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This Article is From Sep 04, 2015

मणिपुर: चार दिन बाद भी शवों के अंतिम संस्कार को तैयार नहीं हैं चूड़ाचांदपुर के लोग

मणिपुर: चार दिन बाद भी शवों के अंतिम संस्कार को तैयार नहीं हैं चूड़ाचांदपुर के लोग
मणिपुर की आदिवासी महिलाएं विरोध प्रदर्शन करते हुए।
इंफाल: चूड़ाचांदपुर में सोमवार को हुई पुलिस फायरिंग में मारे गए लोगों के शव अब भी मुर्दाघर में हैं। उनके परिवार वाले इनका अंतिम संस्कार करने को तैयार नहीं हैं। इन लोगों का कहना है कि जब तक राज्य सरकार ‘उनके हक छीनने वाले’कानूनों को रद्द नहीं करती वह लोग अपनों का अंतिम संस्कार नहीं करेंगे।

मणिपुर का चूड़ाचांदपुर जिला आज कुकी आदिवासियों के गुस्से का प्रतीक बन गया है जिन्हें लगता है कि राज्य सरकार कानून बदलकर गैर आदिवासियों के लिए यहां के पहाड़ी इलाकों में जमीन खरीदने का रास्ता खोल रही है। अभी तक पहाड़ी इलाकों में आदिवासी ही जमीन ले सकते हैं लेकिन मणिपुर विधानसभा ने सोमवार को जो कानून बनाए हैं उनके लागू होने के बाद पहाड़ी इलाकों में गैर आदिवासियों के लिए ज़मीन खरीदना मुमकिन हो सकता है।
शव गृह में रखे पुलिस फायरिंग में मारे गए आंदोलनकारियों के शव।
कुकी आदिवासी समुदाय के वी गुलज़ाखम अपने भतीजे जाममिनखंग की फोटो के साथ मुर्दाघर के सामने चार दिन से बैठे हैं, जिसकी मौत सोमवार को हो गई थी। गुलजाखम कहते हैं ‘पुलिस ने निशाना लगा कर हमारे भतीजे को मारा है। जब तक हमारी मांग पूरी नहीं होगी तब तक हम अपने मरे हुए भतीजे को दफन नहीं करेंगे। जो तीन बिल सरकार ने पास किए हैं, जब तक वह उन्हें वापस नहीं लेगी हम नहीं मानेंगे। यह मांग हमारी नहीं बल्कि पांच पहाड़ी जिलों के उन सब लोगों की है जो इन कानूनों से प्रभावित होंगे।’

गुलजामखम की तरह बाकी लोग भी मारे गए परिवार वालों के अंतिम संस्कार के लिए तैयार नहीं हैं। हालांकि शवगृह की हालत अच्छी नहीं है। यहां शवों को अधिक दिन तक सुरक्षित रखने की व्यवस्था नहीं है। इसके बावजूद कूकी आदिवासी अपनी मांग पर अड़े हैं। इन लोगों ने ज़िला अस्पताल के गेट पर बड़ा सा बैनर टांग दिया है जिस पर अंग्रेजी में लिखा है ‘हमारे शहीद’। बैनर पर फायरिंग में मारे गए लोगों की तस्वीरें हैं। अस्पताल परिसर में और उसके बाहर सैकड़ों लोग जमा दिखते हैं जिनमें से ज़्यादातर महिलाएं हैं। उनके हाथ में तख्तियां हैं जिन पर ‘शहीदों’ के लिए लिखा है, ‘आप लोगों का ख़ून बेकार नहीं जाएगा।’

पहाड़ी इलाकों में रहने वाले आदिवासी कुकी समुदाय के हैं जो कहते हैं कि राज्य सरकार ने नए कानून मणिपुर की घाटी वाले इलाके में रहने वाले मैती समुदाय के फायदे के लिए बनाए हैं। एक महिला कहती है ‘हम विरोध करते हैं तो सरकार कोई चेतावनी दिए बगैर सीधे गोली मार रही है।’उसके हाथ में तख्ती है जिस पर लिखा है ‘घाटी के लोगों के लिए रबर बुलेट्स हमारे लिए रियल बुलेट्स!’
शवगृह के समीप मौजूद लोग।
एक लड़का गोली का खोखा दिखाते हुए कहता है कि पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर सीधे गोली चला दी और देखिये यह चीन की बनी हुई गोलियां हैं। गोली के खोखे से कुछ समझ में नहीं आता लेकिन अस्पताल के गेट पर टंगे बैनर पर लिखा है, ‘हमारे शहीद जिन्हें मणिपुर सरकार ने चीनी गोलियों से मारा।’

यह एक इत्तिफाक ही है कि कल ही घाटी में रहने वाले मैती समुदाय ने इम्फाल के एक छात्र राबिनहुड का अंतिम संस्कार करीब दो महीने बाद किया था। राबिन हुड इंफाल में एक रैली के दौरान पुलिस कार्रवाई में मारा गया था। उस रैली में मैती समुदाय अपने हितों के लिए इनर लाइन परमिट कानून बनाने की मांग कर रही थी जिसका कुकी आदिवासी विरोध कर रहे हैं।

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