देश में हर अधिकारी-कर्मचारी को एक ही पेंशन मिलती थी लेकिन 'माननीय' यानी विधायकजी राज्य से दिल्ली चले जाएं तो सांसद की पेंशन, राज्यसभा चले जाएं तो 3 पेंशन, कई राज्यों में हर टर्म के हिसाब से पेंशन... मध्यप्रदेश हर मामले में अनूठा है, यहां विधायक से लेकर विधानसभा अध्यक्ष तक का दिल और मांग रहा है.तर्क ये कि कई राज्य ऐसी सुविधा देते हैं. मध्यप्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष गिरीश गौतम की बात करें तो पद पर रहते हुए उन्होंने सरकार को रिटायरमेंट प्लान सौंपा है. मांग की है कि पूर्व स्पीकर को भी कैबिनेट मंत्री जैसे वेतन-भत्ते, सुविधाएं मिलें. फिलहाल पूर्व मुख्यमंत्री इसके हक़दार हैं.
इस मसले पर मप्र विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम कहते हैं, "जो स्पीकर हैं उनका नाम प्रोटोकॉल में बहुत नीचे है. अब 17वें पर लाया जाया है. तर्क ये दिया कि जिस लोकायुक्त की नियुक्ति में हस्ताक्षर स्पीकर के होते हैं, प्रोटोकॉल में पद मिलने पर वो ऊपर हो जाएगा और हम नीचे. पूर्व स्पीकर का कहीं जिक्र नहीं है इसलिये बस यही कहा कि पूर्व स्पीकर होने पर मिनिस्टर का दर्जा मिले." राज्य के संसदीय इतिहास में पहली बार किसी स्पीकर ने अपने रिटायरमेंट को लेकर ऐसा प्रस्ताव दिया है. प्रस्ताव स्वीकार होने पर बीजेपी से पूर्व स्पीकर डॉ. सीतासरन शर्मा और कांग्रेस से पूर्व स्पीकर डॉ. एनपी प्रजापति को भी ये सुविधाएं मिलेंगी. फिलहाल ये दोनों विधायक हैं. प्रस्ताव मंजूर हुआ त इन्हें 10000 किमी. की यात्रा का रेलवे कूपन, एक गाड़ी, 2 ड्राइवर और स्टॉफ, 350 लीटर ईंधन, स्वास्थ्य सेवा, वेतन, भत्ते और दूसरी सुविधाएं मिलाकर लगभग 2 लाख रु. महीना मिलेगा.
पूर्व विधायकों का भी रख रहे हैं ख्याल
वैसे अध्यक्ष जी सिर्फ अपना ही नहीं, पूर्व विधायकों का भी ख्याल रख रहे हैं, हाल में पूर्व विधायकों के सम्मेलन में 300 नेता पहुंचे. मांग आई कि पूर्व सांसदों-विधायकों को भी प्रोटोकाल सूची में शामिल किया जाए. दिल्ली के एमपी भवन में साल में 30 दिन तक रुकने की व्यवस्था हो. पेंशन राशि 60 हजार रुपये की जाए, साथ ही विधायक विश्राम गृह में 25 कमरे आरक्षित हों.गिरीश गौतम ने कहा, "कुछ उनको वृद्धि कर दी जाए, उनको लेकर कमरे आरक्षित कर दिये जाएं कम से कम 25 कमरे, और उनके लिये कुछ चाय नाश्ते का इंतजाम कर दिया (( पैच)) छत्तीसगढ़ कई राज्यों ने दिया है, पूर्व सांसद का नाम उल्लेख नहीं रहता सदस्य सुविधा समिति से निर्णय कराया है पूर्व सांसदों को 33वें, विधायकों को 34वें में शामिल करें."
पूर्व विधायकों की पेंशन पर सालाना 21 करोड़ रुपये खर्चती है सरकार
आंकड़ों के लिहाज से बात करें तो मध्यप्रदेश सरकार 450 से अधिक पूर्व विधायकों की पेंशन पर सालाना 21 करोड़ खर्चती है. पूर्व विधायकों को हर माह 35 हजार रुपए पेंशन मिलती है. हर दूसरे कार्यकाल में हर साल 800 रुपए की बढ़ोतरी होती है. इसके बाद वे जितने कार्यकाल पूरे करते हैं, उनकी पेंशन में हर बार 4 हजार रुपए की बढ़ोतरी हो जाती है. यही नहीं, दिल्ली में लोकसभा पहुंचने पर डबल और यदि राज्यसभा चले गये तो तीनों पेंशन के हक़दार होते हैं. गौरतलब है कि कांग्रेस के सवाल पर विधानसभान में राज्य सरकार ने साफ कहा कि पुरानी पेंशन पर लौटने का कोई इरादा नहीं है. 30 साल की सरकारी नौकरी के बाद एक कर्मचारी को 9 से10 हजार रुपये की न्यूनतम मासिक पेंशन मिलती थी. एनपीएस में 500 भी मिलता है लेकिन 'माननीय' एक दिन भी आएं तो कम से कम 35,000 मिलेंगे. कई विधायकों को 3-3 पेंशन मिल रही है. पता नहीं, सरकार अपने साथियों को एनपीएस (न्यू पेंशन स्कीम )के फायदे क्यों नहीं समझा पा रही है.
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