कर्नाटक उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि कुछ इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की परिपक्वता का स्तर सही नहीं है और वे अपने सामने आने वाली किसी भी चीज पर भरोसा कर सकते हैं. अदालत ने यह टिप्पणी केंद्र सरकार के उस आदेश के खिलाफ अमेरिका स्थित माइक्रोब्लॉगिंग साइट ट्विटर की याचिका की सुनवाई के दौरान की, जिसमें केंद्र ने कहा था कि राष्ट्रीय और सार्वजनिक हित में ट्विटर को अपने प्लेटफॉर्म से कुछ खातों, ट्वीट और लिंक को हटा लेना चाहिए. न्यायमूर्ति कृष्णा एस दीक्षित ने कहा, ‘‘समाज के एक वर्ग का परिपक्वता स्तर उचित नहीं है. लोगों का एक वर्ग ऐसा है, जो अपने सामने आने वाले सभी चीजों पर भरोसा कर लेता है.''
वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक हरनहल्ली ने ट्विटर की ओर से दलील देते हुए कहा कि जिन लोगों के खाते बंद कर दिए गए हैं, उन्हें नोटिस देना एक प्रक्रियात्मक आवश्यकता है, लेकिन ऐसा नहीं किया जा रहा था. उन्होंने तर्क दिया कि संपर्क के कारणों की सलाह दी जाती है ताकि जिन लोगों का अधिकार प्रभावित हो, वे अपील कर सकें. ''सिर्फ इसलिए कि यह हमारे हित के खिलाफ है, क्या हमें किसी विदेशी हैंडल को ब्लॉक कर देना चाहिए?'' वरिष्ठ वकील ने पूछा और साथ ही दिल्ली में किसानों के प्रदर्शन का उदाहरण देते हुए कहा, ''कुछ ट्वीट मानहानिकारक हो सकते हैं, लेकिन क्या खातों को अवरुद्ध कर दिया जाना चाहिए?''
उन्होंने अपनी दलीलों को आज यह कहते हुए समाप्त किया किया कि नागरिकों को यह पता लगाने की आवश्यकता है कि कौन सी जानकारी सही है. हर कोई समाचार पत्रों पर निर्भर नहीं है. बहुत से लोग सोशल मीडिया का इस उद्देश्य के लिए इस्तेमाल करते हैं. उन्होंने तर्क दिया कि इसलिए सूचना के प्रवाह को अवरुद्ध करना गलत है. अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एमबी नरगुंड द्वारा अपनी दलीलें देने के लिए समय मांगे जाने के बाद मामले की सुनवाई 16 नवंबर तक के लिए स्थगित कर दी गई.
इससे पहले अदालत ने एक हस्तक्षेप आवेदन पर विचार करने से इंकार कर दिया. यह आवेदन ट्विटर खाता अवरुद्ध किए जाने के खिलाफ एक खाताधारक की और से दिया गया था. संक्षिप्त सुनवाई के बाद याचिकाकर्ता को आवेदन वापस लेने की अनुमति दी गई.
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