कानपुर:
नेताजी सुभाषचंद्र बोस की सहयोगी रहीं वयोवृद्ध स्वतंत्रता सेनानी कैप्टन लक्ष्मी सहगल का सोमवार को कानपुर में देहावसान हो गया है। वह लगभग 98 वर्ष की थीं। पिछले सप्ताह 19 जुलाई को दिल का दौरा पड़ने के बाद से वह कोमा की स्थिति में कानपुर मेडिकल सेंटर में भर्ती थीं। पिछले चार दिन से ज़िन्दगी और मौत के बीच झूल रहीं कैप्टन सहगल को सोमवार सुबह 11 बजे ही वेंटिलेटर से निकाला गया था, लेकिन 11:20 बजे उनका देहांत हो गया।
कैप्टन सहगल के पार्थिव शरीर को मकरावटगंज स्थित उनके आवास पर दोपहर 2 बजे से जनता के दर्शनार्थ रखा जाएगा, और उनकी शवयात्रा मंगलवार सुबह 10 बजे शुरू होगी। डॉ सहगल की पुत्री सुभाषिनी अली के अनुसार, उनकी (कैप्टन सहगल की) किडनी तथा आंखें मेडिकल कॉलेज को दान की जाएंगी।
24 अक्टूबर, 1914 को परंपरावादी तमिल परिवार में जन्मी कैप्टन सहगल ने मद्रास मेडिकल कॉलेज से शिक्षा ली थी, जिसके बाद वह सिंगापुर चली गई थीं। दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान जब जापानी सेना ने सिंगापुर में ब्रिटिश सेना पर हमला किया तो लक्ष्मी सहगल नेताजी की आज़ाद हिन्द फौज में शामिल हो गई थीं।
वह आजाद हिन्द फौज की 'रानी झांसी रेजिमेन्ट' की कमाण्डर थीं, तथा वह 'आजाद हिन्द सरकार' में महिला मामलों की मंत्री भी रहीं। प्यार से 'अम्माजी' कहकर पुकारी जाने वाली कैप्टन सहगल को वर्ष 1998 में भारत सरकार ने दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मविभूषण से भी नवाज़ा था।
कैप्टन सहगल के पार्थिव शरीर को मकरावटगंज स्थित उनके आवास पर दोपहर 2 बजे से जनता के दर्शनार्थ रखा जाएगा, और उनकी शवयात्रा मंगलवार सुबह 10 बजे शुरू होगी। डॉ सहगल की पुत्री सुभाषिनी अली के अनुसार, उनकी (कैप्टन सहगल की) किडनी तथा आंखें मेडिकल कॉलेज को दान की जाएंगी।
24 अक्टूबर, 1914 को परंपरावादी तमिल परिवार में जन्मी कैप्टन सहगल ने मद्रास मेडिकल कॉलेज से शिक्षा ली थी, जिसके बाद वह सिंगापुर चली गई थीं। दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान जब जापानी सेना ने सिंगापुर में ब्रिटिश सेना पर हमला किया तो लक्ष्मी सहगल नेताजी की आज़ाद हिन्द फौज में शामिल हो गई थीं।
वह आजाद हिन्द फौज की 'रानी झांसी रेजिमेन्ट' की कमाण्डर थीं, तथा वह 'आजाद हिन्द सरकार' में महिला मामलों की मंत्री भी रहीं। प्यार से 'अम्माजी' कहकर पुकारी जाने वाली कैप्टन सहगल को वर्ष 1998 में भारत सरकार ने दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मविभूषण से भी नवाज़ा था।
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