
भारतीय वायुसेना का एक जगुआर प्रशिक्षण विमान बुधवार को राजस्थान के चुरू में दुर्घटनाग्रस्त हो गया. इस हादसे में विमान के दोनों पायलटों की मौत हो गई. हादसे का शिकार हुए दो सीटों वाले जगुआर ने राजस्थान के सूरतगढ़ बेस से उड़ान भरी थी. घटना के कारणों का पता लगाने के लिए वायु सेना ने 'कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी' का आदेश दिया है. इस साल यह जगुआर का तीसरा हादसा है. इससे पहले मार्च और अप्रैल में भी जगुआर दुर्घटनाग्रस्त हुए थे. भारत दुनिया का अकेला देश है, जिसे हवाई बेड़े में जगुआर शामिल है. जगुआर को 1980 के दशक में वायु सेना में शामिल किया गया था.
कौन बनाता था जगुआर
जगुआर लड़ाकू विमानों को फ्रांस और ब्रिटेन की सीपीकैट नाम की कंपनी ने 1966 में बनाना शुरू किया था. इसकी पहली उड़ान 1968 में हुई थी. जुगआर दुनिया का ऐसा पहला लड़ाकू विमान है, जिसे दो देशों ने मिलकर बनाना शुरू किया था. आज भारत ही एक ऐसा देश है, जिसके वायुसेना के बेड़े में जगुआर विमान शामिल हैं. ब्रिटेन का रॉयल एयरफोर्स इसे 2007 में ही रिटायर कर चुका है. यह विमान अब फ्रांस के बेड़े में भी शामिल नहीं है. इक्वाडोर, नाइजीरिया और ओमान जैसे देश भी इसे अपने बेड़े से हटा चुके हैं. इस साल यह जुगआर की तीसरा हादसा है. चुरू में हुए हादसे से पहले तीन अप्रैल में एक जगुआर गुजरात के जामनगर के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गया था. इससे पहले सात मार्च में एक जगुआर पंजाब के अंबाला के पास उड़ान भरते ही हादसे का शिकार हो गया था. आंकड़ों के मुताबिक- पिछले एक दशक में 12 जगुआर दुर्घटनाग्रस्त हो चुके हैं.

भारत की सेना में जगुआर
साल 1979 में वायु सेना में शामिल किए गए जगुआर 2040 तक वायुसेना के सेवा कर सकता है. आज की तारीख में केवल भारतीय वायुसेना में ही जगुआर सेवाएं दे रहा है. शुरू में यह प्रशिक्षण विमान था, लेकिन बाद में यह कई दूसरी भूमिकाओं में भी सफल साबित हुआ. यह अलग-अलग तरह के रॉकेट, मिसाइल और गाइडेड और अनगाइडेड बम ले जाने में सक्षम है. इस पर 45 सौ किलो तक के हथियार लादे जा सकते हैं. यह 46 हजार फुट की ऊंचाई तक उड़ान भर सकता है. इसकी अधिकतम स्पीड 1.6 मैक (1699 किमी प्रति घंटा) है. जगुआर वायुसेना का अटैक फाइटर प्लेन है. यह दुश्मन के अंदर घुसकर मारने में सक्षम है.यह एक बार ईंधन भरने के बाद तीन हजार 524 किमी तक की उड़ान भर सकता है. जगुआर का अपग्रेडशन भी हुआ है. इसके बाद इसे वायुसेना का भरोसेमंद एयरक्राफ्ट माना जाता है. इस साल मई में पाकिस्तान के खिलाफ चलाए गए 'ऑपरेशन सिंदूर' में भी जगुआर ने पराक्रम दिखाया था. इसने पाकिस्तान के कई एयर बेस पर हमलों को अंजाम दिया था.लेकिन हाल में हुई दुर्घटनाओं की वजह से ही इसे मिग विमानों की ही तरह उड़ते ताबूत के रूप में देखा जाने लगा है.
भारत ने जगुआर के लिए एक अरब डॉलर का समझौता 1978 में किया था. भारत की वायुसेना के लिए बनाए गए 40 जगुआर भारत को 1981 में मिले थे. भारत को इसे बनाने का लाइसेंस भी मिला था. हिंदुस्तान एयरोनाटिक्स लिमिटेड इसे 2008 तक बनाता था. जगुआर के अलग-अलग वर्जन के 160 से अधिक विमान भारत के पास हैं. इसमें सिंगल सीटर जुगआर आईएस, टू सीटर ट्रेनर जगुआर आईबी और नौसेना के लिए बना जगुआर आईएम शामिल है. जगुआर की क्षमताएं बढ़ाने और उनकी सर्विस लाइफ बढ़ाने के लिए कई बार उनका अपग्रेडेशन किया गया.

क्यों हटा नहीं रही है वायुसेना
भारत की वायुसेना में नए विमान शामिल नहीं हो रहे हैं. स्वदेशी तेजस में भी वायुसेना ने कई खामियां गिनाई हैं. तेजस को मिग-21 और जगुआर का विकल्प बताया जा रहा है, लेकिन उसकी आपूर्ति भी एचएएल समय पर नहीं कर पा रहा है. इस वजह से वायुसेना जुगआर को हटा नहीं पा रही है. इसी तरह की समस्याओं का जिक्र वायुसेना प्रमुख अमरप्रीत सिंह ने किया था. उन्होंने रक्षा खरीद परियोजनाओं में हो रही देरी पर चिंता जताते हुए कहा था कि कई बार समझौते पर हस्ताक्षर करते समय ही पता होता है कि ये सिस्टम कभी नहीं आएंगे.उन्होंने कहा था कि समय सीमा एक बड़ी समस्या है. उनकी जानकारी में एक भी ऐसी परियोजना नहीं है, जो समय पर पूरी हुई हो. उन्होंने कहा था कि जब कुछ हासिल नहीं किया जा सकता तो उसका वादा क्यों करना चाहिए. इसके लिए उन्होंने स्वदेशी परियोजनाओं में हो रही देरी के कई मामलों का हवाला दिया था.
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