मद्रास हाईकोर्ट ने एक आदेश दिया है कि अगर कोई कामकाजी महिला पहली डिलिवरी में जुड़़वा बच्चों को जन्म दे चुकी है तो दूसरी डिलिवरी के बाद वह मैटरनिटी लाभ (मातृत्व लाभ) को लेने की हकदार नहीं होगी और दूसरी डिलिवरी में पैदा हुए नवजात को तीसरा बच्चा माना जाएगा. हाईकोर्ट ने कहा, 'नियमों के मुताबिक मैटरनिटी लीव की सुविधा पहली दो डिलिवरी में ही पाया जा सकता है. नहीं तो इस तरह केस दूसरी डिलिवरी को तीसरी डिलिवरी माना जाएगा. यह वैसी भी बहस का मुद्दा है इस जन्म को दूसरी डिलिवरी माना जाएगा या तीसरी. उनकी उम्र और एक दूसरे बड़ा-छोटा होने का दर्जा भी उसी समयांतराल से तय किया जाता है जो उनके जन्म के बीच रहा. इसी वजह से यह दो डिलिवरी मानी जाती हैं एक नहीं'.
मद्रास हाईकोर्ट के प्रधान न्यायाधीश एपी शाही और जस्टिस सुब्रोमोनियम प्रसाद ने कहा यह आदेश सुनाया है. बेंच ने जून 2019 में दिए एकल बेंच के दिए आदेश को पलट दिया है. इससे पहले एकल बेंच ने सीआरपीएफ काम कर रही है एक महिला को 180 दिन की छुट्टी देते हुए सरकारी नियमों के मुताबिक सुविधा देने के लिए कहा था. इस मामले में गृह मंत्रालय ने अपील की थी कि महिला की ओर से तमिलनाडु सरकार के नियमों के मुताबिक मांगी गई छुट्टियां नहीं दी जा सकती हैं. उसको मंत्रालय की ओर से दी केंद्रीय सेवाओं के तहत सुविधा दी जाएंगी.
जब यह मामला कोर्ट के सामने आया तो उसने कहा कि इस केस में दूसरी डिलिवरी में तीसरा बच्चा हुआ लेकिन इसको गणित की तरह तय नहीं किया जा सकता है जैसा कि नियमों में लिखा है. हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अगर महिला को दो से ज्यादा बच्चे नहीं तो हैं तो मिलने वाली सुविधाएं सीमित होंगी.
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