
- नेपाल में जारी हिंसा के चलते भारतीय सेना ने छुट्टी पर नेपाल गए गोरखा सैनिकों की छुट्टी बढ़ा दी है
- अग्निपथ योजना के कारण नेपाल से गोरखा सैनिकों की भर्ती लगभग पूरी तरह से बंद हो गई है
- नेपाल सरकार ने साफ कहा है कि वह अपने युवाओं की केवल चार साल की अग्नवीर भर्ती नहीं चाहती है
नेपाल में छिटपुट हिंसा का दौर जारी है. ऐसे में सेना उन गोरखा सैनिकों के लगातार संपर्क में है जो छुट्टी में अपने घर नेपाल गए हैं. फिलहाल सेना ने नेपाल गए अपने सैनिकों की छुट्टी बढ़ा दी है जो नेपाल में हिंसा की वजह से स्वदेश नहीं आ पा रहे हैं. यही नहीं सेना ने उन जवानों को नेपाल ना जाने की सलाह दी है जो छुट्टी पर अभी नेपाल जाना चाहते हैं. इनकी छुट्टी को तत्काल होल्ड पर रख दिया गया है.
हलांकि, यह भी सच है कि अब भारतीय सेना में भर्ती होने के लिए नेपाल से नए गोरखा नहीं आ रहे हैं. करीब तीन साल पहले जब सेना में जवान स्तर पर भर्ती के लिए अग्निपथ स्कीम लाई गई थी तब इस स्कीम के तहत अग्निवीरों की भर्ती हुई थी. इन अग्निवीरों की सेना में भर्ती केवल चार साल के लिए हुई है. चार साल पूरे होने पर इनमें से 75 फीसदी अग्निवीर सेना से बाहर हो जाएंगे और केवल 25 फीसदी ही सेना में नौकरी कर पाएंगे. जब से यह स्कीम आई है तब से नेपाल के गोरखाओं की सेना में भर्ती रुक गई है. इस स्कीम के तहत नेपाल अपने युवाओं को सेना में भेजना नहीं चाहता है. नेपाल का साफ कहना है कि उनके युवाओं की पहले की तरह सेना में भर्ती हो यानि वह स्थायी तौर पर लिए जाएं और चार साल में ही उन्हें सेना न छोड़नी पड़े.
आपको बता दें कि सेना में अग्निवीर स्कीम से पहले हर साल एक से डेढ़ हजार नेपाल के गोरखाओं की भर्ती सेना में होती थी जो अब नहीं हो रही है. सेना और सरकार ने नीतिगत नियम के तहत नेपाल को साफ बता दिया कि केवल नेपाल के युवकों के लिए वह नियम में बदलाव नहीं कर सकती है. यही वजह है कि अब भारतीय सेना में नेपाल के गोरखा कम होते जा रहे हैं. अब सेना में नेपाल के वही गोरखा सैनिक बचे हैं जो जून 2022 के पहले सेना में भर्ती हुए हैं. इनमें से कई गोरखा सैनिक रिटायर हो चुके हैं.
वैसे सेना में नेपाल के गोरखा आजादी के समय से ही रहे हैं. ये पहले ब्रिट्रिश आर्मी के हिस्सा थे. देश के आजाद होने के बाद वे भारतीय सेना का हिस्सा बने. आजादी के वक्त सेना में 10 गोरखा रेजिमेंट्स थीं. आजादी के बाद 6 रेजिमेंट भारत के हिस्से और 3 रेजिमेंट ब्रिट्रेन के हिस्से आई. वहीं एक रेजिमेंट को खत्म कर दिया गया. बाद में जाकर सेना में एक और गोरखा रेजिमेंट बनाई गई. अब भारतीय सेना मे सात गोरखा रेजिमेंट्स हैं जिनमें 43 से ज्यादा बटालियन है. इसमें केवल नेपाली गोरखा हीं नही होते थे.
पहले करीब 90 फीसदी गोरखा जवान नेपाल के होते थे और बाकी बचे 10 फीसदी भारत के होते थे. समय के साथ सेना में नेपाली गोरखा और भारतीय गोरखा सैनिकों का अनुपात बदलने लगा. हालात यह हो गए कि सेना में पहले गोरखा रेजिमेंट में 60 फीसदी नेपाल के तो 40 फीसदी गोरखा भारत के होते थे. अग्निपथ स्कीम के बाद नेपाल ने अपने युवकों को सेना में भेजना बंद कर दिया तो उसकी जगह उत्तराखंड, सिक्किम और दार्जिलिंग से गोरखाओं को लेना शुरु कर दिया. यह नहीं भूलना चाहिए यह वही गोरखा रेजिमेंट है जिसके बार में सैम बहादुर मानेकशॉ कहा करते थे कि अगर कोई व्यक्ति कहता है कि वह मरने से नहीं डरता तो वह या तो झूठ बोलता है और या तो वह एक गोरखा है.
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