विज्ञापन

ISRO का धरती से आसमान का सफर : साइकिल से रॉकेट, बैलगाड़ी से ढोया पैलोड... चांद पर रखा कदम और सूरज से मिलाई आंख

National Space Day: भारत ने अपना स्पेस रिसर्च प्रोग्राम 1962 में शुरू किया था. लंबे वक्त तक ISRO बेहद लिमिटेड रिसोर्सेज के साथ काम करता रहा. कभी ISRO को अपने रॉकेट ले जाने के लिए साइकिल तक का इस्तेमाल करना पड़ा था.

ISRO का धरती से आसमान का सफर :  साइकिल से रॉकेट, बैलगाड़ी से ढोया पैलोड... चांद पर रखा कदम और सूरज से मिलाई आंख
1981 में पैलोड ले जाने के लिए ISRO को बैलगाड़ी की मदद लेनी पड़ी थी.
नई दिल्ली:

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने भारत के लूनर मिशन चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3)की सफलता का सम्मान करते हुए 23 अगस्त को आधिकारिक तौर पर राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस घोषित किया था. इसी दिन चंद्रयान-3 ने चांद के साउथ पोल पर सॉफ्ट लैंडिंग करके इतिहास रच दिया था. ऐसा करने वाला भारत दुनिया का पहला देश है. चंद्रयान-3 के साउथ पोल पर लैंडिंग के एक साल पूरे होने पर 23 अगस्त (शुक्रवार) को देश अपना पहला राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस मनाने जा रहा है. 

ISRO की ऑफिशियल वेबसाइट के मुताबिक, भारत की स्पेस एजेंसी ISRO यानी इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन आज स्पेस में नई इबारत लिख रहा है. हम चांद पर कदम रख चुके हैं. चांद के उस कोने तक जा चुके हैं, जहां आज तक कोई नहीं जा पाया है. अब तक हम सूरज के नजदीक भी पहुंच चुके हैं. ISRO का सोलर मिशन आदित्य L-1 स्पेसक्राफ्ट 126 दिनों में 15 लाख किमी की दूरी तय करने के बाद 6 जनवरी को सन-अर्थ लैग्रेंज पॉइंट 1 (L1) पर पहुंच गया. आदित्य-L1 अब अपने 7 पैलोड की मदद से 5 साल तक सूरज की स्टडी करेगा. स्पेस में L1 ऐसा पॉइंट है, जहां पृथ्वी और सूर्य की गुरुत्वाकर्षण शक्तियां (Gravitational Force) संतुलित होती हैं. 

हालांकि, ISRO का जमीन से आसमान और आसमान के पार तक जाने का सफर इतना आसान नहीं था. भारत ने अपना स्पेस रिसर्च प्रोग्राम 1962 में शुरू किया था. लंबे वक्त तक ISRO बेहद लिमिटेड रिसोर्सेज के साथ काम करता रहा. कभी ISRO को अपने रॉकेट ले जाने के लिए साइकिल तक का इस्तेमाल करना पड़ा था. यही नहीं, 1981 में भारत ने जब अपना छठा सैटेलाइट एप्पल लॉन्च किया था, तब इसे पैलोड तक बैलगाड़ी से ले जाना पड़ा था.

आइए जानते हैं ISRO ने कैसे तय किया धरती से आसमान तक का सफर? सामने आई कौन-कौन सी चुनौतियां? ISRO के कौन-कौन से मिशन लाइनअप में हैं:-

कब हुई ISRO की स्थापना?
साइंटिस्ट डॉ. विक्रम साराभाई ने 1962 में इंडियन नेशनल कमेटी फॉर स्पेस रिसर्च (INCOSPAR) बनाई. डॉ. साराभाई के नेतृत्व में INCOSPAR ने तिरुवनंतपुरम में थुम्बा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन (TERLS) की स्थापना की गई. इन्कोस्पार टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च के तहत काम करती थी. 15 अगस्त 1969 इसका नाम इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन कर दिया गया. यानी इसी दिन ISRO की स्थापना हुई. 

कब हुई पहली लॉन्चिंग?
भारत ने अपना पहला रॉकेट 21 नवंबर 1963 को लॉन्च किया था. यह एक नाइक अपाचे रॉकेट था, जिसे अमेरिका से लिया गया था. नाइक अपाचे रॉकेट को सिर्फ इसलिए छोड़ा गया था, ताकि ISRO को अपनी लॉन्चिंग पावर के बारे में मालूम हो सके. आसान शब्दों में कहे तो ये टेस्टिंग खुद की टेस्टिंग के लिए थी. 

Latest and Breaking News on NDTV

Photo Credit: ANI

साइकिल से लाई गई थी रॉकेट
रॉकेट की लॉन्चिंग के लिए स्थानीय चर्च से जगह लेनी पड़ी थी. तब गांववालों को वहां से शिफ्ट किया गया था. चर्च के बिशप के घर को लैब बनाया गया था. रॉकेट को लॉन्च पैड तक ले जाने के लिए कोई कैरियर नहीं था. लिहाजा तब राकेट के पार्ट्स को साइकिल से लॉन्च पैड तक ले जाया गया. डॉ. होमी भाभा जैसे एलीट साइंस्टिस्‍ट्स की मौजूदगी में ये रॉकेट लॉन्च हुआ था.

भारत का पहला रॉकेट रोहिणी-75 
इसके बाद ISRO ने अपना रॉकेट भी लॉन्च किया. भारत में बना पहला रॉकेट रोहिणी-75 था. ISRO ने इसे 20 नवंबर 1967 को लॉन्च किया था. ये रॉकेट टेक्नोलॉजी बनाने की ताकत परखने के लिए था.

1975 में लॉन्च किया पहला सैटेलाइट
ISRO धीरे-धीरे आगे बढ़ता जा रहा था. आर्यभट्ट भारत का पहला सैटेलाइट था. इसे 19 अप्रैल 1975 को लॉन्च किया गया था. 360 किलोग्राम वजनी इस सैटेलाइट का नाम महान मैथेमैटेशियन और एस्ट्रोनॉमर आर्यभट्ट के नाम पर रखा गया था. आर्यभट्ट को मैसेज भेजने के लिए बहुत बड़े एंटेना का इस्तेमाल किया जाता था.


फिर बना पहला रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट
स्पेस एजेंसी ने 7 जून 1979 को अपना दूसरा सैटेलाइट भास्कर-1 लॉन्च किया. यह भारत का पहला रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट था. भास्कर-1 की भेजी फोटो का इस्तेमाल जंगल, पानी और समुद्र के बारे में जानकारी जुटाई जाती थी.

जब बैलगाड़ी से लाए गए पैलोड
18 जुलाई 1980 को पहला स्वदेशी सैटेलाइट SLV-3 लॉन्च किया. 1981 में ISRO का पहला कम्युनिकेशन सैटेलाइट लॉन्च हुआ. जब कम्युनिकेशन सैटेलाइट के लिए टेस्ट करना था, तब पैलोड ले जाने के लिए ISRO को बैलगाड़ी की मदद लेनी पड़ी थी.

PSLV इसरो का पहला ऑपरेशनल लॉन्च व्हीकल
पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV) इसरो का पहला ऑपरेशनल लॉन्च व्हीकल है. इसने पहले उड़ान 20 सितंबर 1993 को भरी थी. यह ISRO का अभी तक का सबसे कामयाब लॉन्च व्हीकल है. PSLV ने अब तक 39 उड़ान भरी हैं, जिनमें से 37 पूरी तरह कामयाब रही हैं.

Latest and Breaking News on NDTV

भारत ने अपना GPS सिस्टम बनाया
कारगिल युद्ध में दुश्मन की लोकेशन का पता लगाने के लिए अमेरिका के GPS की जरूरत पड़ी थी, लेकिन अमेरिका ने मदद से इनकार कर दिया था. तभी भारत ने ठान लिया था कि वो अपना GPS बनाकर रहेगा. मई 2006 में भारत सरकार ने GPS या ग्लोनास जैसी विदेशी सिस्टम पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए अपना नेविगेशन सिस्टम विकसित करने का फैसला किया. NavIC भारत को अपने नेविगेशन और टाइमिंग डेटा पर बेहतर कंट्रोल देता है.

फिर चांद की तरफ बढ़ाए कदम
ISRO ने 22 अक्टूबर 2008 को पहला लूनर मिशन लॉन्च किया. चंद्रयान-1 भारत का पहला मून मिशन था. इसने चंद्रमा के चारों ओर 3,400 से ज्यादा चक्कर लगाए. इसके साथ ही भारत चंद्रमा पर मौजूदगी दर्ज कराने वाला छठा देश बन गया. इससे पहले अमेरिका, रूस, जापान, चीन और यूरोप अपने स्पेसक्राफ्ट चंद्रमा पर भेज चुके हैं. 29 अगस्त 2009 को स्पेसक्राफ्ट से संपर्क टूटने के बाद मिशन खत्म हो गया.

Latest and Breaking News on NDTV

मंगल ग्रह पर मौजूदगी दर्ज कराने वाला तीसरा देश
ISRO ने 5 नवंबर 2013 को मिशन मंगल के लिए मंगलयान-1 लॉन्च किया. इस ग्रह पर अपनी मौजूदगी दर्ज कराने वाला अमेरिका और रूस के बाद भारत तीसरा देश बना. इस मिशन की सबसे खास बात ये रही कि ISRO ने यह कामयाबी पहली ही कोशिश में हासिल की. यानी अपनी पहली ही कोशिश में भारत मंगल ग्रह की कक्षा में पहुंचने वाला दुनिया का पहला देश बन गया. इस मिशन को सिर्फ 400 करोड़ रुपये में पूरा किया गया. 

एकसाथ लॉन्च किए 104 सैटेलाइट्स 
इसके बाद 15 फरवरी 2017 को भारत ने एकसाथ 104 सैटेलाइट्स स्पेस में भेजकर रूस का रिकॉर्ड तोड़ दिया. रूस के नाम एक बार में 37 सैटेलाइट्स भेजने का रिकॉर्ड था.

2019 में टूटा सबका दिल, लेकिन उम्मीद नहीं टूटी
2019 में ISRO ने चंद्रयान-2 लॉन्च किया था. चंद्रयान-2 जब चंद्रमा की सतह पर उतरने ही वाला था कि लैंडर विक्रम से संपर्क टूट गया. इस तरह आखिरी वक्त में चंद्रयान-2 का 47 दिनों का सफर अधूरा रह गया. भारत का यह मून मिशन चंद्रमा की सतह से 2.1 किलोमीटर दूर रह गया था. 2019 में हुई इस घटना से सबका दिल टूटा. ISRO चीफ की आंखों से बहे आंसुओं को देखकर सबकी आंखें नम हुई थीं. लेकिन उम्मीद किसी की नहीं टूटी थी. फिर वो वक्त भी आया, जिसपर हर हिंदुस्तानी को फक्र महसूस हुआ और ताउम्र महसूस होता रहेगा.

Latest and Breaking News on NDTV

चांद के साउथ पोल पर भारत ने रखे कदम
चंद्रयान-3 को ISRO ने 14 जुलाई 2023 को लॉन्च किया था. इसमें तीन हिस्से थे- प्रोपल्शन मॉड्यूल, लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान. प्रोपल्शन मॉड्यूल को चंद्रमा की कक्षा में स्थापित किया गया था. लैंडर और रोवर ने 23 अगस्त 2023 को चंद्रमा के साउथ पोल पर लैंडिंग की थी. चांद के इस कोने पर अब तक कोई भी देश नहीं पहुंच पाया है. चंद्रयान-3 ने चांद के साउथ पोल पर जहां लैंडिंग की थी, उस जगह को पीएम मोदी ने शिव शक्ति बिंदु नाम दिया है. 

ISRO का आगे का क्या है प्लान?
-चंद्रयान-3 की सफलता के बाद अब ISRO चंद्रयान-4 और चंद्रयान-5 की तैयारी कर रहा है. ISRO चीफ डॉ. एस. सोमनाथ ने हाल ही में एक इंटरव्यू में इसकी जानकारी दी थी. 
-चंद्रयान-4 और चंद्रयान-5 मिशन में चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग के बाद चंद्रमा के पत्थरों और मिट्टी को पृथ्वी पर लाना, चंद्रमा से एक अंतरिक्ष यान को लॉन्च करना और सैंपल को पृथ्वी पर वापस लाना शामिल है. 
-ISRO का गगनयान मिशन इस साल दिसंबर में लॉन्च होने वाला है. ये भारत का पहला मानव अंतरिक्ष उड़ान मिशन है, जिसके तहत 4 एस्ट्रोनॉट्स स्पेस में जाएंगे. गगनयान में 3 दिनों का मिशन होगा, जिसके तहत एस्ट्रोनॉट्स के दल को 400 KM ऊपर पृथ्वी की कक्षा में भेजा जाएगा. इसके बाद क्रू मॉड्यूल को सुरक्षित रूप से समुद्र में लैंड कराया जाएगा.
-ISRO अगले पांच साल में अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट्स की पूरी सीरीज लॉन्च करने की भी योजना बना रहा है.
-वहीं, मिशन वीनस (Mission Venus)को फिलहाल ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है. हम मिशन का ISRO री-वैल्यूवेशन करेगा.
 

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com