
- पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त SY Quraishi ने नेपाल में जारी घटनाक्रम को जीवंत लोकतंत्र का संकेत बताया
- कुरैशी ने सोशल मीडिया को विनियमित करते समय सरकारों को अत्यंत सावधानी बरतने की आवश्यकता पर जोर दिया है
- कुरैशी ने कहा कि भारत को दक्षेस क्षेत्र में संघर्षरत लोकतंत्रों की मदद बड़े भाई की भूमिका में करनी चाहिए
पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त एस वाई कुरैशी ने कहा है कि नेपाल में घटनाक्रम अराजकता का नहीं, बल्कि ‘‘जीवंत लोकतंत्र'' का संकेत है. उन्होंने कहा कि सरकारों को सोशल मीडिया को विनियमित करने में बहुत सावधानी बरतनी चाहिए, क्योंकि यह हर किसी के जीवन का अभिन्न अंग बन गया है. कुरैशी ने यह भी कहा कि भारत को दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (दक्षेस) क्षेत्र में उन लोकतंत्रों का हाथ थामने के लिए नेतृत्व करना होगा ‘‘जो अभी भी संघर्ष कर रहे हैं'' तथा उन्हें सहायता प्रदान करनी होगी, लेकिन ऐसा उसे एक ‘‘बड़े भाई'' (मार्गदर्शक) के रूप में करना होगा, न कि ‘‘बिग ब्रदर'' (दबदबा दिखाने वाला) के रूप में.
अपनी पुस्तक ‘डेमोक्रेसी हार्टलैंड' के विमोचन से पहले ‘पीटीआई-भाषा' को दिए साक्षात्कार में कुरैशी ने कहा कि वह नेपाल में हो रहे घटनाक्रम को लोकतंत्र की जड़ें जमने के संकेत के रूप में देखते हैं, क्योंकि वहां आंदोलन ‘‘लोकतांत्रिक'' था और कुछ ही दिनों में चीजें सुलझ गईं. उन्होंने पुस्तक में दक्षिण एशिया के देशों की लोकतांत्रिक यात्रा का वर्णन किया है.
कुरैशी ने कहा, ‘‘यह एक जीवंत और गतिशील लोकतंत्र का प्रतीक है, अराजकता का नहीं. निश्चित रूप से भ्रष्टाचार था और राजनीतिक अस्थिरता थी. पिछले पांच वर्षों में पांच प्रधानमंत्री और 70 वर्षों में सात संविधान बने हैं. इसलिए, राजनीतिक अस्थिरता नेपाल की पहचान रही है, लेकिन साथ ही उनका नवीनतम 2015 का संविधान बहुत अच्छा है, क्योंकि इसमें महिलाओं को बहुत अधिक शक्ति दी गई है.''
उन्होंने कहा, ‘‘मेरे लिए, छात्रों का सड़कों पर उतरना लोकतंत्र है, अराजकता नहीं. वे और अधिक लोकतंत्र चाहते हैं, सच्चा और ईमानदार लोकतंत्र.'' उनकी यह टिप्पणी नेपाल में ‘जेन जेड' समूह के व्यापक विरोध प्रदर्शन के बीच, प्रधानमंत्री के. पी. शर्मा ओली द्वारा इस्तीफा देने के कुछ दिनों बाद आई है. प्रदर्शनकारियों की प्रमुख मांगों में भ्रष्टाचार पर नकेल कसना, पक्षपात खत्म करना और सोशल मीडिया साइटों पर प्रतिबंध हटाना शामिल था.
Gen-Z कौन हैं?
‘जेन जेड' वे युवा हैं, जिनका जन्म 1997 से 2012 के बीच हुआ है. उन्होंने कहा, ‘‘शायद यह कदम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की स्वतंत्रता के खिलाफ था... यह महसूस किए बिना कि वे नेपाल में हर किसी के जीवन का हिस्सा बन गए हैं.'' कुरैशी ने बताया कि 10 प्रतिशत नेपाली विदेश में रहते हैं और उनका परिवार से संपर्क केवल सोशल मीडिया के माध्यम से ही होता है और इसी कारण कई लोग सड़कों पर उतर आए.
पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त (सीईसी) ने कहा कि भारत और अन्य सभी के लिए सबक यह है कि युवाओं को हल्के में न लें, क्योंकि एक बार वे आक्रोशित हो जाएं तो उन्हें रोक पाना बहुत मुश्किल होता है और स्वतंत्रता के साथ छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए तथा सोशल मीडिया को विनियमित करने में बहुत सावधानी बरतनी चाहिए. जगरनॉट बुक्स द्वारा प्रकाशित अपनी पुस्तक में, कुरैशी भारत में लोकतंत्र की वर्तमान स्थिति की भी आलोचना करते नजर आते हैं.
सोमवार को जारी होगी उनकी पुस्तक
सोमवार को जारी होने वाली इस पुस्तक में उन्होंने कहा है, ‘‘मीडिया पर नियंत्रण, चुनावी वित्तपोषण में दबदबा और विपक्ष के दमन के जरिए, तुर्की या रूस जैसे अनुदार लोकतंत्र के मॉडल की ओर भारत बढ़ रहा है.'' पुस्तक में किये गए इस आकलन के बारे में पूछे जाने पर कुरैशी ने कहा, ‘‘यह तथ्य कि सरकार अधिनायकवाद, बहुसंख्यकवाद के संकेत दे रही है, यह सर्वविदित है, हर कोई इसके बारे में बात कर रहा है. जिस तरह से वे किसी भी असहमतिपूर्ण आवाज पर सख्ती से पेश आते हैं, जिस तरह से मीडिया को नियंत्रित किया गया है - उसे या तो खरीद लिया गया है या डराकर अधीनता में ले लिया गया है.''
उन्होंने कहा, ‘‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता शायद ही कहीं बची है. जो भी मीडिया संस्थान अभी भी खड़ा है, उन पर छापे मारे जा रहे हैं और वे जांच के दायरे में हैं. ये लोकतंत्र के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं. यह केवल इसलिए संभव है, क्योंकि भारत में लोकतंत्र ने जड़ें जमा ली हैं, और विश्व स्तर पर लोकतंत्र ने लचीलापन दिखाया है, कि हम मौजूदा हालात का सामना कर पा रहे हैं. आशा है कि वह जीवंत लोकतंत्र, जिसके लिए भारत जाना जाता है, फिर से बहाल होगा.''
हालांकि, उन्होंने दावा किया कि इस समय भारत ‘‘निस्संदेह एक अनुदार लोकतंत्र'' है. कुरैशी ने कहा, ‘‘हमें भ्रम में नहीं जीना चाहिए और अपनी झूठी तारीफ नहीं करनी चाहिए. हमें ईमानदारी से आत्मावलोकन करना चाहिए. हमें अपनी ताकत पहचाननी चाहिए और हमारे पास यह बहुत है.'' उन्होंने यह भी कहा कि पिछले 70 वर्षों में तीन तख्तापलट के साथ पाकिस्तान ने लोकतांत्रिक मोर्चे पर इस क्षेत्र में सबसे खराब प्रदर्शन किया है.
उन्होंने कहा, ‘‘मुझे खुशी है कि नेपाल के सेना प्रमुख राजनीति से दूर रहे हैं, अन्यथा तख्तापलट का मौका मिल जाता. हालांकि, सरकार गिर गई थी और वह हस्तक्षेप कर सत्ता संभाल सकते थे. नेपाल में लोकतंत्र अभी भी है. लेकिन पाकिस्तान में यह धराशायी हो गया है.'' बांग्लादेश के बारे में बात करते हुए, कुरैशी ने कहा कि उस देश का भी दो सैन्य तख्तापलट के साथ एक उतार-चढ़ाव भरा रिकॉर्ड रहा है.
उन्होंने कहा, ‘‘दिलचस्प बात यह है कि पिछले कुछ दशकों में दो महिलाओं ने राजनीतिक परिदृश्य पर अपना दबदबा बनाया है और शेख हसीना कुछ अधिक ही तानाशाह हो गईं, इसलिए यही सबक है. अगर आप तानाशाह बन जाते हैं, तो जनता देर-सवेर जवाब देगी.'' उन्होंने याद करते हुए कहा, ‘‘वहां चुनावों से महीनों पहले, मैं शेख हसीना से मिला था और उन्होंने जिक्र किया था कि ‘‘अमेरिका मेरे पीछे पड़ा है और वे चाहते हैं कि मैं अपनी ही विरोधी खालिदा जिया से दोस्ती करूं.'' कुरैशी ने कहा, ‘‘उन्होंने (हसीना) कहा था कि जिस दिन मैं (जो) बाइडन और (डोनाल्ड) ट्रंप को हाथ पकड़े देखूंगी, मैं भी उन्हें गले लगा लूंगी.''
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