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This Article is From Sep 11, 2013

केदारनाथ में 86 दिन बाद हुई पूजा, अभी श्रद्धालुओं को जाने की अनुमति नहीं

केदारनाथ में करीब तीन महीने बाद हुई पूजा

केदारनाथ: उत्तराखंड में जून में भीषण प्राकृतिक आपदा की वजह से मची तबाही के बाद केदारनाथ मंदिर में पसरा सन्नाटा आज सुबह मंत्रोच्चार के साथ ही खत्म हो गया, जब केदार घाटी में 400 से अधिक लोगों को मौत की नींद सुलाने वाली बाढ़ की विभीषिका के 86 दिन बाद इस हिमालयी तीर्थ में प्रार्थना और पूजा हुई।

केदारनाथ मंदिर भले ही श्रद्धालुओं के लिए शुरू नहीं हुआ है पर एक अच्छी खबर यह है कि पांचवां धाम कहे जाने वाले और सिखों सबसे बड़े तीर्थस्थलों में से एक हेमकुंड साहिब गुरुद्वारा श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया गया है। गोविंदघाट से हेमकुंड साहिब तक जाने वाला रास्ता दुरुस्त कर लिया गया है।

पौ फटने के कुछ देर बाद घड़ी की सुइयों ने जैसे ही 7 बजने का संकेत दिया, छठी सदी के इस मंदिर के प्रधान पुजारी रावल भीम शंकर लिंग शिवाचार्य ने मंदिर के पट खोले और पूजा करने के लिए गर्भगृह में प्रवेश किया। पूजा और प्रार्थना आज ‘‘सर्वार्थ सिद्धि योग’’ के अवसर पर शुरू की गई, जिसे अत्यंत शुभ माना जाता है।

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा अपने कुछ मंत्रिमंडलीय सहयोगियों के साथ आज की पूजा में शामिल होने वाले थे, लेकिन खराब मौसम की वजह से वह देहरादून से नहीं आ सके।

केदारघाटी घने कोहरे की चादर से ढकी है। आज सुबह सवेरे हुई पूजा को कवर करने के लिए आने वाले मीडिया के विभिन्न दलों को यहां से करीब 22 किमी दूर गुप्तकाशी में रुकना पड़ा, क्योंकि वह खराब मौसम की वजह से आगे नहीं बढ़ पाए। पूजा से पहले मंदिर का ‘शुद्धिकरण’ और फिर ‘प्रायश्चितकरण’ (मंदिर में लंबे समय तक पूजा न करने के लिए प्रायश्चित) किया गया। प्रधान पुजारी के साथ बड़ी संख्या में पुरोहित और बद्रीनाथ केदारनाथ समिति के अधिकारी मौजूद थे। सामूहिक मंत्रोच्चार और पवित्र शंख की ध्वनि से पूरा मंदिर गूंज उठा।

बहरहाल, 13,500 फुट की ऊंचाई पर स्थित इस मंदिर में फिलहाल किसी भी श्रद्धालु को जाने की अनुमति नहीं दी जा रही है। इस प्रख्यात हिमालयी मंदिर की यात्रा बहाल करने की तारीख तय करने के लिए 30 सितंबर को एक बैठक बुलाई गई है।

पूजा के लिए मंदिर की सफाई करने के बाद उसे बहुत ही अच्छी तरह सजाया गया। इससे पहले राज्य में आई भीषण बाढ़ का असर मंदिर पर भी पड़ा था और वहां 86 दिन तक खामोशी छाई रही थी।

बाढ़ के कारण पहाड़ी जिले रूद्रप्रयाग, उत्तरकाशी, चमोली और पिथौरागढ़ बुरी तरह प्रभावित हुए तथा आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक 600 से अधिक लोगों की जान चली गई। इस आपदा में 4,000 से ज्यादा लोग लापता भी हो गए।

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