मणिशंकर अय्यर कांग्रेस की ओर से राज्यसभा सदस्य हैं...
देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की 125वीं जयंती के अवसर पर उनके बारे में कुछ नई जानकारियां...
क्या आप जानते हैं...
- जवाहर लाल नेहरू 15 साल की उम्र तक स्कूल नहीं गए, उन्हें घर पर ही शिक्षा मिली। उन्होंने अपने अंग्रेजी साहित्य के शिक्षक एफटी ब्रुक्स से पढ़ने की बेहतरीन आदत सीखी, लेकिन संस्कृत शिक्षक पंडित गंगानाथ झा की काफी कोशिशों के बाद भी नेहरू संस्कृत में नाउम्मीद करते रहे।
- 15 साल की उम्र में नेहरू पढ़ने के लिए इंग्लैंड के हैरो स्कूल गए। उनका प्रदर्शन स्कूल में भी औसत ही था, लेकिन उनके प्रधानाचार्य उन्हें 'दिमाग वाला' मानते थे।
- उनका अपने पिता के साथ पहली बार मतभेद कांग्रेस के अंदर मौजूद उग्र विचारधारा वाले – बाल, पाल और लाल (बाल गंगाधर तिलक, बिपिन चंद्र पाल और लाला लाजपत राय) के मुद्दे पर हुआ था। बाल, पाल और लाल के समर्थकों ने वर्ष 1907 में सूरत में आयोजित कांग्रेस की सालाना बैठक के दौरान कुर्सियां फेंकी थीं और स्टेज को तोड़ दिया था। स्कूल से लिखे खत में नेहरू ने अपने पिता को, जो नरमपंथी कांग्रेसियों के साथ थे, लिखा था कि आप बिना संयम वाले नरमपंथी हैं...?
- कैम्ब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज में पढ़ने के दौरान, नेहरू ने कॉलेज की डिबेटिंग सोसाइटी को ज्वाइन किया था, लेकिन वह बोलने में संकोची थे और उन्हें इसके लिए जुर्माना भी भरना पड़ा था? इतना ही नहीं, भारतीय राजनीतिक सोसाइटी वाली मजलिस में भी वह कम बोलते थे?
- कैम्ब्रिज में छुट्टियों के दौरान नॉर्वे में नेहरू बर्फीले पानी के एक जलप्रपात में लगभग डूबने वाले थे, जब उनके एक ब्रिटिश दोस्त ने उन्हें बचाया। जब नेहरू को बचाया गया, तब वह जलप्रपात की नीचे गिरने जा रही धार से महज 200 गज दूर थे? लेकिन कुछ विचित्र और समझ में नहीं आने वाले कारण के चलते नेहरू ने अपनी आत्मकथा में अपने इस दोस्त का नाम नहीं लिखा है?
- जवाहरलाल नेहरू पहले भारतीय सिविल सेवा ज्वाइन करना चाहते थे, लेकिन बाद में उन्हें इस विचार को त्याग दिया। ऐसा उन्होंने किसी राष्ट्र प्रेम के चलते नहीं किया था, बल्कि उन्हें बेहद प्यार करने वाले उनके पिता नहीं चाहते थे कि बेटे की नौकरी के दौरान उनकी दूरदराज के इलाकों में तैनाती हो?
- नेहरू 23 साल की उम्र में इंग्लैंड से भारत लौटे। वह आठ साल विलायत में रहने के बाद भारत लौटे थे। नेहरू अपने आप को बेहद खूबसूरत मानते थे और यहां आरामपूर्वक जीवन जीना चाहते थे?
- अदालत में वकील के तौर पर पहला दिन बिताने के बाद उनके पिता ने उनसे कहा था कि तुम ज्यादा चिंतित मत हो, मैं इतना कमा चुका हूं कि परिवार की कई पीढ़ियों की गुजर-बसर आसानी से हो जाएगी?
- वह पहली बार कांग्रेस की बैठक में वर्ष 1912 में बांकीपुर में शामिल हुए थे। उन्होंने इस बैठक के बारे में लिखा, "अंग्रेजी जानने वालों और समाज के उच्च वर्ग लोगों की बैठक थी, जिसमें लोग कोट और अच्छी तरह इस्त्री की हुई पैंट पहने शामिल हुए थे। यह ऐसे लोगों की बैठक थी, जिसमें कोई राजनीतिक उत्साह या तनाव नहीं दिख रहा था"?
- जब नेहरू पहली बार 1916 में लखनऊ सत्र में गांधी से मिले तो उन्होंने महात्मा गांधी को "अलग, खास और अराजनीतिक" पाया था?
- वर्ष 1919 के जलियांवाला बाग हत्याकांड ने नेहरू और कांग्रेस को भी बदला। नेहरू को उस कमेटी का सदस्य बनाया गया था, जिसे हत्याकांड से पहले के घटनाक्रम की जांच करनी थी? तब नेहरू युवा थे, 30 साल के होने वाले थे। उन्हें इस जांच में सबूत मिला कि लोगों को हाथों और घुटनों के बल नहीं, कीड़ों की तरह छाती के बल रेंगने के लिए मजबूर किया गया?
- शायद इस अनुभव के बाद ही नेहरू का अपने पिता से दूसरी बार बड़ा मतभेद हुआ। पिता अपने प्यारे बेटे के जेल जाने की बात सुनकर काफी डर गए थे, वह खुद जेल जाने को बेकार मानते थे? इतना ही नहीं, गांधीजी ने भी जवाहरलाल को सलाह दी थी कि वह अपने पिता की सुनें?
- नेहरू ने अपनी जमीनी राजनीति की पहली दीक्षा 1920-21 में फीजी के एक गिरमिटिया मजदूर से ली, जो साधु बन चुका था। बाबा रामचंद्र नामक साधु ने अवध के किसानों का उत्पीड़न करने वाले ताल्लुकदारों और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ संघर्ष शुरू किया था?
- इन किसानों को जमींदारों को टैक्स देना पड़ता था। अगर जमींदार कार खरीदना चाहता तो किसानों को 'मोटरौना' के रूप में टैक्स देना होता था और अगर जमींदार हाथी खरीदना चाहते तो 'हथरौना' के तौर पर टैक्स वसूला जाता था? इसके अलावा ब्रिटिश सरकार ने लाशों के अंतिम संस्कार से जुड़ा कानून भी पारित किया था, जिसे स्थानीय तौर पर 'मुर्दाफरोशीकानून' कहते थे?
- नेहरू ने अपना पहला राजनीतिक भाषण रायबरेली के किसानों के बीच उस वक्त दिया, जब कुछ ही दूरी पर किसानों के कुछ साथी साई नदी के पार पुलिस की गोलियों से मारे जा रहे थे, लेकिन उस वक्त लोगों के अहिंसक रवैये से नेहरू को अहिंसा की पहली सीख मिली, जिसके बारे में उन्होंने लिखा, "मैंने उनसे अहिंसा पर पूरी विनम्रता से बात की - उनसे ज़्यादा मुझे इस सीख की जरूरत थी - उन्होंने मेरी सलाह मान ली और शांतिपूर्वक अपने-अपने घर लौट गए... वह भी तब, जब उनके साथियों की लाशें सामने थीं..." नेहरू ने आगे लिखा, "इन किसानों ने मेरा संकोच मुझसे ले लिया और मुझे सार्वजनिक तौर पर बोलना सिखाया..."?
- इस अनुभव के बाद नेहरू ने लिखा, "मेरा अब तक तलवार की ताकत पर विश्वास था, लेकिन इन किसानों के चलते मेरा अहिंसा पर भरोसा मजबूत हुआ। आम लोग अहिंसा की ताक़त को समझते हैं..."?
- स्वदेशी आंदोलन के लिए नेहरू ने अपने खास सेविले रो सूट की होलिका जलाई (उनके पिता ने भी ऐसा ही किया, जो इस आंदोलन से बाद में जुड़े)। इतना ही नहीं, उन्होंने इलाहाबाद में घर-घर जाकर विदेशी कपड़े मांगे, ताकि उन्हें एक साथ जलाया जा सके।
- गांधीजी द्वारा पहले असहयोग आंदोलन को वापस लेने (इसके लिए उन्हें बहुत खेद रहा) के बाद नेहरू जेल से रिहा हुए। उनका अपने पिता से एक बड़ा मतभेद इस दौरान भी उभरा। मुद्दा स्वराज पार्टी को ज्वाइन करने का था। इस पार्टी का गठन नेहरू के पिता ने गांधी जी के सलाह के उलट किया, ताकि वह केंद्रीय विधानसभा में प्रवेश कर सकें।
- नेहरू इलाहाबाद नगर निगम के चेयरमैन भी रहे, इस दौरान उन्होंने जो काम किया, उसे 2014 के साल में 'स्वच्छ इलाहाबाद अभियान' कहा जाता? उन्होंने इस दौरान नगर निगम के क्षेत्र में गोहत्या पर पाबंदी लगाने के एक प्रस्ताव को भी पारित नहीं होने दिया था?
- कांग्रेस की विरोध-प्रदर्शन वाली राजनीति के बंद होने से निराश और अपनी बीमार पत्नी कमला की स्वास्थ्य संबंधी देखभाल को लेकर चिंतित नेहरू मार्च, 1926 से दिसंबर, 1927 के बीच डेढ़ साल से भी लंबी अवधि के लिए यूरोप चले गए? इन छुट्टियों के दौरान उन्होंने यूरोप का दौरा किया, ब्रुसेल्स में उन्होंने साम्राज्यवाद के खिलाफ लीग में भाग लिया और सोवियत संघ की यात्रा भी की। इन सबसे नेहरू की पुराने स्वराज और समाजवाद की विचारधारा को विकसित होने में मदद मिली?
- भारत लौटने के बाद नेहरू ने खुद को 'साइमन वापस जाओ' आंदोलन में झोंक दिया। इस आंदोलन में भाग लेने के दौरान 29 और 30 नवंबर, 1928 को उन्हें लाठीचार्ज का सामना करना पड़ा। उन्होंने इसके बाद लिखा, "शारीरिक दर्द इस हर्ष में मैं भूल चुका हूं कि मैं शारीरिक तौर पर इतना मज़बूत हुआ कि लाठी का सामना कर सकता हूं। दूसरे दिन का लाठीचार्ज ज़्यादा गंभीर था। मैं खुद आधा अंधा महसूस कर रहा हूं, और कई बार मेरे अंदर काफी गुस्सा आया और लाठी चलाने वाले को पीटने की इच्छा भी हुई। मैंने सोचा, कितना आसान होगा कि मैं घोड़े पर सवार पुलिस ऑफिसर को खींच लूं, और खुद सवार हो जाऊं, लंबे अभ्यास और अनुशासन से ही संभव हुआ कि मैंने अपने हाथों को अपने चेहरे को बचाने के अलावा उठाया ही नहीं"?
- साइमन कमीशन के विरोध के साथ-साथ नेहरू ने अपने पिता की नेहरू रिपोर्ट का भी विरोध किया था, जिसमें उनके पिता ने भारत को अधिराज्य का दर्जा देने की वकालत की थी, पूर्ण स्वराज की नहीं? इसे जवाहर लाल ने 1927 में कांग्रेस के मद्रास अधिवेशन में बदला था, लेकिन बदलाव के पारित होने पर गांधीजी ने इसे 'दुखद' बताया था। गांधीजी ने जवाहरलाल को खत लिखा था, "मैं तुम्हारी इन हरकतों का बुरा नहीं मानता, लेकिन तुम्हारी गलती करने और गुंडों वाली हरकतों का मैं बुरा मानता हूं." इसके जवाब में जवाहरलाल नेहरू ने लिखा था, "मैं हमेशा से वर्गाकार खूंटा रहा हूं, लेकिन यहां हर छेद गोल है। मैं काफी अकेला महसूस कर रहा हूं"?
- इसके बाद उन्होंने अपने पिता के अधिराज्य वाले प्रस्ताव की सार्वजनिक तौर पर निंदा की। यह इतने खुले में की गई निंदा थी कि सीनियर नेहरू को गांधीजी से प्रार्थना करनी पड़ी कि वह दिसंबर, 1928 के कोलकाता अधिवेशन में भाग लें, क्योंकि जवाहरलाल नेहरू अपने पिता से ज़्यादा गांधी की सुनते थे?
- इसके बाद गांधी जी ने पिता और बेटे में सुलह कराई, लेकिन इसके बदले सुनिश्चित किया गया कि कांग्रेस की अध्यक्षता पिता के हाथों से निकलकर बेटे के पास पहुंचे? (कथित रूप से इसके चलते ही सुभाष चंद्र बोस ने शिकायत की थी कि कांग्रेस की मुश्किल यह है कि यह पिता, बेटे और एक पवित्र आत्मा द्वारा चलाई जा रही पार्टी है)
- गांधीजी की वॉयसराय लार्ड इर्विन से बातचीत के कामयाब नहीं होने पर, कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन की अध्यक्षता कर रहे जवाहरलाल नेहरू ने रावी के तट पर 26 जनवरी (20 साल बाद यह हमारा गणतंत्र दिवस बना) को आजादी का झंडा फहराया था और पूर्ण स्वराज दिलाने की प्रतिज्ञा की। इस तरह से उन्होंने अधिराज्य का दर्जे की सभी बातचीत को खत्म कर दिया। जब जवाहरलाल नेहरू ने यह किया, तब उनकी उम्र महज 40 साल थी?
इन ऐतिहासिक तथ्यों को अधिक विस्तार से पढ़ने और जानने के लिए पाठकों को पिछले माह पेंग्विन / वाइकिंग द्वारा प्रकाशित रुद्रांशु मुखर्जी द्वारा लिखित 'नेहरू एंड बोस : पैरेलल लाइव्स' पढ़नी चाहिए, अथवा नेहरू की खुद लिखी आत्मकथा पढ़ें...
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।
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