
शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अभय एस ओक ने अपने कार्यकाल के अंतिम दिन 11 फैसले सुनाए. अपने फेयरवेल स्पीच में उन्होंने कहा कि मैं कुछ सुझाव देना चाहूंगा. सुप्रीम कोर्ट से ज्यादा लोकतांत्रिक तरीके से काम हाई कोर्ट करते हैं. हाईकोर्ट कमेटियों के जरिए काम करते हैं. जबकि सुप्रीम कोर्ट CJI केंद्रित कोर्ट है. इसमें बदलाव की जरूरत है. आप नए CJI के साथ यह बदलाव देखेंगे. सीजेआई खन्ना ने हमें पारदर्शिता के रास्ते पर आगे बढ़ाया. जस्टिस गवई के खून में लोकतांत्रिक मूल्य हैं. मामलों में ऑटो लिस्टिंग सिस्टम की जरूरत है. हाईकोर्ट में एक निश्चित रोस्टर होता है. इसमे चीफ जस्टिस को भी विवेकाधिकार नहीं मिलता. जब तक हम मैन्युअल इन्टरफेरेंस को कम कम नहीं कर देते, तब तक हम बेहतर लिस्टिंग नहीं कर सकते. लिस्टिंग तर्कसंगत होनी चाहिए.
ट्रायल कोर्ट पर भी रखी राय
जस्टिस ओक ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट की अनदेखी की है. हमारे ट्रायल और जिला न्यायालयों में बहुत ज़्यादा मामले लंबित हैं. ट्रायल और जिला न्यायालयों में लंबित मामलों को निपटाने के लिए एक समिति बनाई गई है. जस्टिस विक्रम नाथ और दीपांकर दत्ता इस समिति के सदस्य हैं. ट्रायल कोर्ट को कभी भी अधीनस्थ न्यायालय न कहें. यह संवैधानिक मूल्यों के विरुद्ध है. 25 सालों से अपीलें लंबित हैं. इलाहाबाद जैसी अदालतें आधी संख्या में काम कर रही हैं. 20 साल बाद किसी को सजा देना मुश्किल भरा काम है. ये ऐसे क्षेत्र हैं, जहां हमें काम करना है. हमें ट्रायल कोर्ट और आम आदमी के बारे में भी सोचना चाहिए.
जस्टिस ओका के बारे में तथ्य
- जस्टिस ओका 2019 में कर्नाटक हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस बने.
- कर्नाटक HC के मुख्य न्यायाधीश के तौर पर जस्टिस ओका ने कई बदलाव किए. उनके कार्यकाल का एक महत्वपूर्ण हिस्सा कोविड महामारी था. कर्नाटक हाईकोर्ट वर्चुअल सुनवाई शुरू करने वाला पहले HC में से एक बन गया.
- उन्होंने प्रशासनिक बदलाव भी किए. वहां इन्होंने कोविड से प्रभावित कोर्ट स्टाफ पर व्यक्तिगत ध्यान दिया. सुप्रीम कोर्ट में अपने कार्यकाल के आखिरी दिन 11 फ़ैसले सुनाए.
- वे वकीलों से भी अधिक तैयार थे. जहां सुनवाई में लंबा समय लग रहा था, वहां जमानत देने में वे उदार रहे.
- व्यक्तिगत क्षति के रूप में अपनी मां के निधन के अगले दिन उन्होंने अपने कार्यकाल के अंतिम दिन 11 फैसले सुनाए.
वकील और जज का अंतर समझाया
इस अवसर पर जस्टिस ओका ने कहा कि पिछले दो हफ्ते मेरे लिए बहुत मुश्किल भरे रहे. मुझे बहुत सारे फ़ैसले लिखने थे. मैंने सोचा था कि बुधवार तक मैं उन्हें पूरा कर लूंगा और गुरुवार को मैं अपना भाषण लिखूंगा, लेकिन ऐसा नहीं हो सका. तो आज मैंने कुछ बातें लिखी हैं. पिछले दो दिनों से हर कोई मुझसे पूछ रहा है कि आप कैसा महसूस कर रहे हैं? मैं आजादी की आशा तो नहीं करता क्योंकि न्यायाधीशों को न्याय करने की स्वतंत्रता होती है. जब आप न्यायाधीश नहीं होते तो यह स्वतंत्रता नहीं होती. 21 साल और 9 महीने के काल में मैं 3 संवैधानिक न्यायालयों का न्यायाधीश रहा. न्यायालय का पद जीवन बन जाता है और जीवन ही न्यायालय बन जाता है. शायद कुछ दिनों के बाद मैं अपने भविष्य के अगले कदम के बारे में तर्कसंगत रूप से सोच सकूं.
जस्टिस ओक ने कहा कि मेरा नाम 15 फरवरी 2003 को अनुशंसित किया गया और ज्वाइनिंग का वारंट 6 महीने बाद जारी किया गया. आज इसमें शायद दो, तीन या उससे भी अधिक वर्ष लग जाते हैं. उन्होंने कहा कि जब आप हवाई जहाज से लंबी यात्रा करते हैं तो अकसर उथल-पुथल होती है. जब कोई सफल वकील जज बनता है तो कहते हैं कि व्यक्ति त्याग करता है. मैं इसे स्वीकार नहीं करता. जब आप न्यायपालिका में शामिल होते हैं, तो आपको वो इनकम तो नहीं मिल सकती लेकिन आपको जो काम से संतुष्टि मिलती है, उसकी तुलना वकील की इनकम से नहीं की जा सकती. एक बार जब आप जज बन जाते हैं तो केवल संविधान और विवेक ही आपको नियंत्रित करते हैं. एक जज के तौर पर अपनी इस लंबी पारी में मैंने कभी भी असहमति वाला फैसला नहीं सुनाया.
सुप्रीम कोर्ट के जज अभय एस ओक के फेयरवेल मे बोलते हुए चीफ जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि हमारी यात्रा एक साथ शुरू हुई. हम लगभग एक ही समय में जज बने. जब जस्टिस गवई ने सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत होने के बारे में पूछा, तो जस्टिस ओका ने कहा कि वह अपने मित्र को मुख्य न्यायाधीश बनते देखकर सबसे अधिक खुश होंगे.
चीफ जस्टिस ने क्या कहा
चीफ जस्टिस ने कहा कि कॉलिजियम के साथी जजों जस्टिस सूर्यकांत और ओका के साथ पहली कॉलेजियम की बैठक में, हमने मणिपुर हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रूप में एक अनुसूचित जाति के जज के नाम की सिफारिश की,जो सबसे पिछड़े क्षेत्र से आते हैं. पिता के निधन के बाद भी जस्टिस ओका एक दिन की छुट्टी लेकर काम पर लौट आए थे. जस्टिस ओका को अपनी मां से मजबूत गुण विरासत में मिले हैं. उम्मीद है कि जस्टिस ओक भविष्य की पीढ़ियों को प्रेरित करना जारी रखेंगे.
चीफ जस्टिस गवई ने आंगनबाड़ी कर्मियों की निष्ठा और उनके सामने आ रही समस्याओं और चुनौतियों का जिक्र करते हुए जस्टिस ओका की संवेदना और इस बारे में किए गए कार्यों की सराहना की. जस्टिस ओका ने अपने आदेशों और निर्णयों में उनकी समस्याओं के समाधान किए. जस्टिस ओका इंजीनियर बनना चाहते थे, लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था, जबकि उनके पिता एक वकील थे.
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