वैवाहिक विवादों में बच्चों को ‘गुलाम' या चल संपत्ति की तरह इस्तेमाल किए जाने पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए बंबई उच्च न्यायालय ने मंगलवार को एक महिला को अपने 15-वर्षीय बेटे के साथ थाईलैंड से भारत आने का निर्देश दिया, ताकि वह अपने पिता और भाई-बहनों से मिल सके. न्यायमूर्ति आर. डी. धानुका और न्यायमूर्ति गौरी गोडसे की खंडपीठ ने कहा कि इस तरह के विवाद हमारे देश में 'सबसे कड़वी लड़ाई वाले मुक़दमे हैं. खंडपीठ ने कहा कि एक बच्चे पर माता-पिता के अधिकारों से अधिक महत्वपूर्ण उस बच्चे का कल्याण है.
अदालत ने यह बातें एक एक व्यक्ति की याचिका की सुनवाई के दौरान कही. इस याचिका में व्यक्ति ने थाईलैंड में अपनी मां के साथ रहने वाले अपने 15-वर्षीय बेटे से मिलने की अनुमति देने का अनुरोध किया है. कोर्ट ने सुनवाई के दौरान ने कहा कि लड़के को अपने माता-पिता के बीच कड़वाहट भरे मुकदमे के कारण गहरा झटका लगा है और वह अपने पिता से मिलने का इच्छुक है.
खंडपीठ ने कहा कि बच्चों को गुलाम या संपत्ति के रूप में नहीं माना जा सकता है, जहां माता-पिता का अपने बच्चों के भाग्य और जीवन पर पूर्ण अधिकार हो. बच्चे का कल्याण सर्वोपरि है, न कि माता-पिता के कानूनी अधिकार. अलग रहे पति-पत्नी के दो बालिग बच्चे हैं, जिनमें एक पुत्र एवं एक पुत्री है. ये दोनों अपने पिता के साथ रहते हैं. याचिका में अनुरोध किया गया है कि अदालत महिला को गर्मी की छुट्टियों में बेटे को भारत लाने का निर्देश दे.
पीठ ने महिला को निर्देश दिया कि वह अपने बेटे के साथ भारत आए, ताकि वह अपने पिता और बड़े भाई-बहनों से मिल सके. अदालत ने कहा कि पिता महिला और उनके बेटे के भारत में रहने के दौरान उनकी गिरफ्तारी/हिरासत के लिए कोई शिकायत नहीं करेगा या कोई कार्रवाई नहीं करेगा. उच्च न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया कि संबंधित राज्य और केंद्रीय एजेंसियां यह सुनिश्चित करें कि बाद में उनकी थाईलैंड वापसी में कोई बाधा उत्पन्न न हो.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं