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Karnataka Caste Census: कांग्रेस के लिए दोधारी तलवार बनी कर्नाटक की जाति गणना रिपोर्ट, संख्याबल से समझें पूरी कहानी

कर्नाटक की जाति गणना रिपोर्ट पर गुरुवार को हुई कैबिनेट की विशेष बैठक बेनतीजा समाप्त हुई. मुख्यमंत्री ने अगली बैठक में मंत्रियों से अपनी राय लिखित में मांगी है. लिंगायत और वोक्कालिगा मंत्रियों ने कास्ट सेंसस रिपोर्ट पर आपत्ति जताई है.

Karnataka Caste Census: कांग्रेस के लिए दोधारी तलवार बनी कर्नाटक की जाति गणना रिपोर्ट, संख्याबल से समझें पूरी कहानी

Karnataka Caste Census Report: राजनीति में संख्या मायने रखती है, लेकिन जब संख्या पहचान बन जाए, तब सत्ता की नींव भी डगमगाने लगती है. कर्नाटक में इन दिनों यही हो रहा है. जातिगत जनगणना की रिपोर्ट सामने आते ही सत्ता के गलियारों में एक सन्नाटा फैल गया है. मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की अगुवाई में कांग्रेस सरकार ने सोचा था कि यह सर्वे सामाजिक न्याय की ओर एक साहसिक कदम होगा. लेकिन अब वही रिपोर्ट, सरकार के लिए ‘राजनीतिक बवंडर' बन चुकी है. BJP ने इसे समाज को बांटने की कोशिश कहा तो वहीं JDS भी इस रिपोर्ट के लागू किए जाने के खिलाफ है.

कर्नाटक की जाति गणना रिपोर्ट पर गुरुवार को हुई कैबिनेट की विशेष बैठक बेनतीजा समाप्त हुई. मुख्यमंत्री ने अगली बैठक में मंत्रियों से अपनी राय लिखित में मांगी है. लिंगायत और वोक्कालिगा मंत्रियों ने कास्ट सेंसस रिपोर्ट पर आपत्ति जताई है. 

जातिगत गणना: क्या है असली विवाद?

कर्नाटक सरकार द्वारा करवाई गई यह सर्वेक्षण रिपोर्ट राज्य की जातिगत जनसंख्या का एक दस्तावेज़ है, जिसमें दावा किया गया है कि वर्तमान में ओबीसी और दलित समुदाय राज्य की सबसे बड़ी आबादी का हिस्सा हैं — और कुछ ऐसी जातियों की जनसंख्या बहुत कम पाई गई जिन्हें अभी तक “सत्ता का आधार” माना जाता था.

रिपोर्ट लीक होने के बाद सबसे ज्यादा असंतोष दो प्रभावशाली समुदायों लिंगायत और वोक्कालिगा के नेताओं में देखा गया है. इन दोनों समुदायों की कर्नाटक की राजनीति में बड़ी हिस्सेदारी है. 

33 लिंगायत विधायक + 22 वोक्कालिगा विधायकों के संकट की गणित

कांग्रेस की सत्ता इस समय कुल 138 विधायकों पर टिकी है. लेकिन इनमें 33 लिंगायत और 22 वोक्कालिगा विधायक शामिल हैं — यानी दोनों समुदायों से कुल 55 विधायक. इनमें से कई नेता खुलकर जातिगत सर्वेक्षण के लागू करने के विरोध में उतर आए हैं. सबसे मुखर आवाज़ बनी है शिवनपुर शंकरप्पा की, जो कांग्रेस के विधायक है. 

कांग्रेस विधायक ने एकजुट होकर संघर्ष करने का किया ऐलान

शमनूर शिवशंकरप्पा ने अखिल भारत वीरशैव लिंगायत महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर कहा, "अगर वे ऐसा कोई निर्णय लेते हैं, तो यह उनके लिए एक बड़ा झटका होगा. राज्य में लिंगायत पहले आते हैं और वोक्कालिगा दूसरे. क्या वे हमारे खिलाफ जाकर राज्य चला सकते हैं? लिंगायत और वोक्कालिगा एकजुट होकर संघर्ष करेंगे. वीरशैव लिंगायत महासभा पहले ही इस पर बैठक कर चुकी है."

राजनीति बनाम सामाजिक न्याय

मुख्यमंत्री सिद्धारमैया इसे ‘समावेशी नीति निर्माण' का हिस्सा बताते हैं. उनका तर्क है कि अगर सही आंकड़े नहीं होंगे, तो सामाजिक योजनाएं कैसे सटीक बनाई जाएंगी? लेकिन विरोधी गुटों का कहना है कि यह रिपोर्ट उनकी राजनीतिक और सामाजिक स्थिति को कमज़ोर करने का प्रयास है.

विशेष रूप से वीरशैव- लिंगायत समुदाय, जो वर्षों से भाजपा और कांग्रेस — दोनों के लिए निर्णायक भूमिका निभाता आया है, इस रिपोर्ट में अपनी संख्या कम दिखाए जाने को ‘अपमान' मान रहा है.

कांग्रेस के लिए दोधारी तलवार

  • कांग्रेस ने यह कदम दलित और ओबीसी वोट बैंक को मज़बूत करने के इरादे से उठाया, लेकिन इसका परिणाम यह हुआ कि उनके पारंपरिक सहयोगी समुदाय नाराज़ हो गए.
  • अगर लिंगायत और वोक्कालिगा विधायकों का यह गुट एक मंच पर आ जाता है और समर्थन वापस लेता है, तो सरकार के पास बहुमत नहीं रहेगा.
  • भाजपा ने इसे कांग्रेस की "जातिवादी राजनीति" करार दिया है और जनता को यह संदेश देना शुरू कर दिया है कि कांग्रेस समाज को बांट रही है.

जनता क्या सोचती है?

बेंगलुरु से लेकर बेलगावी तक आम लोगों में इस विषय को लेकर उत्सुकता भी है और चिंता भी. दलित और पिछड़े वर्ग के लोग इसे “पहचान की लड़ाई में जीत” मान रहे हैं, तो लिंगायत और वोक्कालिगा समाज में इसका असर उलटा दिखाई दे रहा है.

क्या होगा आगे?

अगर कांग्रेस झुकती है, तो उसका "सामाजिक न्याय" वाला नैरेटिव खत्म हो जाएगा. अगर वो अड़ी रहती है, तो उसके 55 विधायक बग़ावत कर सकते हैं. राजनीति के इस संकट में, जाति और सत्ता की रस्साकशी अब निर्णायक मोड़ पर है.

राज्य में 70 फीसदी आबादी ओबीसी की, क्या आरक्षण बढ़ेगा?

सवाल यह है कि सत्ता कितनी सुरक्षित है? मुख्यमंत्री सिद्धारमैया अगर इस रिपोर्ट को लागू करते है तो क्या होगा? मुख्यमंत्री सिद्धरमैया कुर्बा जाति से हैं जो ओबीसी की एक जाति है. इस सर्वे के मुताबिक राज्य की 70 फीसदी आबादी ओबीसी की है. ऐसे में ये सिफारिश की गई है कि ओबीसी आरक्षण 32 फीसदी से बढ़ाकर 51 फीसदी कर दी जाए. 

इसमें मुसलमानों के लिए 8 प्रतिशत आरक्षण शामिल होगा जो पहले 4 फीसदी था. वहीं SC ST के लिए पहले की तरह 24 फीसदी और आर्थिक तौर पर कमजोर वर्ग के लिए 10 फीसदी.  

कर्नाटक जाति गणना रिपोर्ट कब और कैसे बनी

सिद्धारमैया ने मुख्यमंत्री के तौर पर अपने पहले कार्यकाल में 2014 -15 में राज्य के पिछड़ा वर्ग आयोग से इस सर्वे को करवाया था. इस सर्वे का टाइटल था The Socio Economic and Educational Survey. जो अब Caste सर्वे के तौर जाना जा रहा है. पहले जहां मान्यता थी कि लिंगायतों की आबादी सबसे ज्यादा है, यह धारणा इस रिपोर्ट के बाद खत्म होती नजर आती है.

कास्ट सर्वे की इस रिपोर्ट के मुताबिक सबसे ज्यादा आबादी अनुसूचित जाति की है, इसके बाद मुस्लिम फिर लिंगायत और बाद में वोक्कालिग्गा. अब तक माना जाता था कि लिंगायतों की आबादी सबसे ज्यादा है इसके बाद वोक्कालिग्गा की. 

लिंगायत और वोक्कालिग्गा समाज से इस समय 99 विधायक

2023 में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे देखे तो विधान सभा की 224 सीटों में से  लिंगायतों ने 55 सीटें जीती(कांग्रेस-34, BJP-19 और जेडीएस 02) जबकि वोक्कालिग्गा समाज के 44 विधायक जीते (कांग्रेस 23,  BJP 11 और जेडीएस 11) यानी फिलहाल 99 विधायक विधान सभा में इन्ही दोनों समुदायों से है.

डीके शिवकुमार के लिए क्यों झटका कही जा रही यह रिपोर्ट

अगर जातीय जनगणना की रिपोर्ट लागू होती है तो जाहिर है कि ओबीसी SC और मुस्लिम समाज को ज्यादा मिलेगा. हालांकि जातीय जनगणना कार्ड खेल कर सिद्धरमैया ने अपनी दावेदारी मुख्यमंत्री के पद पर मजबूत कर ली है. ऐसा राजनीति के जानकार मानते है क्योंकि मुख्यमंत्री पद के दावेदार डीके शिवकुमार की जाती वोक्कालिगा सरक कर चौथे नंबर पर आ गई है.

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