या में तेजी आई है. इसे खतरे का संकेत माना जा सकता है कि 10 से 19 वर्ष के 45 फीसदी लड़के पॉजिटिव पाए गए हैं. 4 से10 वर्ष की आयु तक के बच्चों में पॉजिटिविटी रेट 35% केआसपास रहा है. लड़कियों के मामले में भी स्थिति बहुत बेहतर नहीं मानी जा सकती, 5 से 19 वर्ष की आयु में पॉजिटिविटी रेट 35% के आसपास पाया गया है.
इन निष्कर्षों के आधार पर भारत को अपने 5 से 19 वर्ष तक की आयु के करीब 45 करोड़ लड़के-लड़कियों के वैक्सीनेशन पर भी फोकस करना होगा.
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