केंद्रीय मंत्री पॉन राधाकृष्णन (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
#MeToo के आरोप से घिरे एमजे अकबर को भले इस्तीफ़ा देना पड़ा हो और केंद्र सरकार की कई महिला मंत्री इस मुहिम के समर्थन में हों, लेकिन बीजेपी के कई नेता लगातार ये मुहिम चलाने वालों की नीयत पर शक कर रहे हैं. दूसरी तरफ़ दफ़्तरों में यौन उत्पीड़न के ख़िलाफ़ जिन लोगों ने विशाखा गाइडलाइन्स तैयार की है, उनकी राय है कि इसमें पुराने मामलों को शामिल करने की गुंजाइश पर विचार करना चाहिए.
#MeToo मुहिम चलाने वाली महिलाएं विकृत दिमाग़ की हैं- ये हैरान करने वाली राय किसी और ने नहीं, प्रधानमंत्री मोदी की सरकार में केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री पॉन राधाकृष्णन ने जताई है. तमिलनाडु के करूर में एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने ये कहा. पॉन राधाकृष्णन ने कहा, "अगर कोई आरोप लगाता है कि ऐसी चीज़ हुई है, जब घटना घटी तो हम पांचवीं में पढ़ते थे और साथ खेलते थे. क्या ये उचित है? ये मुहिम उन लोगों का काम है जो विकृत दिमाग़ के लोग हैं."
एनसीपी नेता माजिद मेनन ने पॉन राधाकृष्णन की आलोचना करते हुए कहा है कि उन्हें अपने बयान पर शर्म आनी चाहिये क्योंकि उन्होंने महिलाओं के अधिकार के खिलाफ ये बात कही है. जबकि #MeToo मुहिम ने इस बात की तरफ़ ध्यान खींचा है कि कामकाज की जगहों पर 1997 से लागू विशाखा गाइडलाइन्स को कुछ और ताक़त दी जाए.
विशाखा गाइडलान्स तैयार करने वाले जजों में एक सुप्रीम कोर्ट की रिटायर्ड जज जस्टिस सुजाता मनोहर ने इंडियन एक्सप्रेस को दिये इंटरव्यू में कहा है, "हमने यौन उत्पीड़न की उन घटनाओं के बारे में नहीं सोचा था जो अतीत में हुई हैं- उस तरह की, जिनकी अब शिकायत हो रही है. ये समय है कि हम यौन उत्पीड़न से निबटने के तरीक़ों पर फिर से विचार करें, ख़ासकर उन मामलों में जहां घटनाएं अतीत में घटी हैं. इन हालात में ख़ास तौर पर विशाखा गाइडलाइन्स पर फिर से विचार की ज़रूरत है."
VIDEO: #MeToo: एमजे अकबर पर आरोप लगाने वाली ग़ज़ाला वहाब से खास बातचीत
साफ है कि अब तक #MeToo मुहिम आरोप लगाने तक सीमित रही है, लेकिन वह पूरी तरह तब सार्थक होगी जब ये हालात बदलने की ज़मीन तैयार करेगी. #MeToo का अगला क़दम इस ओर जाता दिख रहा है.
#MeToo मुहिम चलाने वाली महिलाएं विकृत दिमाग़ की हैं- ये हैरान करने वाली राय किसी और ने नहीं, प्रधानमंत्री मोदी की सरकार में केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री पॉन राधाकृष्णन ने जताई है. तमिलनाडु के करूर में एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने ये कहा. पॉन राधाकृष्णन ने कहा, "अगर कोई आरोप लगाता है कि ऐसी चीज़ हुई है, जब घटना घटी तो हम पांचवीं में पढ़ते थे और साथ खेलते थे. क्या ये उचित है? ये मुहिम उन लोगों का काम है जो विकृत दिमाग़ के लोग हैं."
एनसीपी नेता माजिद मेनन ने पॉन राधाकृष्णन की आलोचना करते हुए कहा है कि उन्हें अपने बयान पर शर्म आनी चाहिये क्योंकि उन्होंने महिलाओं के अधिकार के खिलाफ ये बात कही है. जबकि #MeToo मुहिम ने इस बात की तरफ़ ध्यान खींचा है कि कामकाज की जगहों पर 1997 से लागू विशाखा गाइडलाइन्स को कुछ और ताक़त दी जाए.
विशाखा गाइडलान्स तैयार करने वाले जजों में एक सुप्रीम कोर्ट की रिटायर्ड जज जस्टिस सुजाता मनोहर ने इंडियन एक्सप्रेस को दिये इंटरव्यू में कहा है, "हमने यौन उत्पीड़न की उन घटनाओं के बारे में नहीं सोचा था जो अतीत में हुई हैं- उस तरह की, जिनकी अब शिकायत हो रही है. ये समय है कि हम यौन उत्पीड़न से निबटने के तरीक़ों पर फिर से विचार करें, ख़ासकर उन मामलों में जहां घटनाएं अतीत में घटी हैं. इन हालात में ख़ास तौर पर विशाखा गाइडलाइन्स पर फिर से विचार की ज़रूरत है."
VIDEO: #MeToo: एमजे अकबर पर आरोप लगाने वाली ग़ज़ाला वहाब से खास बातचीत
साफ है कि अब तक #MeToo मुहिम आरोप लगाने तक सीमित रही है, लेकिन वह पूरी तरह तब सार्थक होगी जब ये हालात बदलने की ज़मीन तैयार करेगी. #MeToo का अगला क़दम इस ओर जाता दिख रहा है.
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