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This Article is From Oct 05, 2022

यहां के दशहरे में न राम होते हैं और न रावण, जानें क्यों खास है मैसूर का दशहरा?

मैसूर का दशहरा अन्य दशहरों से अलग है, क्योंकि यहां न राम होते हैं और न ही रावण का पुतला जलाया जाता है. बल्कि देवी चामुंडा के राक्षस महिसासुर का वध करने पर धूमधाम से दशहरा मनाया जाता है.

यहां के दशहरे में न राम होते हैं और न रावण, जानें क्यों खास है मैसूर का दशहरा?
मैसूर दशहरा का आयोजन सबसे पहले 1610 में आयोजित किया गया था.

पूरे देश में आज दशहरा (Mysore Dussehra Celebration 2022) मनाया जा रहा है. वैसे तो यह त्योहार पूरे भारतवर्ष विशेषकर उत्तर भारत में मनाया जाता है, लेकिन मैसूर का दशहरा सबसे अलग और अनूठा है. मैसूर का दशहरा अन्य दशहरों से अलग है, क्योंकि यहां न राम होते हैं और न ही रावण का पुतला जलाया जाता है. बल्कि देवी चामुंडा के राक्षस महिसासुर का वध करने पर धूमधाम से दशहरा मनाया जाता है. यहां दशहरा समारोह का आयोजन नवरात्रि (Navratri) के पहले दिन से ही शुरू हो जाता है. लगभग 10 दिन तक चलने वाले इस त्योहार में लाखों की तादाद में पर्यटकों का जमावड़ा लगता है. 10 दिनों तक चलने वाला दशहरे का उत्‍सव चामुंडेश्वरी देवी द्वारा महिषासुर के वध का प्रतीक माना जाता है. इस उत्सव की शुरुआत देवी चामुंडेश्वरी मंदिर में पूजा अर्चना से शुरू होती है. 

मैसूर के इस दशहरे का इतिहास सदियों पुराना है. कहा जाता है कि चौदहवी शताब्दी में सबसे पहली बार हरिहर और बुक्का नाम के दो भाइयों ने नवरात्रि का उत्सव मनाया था. इसके बाद वाडियार राजवंश के शासक कृष्णराज वडियार ने इसे दशहरे का नाम दिया और तब से 10 दिन के उत्सव की परंपरा चली आ रही है. इस साल मैसूर इस भव्य त्योहार की 408 वीं वर्षगांठ मनाने जा रहा है. आइए जानते हैं मैसूर के दशहरे की खास बातें...

राजवंश विजयनगर ने की थी शुरुआत
मैसूर दशहरा का आयोजन सबसे पहले 1610 में आयोजित किया गया था. इस त्योहार को यहां मनाने की शुरुआत 15वीं शताब्दी में दक्षिण के सबसे शक्तिशाली राजवंश विजयनगर ने की थी. यह त्योहार विजयनगर साम्राज्य के इतिहास में एक अहम भूमिका अदा करता है. कई इतिहासकारों ने अपने वृतांतों और लेखों में इस मैसूर दशहरें का उल्लेख विजयनगर के सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक पर्व के रूप में किया है. उस दौरान त्योहार के साथ-साथ कई विशेष कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता था, जिसमें गायन-वादन, परेड, जुलूस आदि शामिल थे.

रोशनी से जगमगाती है चामुंडी पहाड़ी
चामुंडेश्वरी देवी चामुंडी पहाड़ियों पर विराजमान हैं. दशहरे के मौके पर इस पहाड़ी को डेढ़ लाख से ज्यादा बिजली के बल्बों से सजाया जाता है. वहीं मैसूर महल की सजावट में 90 हजार से अधिक बिजली बल्बों का उपयोग होता है. दशहरे के जुलूस में सजे-धजे हाथियों पर साढ़े 700 किलो के सोने के सिंहासन पर विराजमान होकर चामुंडेश्वरी देवी निकलती है. चामुंडेश्वरी देवी की पहली पूजा रॉयल फैमिली करती है. सोने का यह सिंहासन मैसूर के कारीगरों की कारीगरी का अद्भुत नमूना है, जो कि साल में केवल एक बार विजयदशमी पर माता की सवारी के लिए उपयोग किया जाता है.

मैसूर पैलेस की होती है शानदार सजावट
इस दिन मैसूर पैलेस की रौनक देखने लायक होती है. पूरे महल को किसी दुल्हन की तरह सजाया जाता है. आधुनिक रंग-बिरगी लाइटों से महल की दीवारों, छत व आसपास की जगहों को सजाया जाता है. जानकारी के अनुसार दशहरे के खास अवसर पर पैलेस को जगमगाने के लिए 100,000 लाइटों का इस्तेमाल किया जाता है, जो शाम 7 बजे से लेकर रात 10 बजे तक निरंतर जलती हैं. अगर आप भी यहां के शाही दशहरे और महल की जगमगाहट को करीब से देखना चाहते हैं तो इस त्योहार का हिस्सा जरूर बनें.

गाजे-बाजे के साथ निकलती है शोभा यात्रा
मैसूर दशहरे के अवसर पर महल को सजाने, गायन-वादन कार्यक्रमों के अलावा एक विशेष शाही शोभायात्रा भी निकाली जाती है, जिसे देखने के लिए पर्यटकों का भारी जमावड़ा लगता है. यह शोभायात्रा दशहरे के अंतिम दिन यानी विजयदशमी के दिन आयोजित की जाती है, जिसे स्थानीय रूप से जंबू सवारी भी कहा जाता है. इस यात्रा का मुख्य आकर्षण मां दुर्गा की मूर्ति होती है, जो सजे-धजे हाथी पर रखे स्वर्ण मंडप(हौदा) पर विराजित की जाती है. गाजे बाजे के साथ यह शोभायात्रा निकाली जाती है.

कला, संस्कृति का अद्भुत संयोग
यह पर्व  ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होने के साथ कला, संस्कृति और आनंद का अद्भुत संयोग है. दशहरा के दौरान यहां हर साल करीब 6 लाख से अधिक पर्यटक आते हैं. सांस्कृतिक कार्यक्रम खेल-कूद, गोम्बे हब्बा, जम्बो सवारी पर्यटकों को खासतौर पर आकर्षित करती है.

लगती है प्रदर्शनी
इस भव्य त्योहार का एक मुख्य आकर्षण यहां लगने वाली प्रदर्शनी भी है, जो दशहरा प्रदर्शनी स्थल पर लगाई जाती है, जो मैसूर पैलेस के ठीक सामने है. माना जाता है कि इस प्रदर्शनी की शुरुआत मैसूर के महाराजा चामराजा वाडियार दशम ने 1880 में की थी. दशहरे के मुख्य के हिस्से के रूप में यह खास प्रदर्शनी प्रतिवर्ष आयोजित की जाती है. यहां कई दुकाने भी लगाई जाती है, जहां से आप कपड़े, साज-सज्जा के सामान आदि खरीद सकते हैं. प्रदर्शनी के अलावा इस दौरान यहां गायन-वादन जैसे कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं.
 

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