
- झालावाड़ के मनोहरथाना क्षेत्र में सरकारी स्कूल की जर्जर बिल्डिंग गिरने से सात बच्चों की मौत और 27 घायल हुए हैं
- शिक्षा विभाग ने जुलाई में स्कूलों की जर्जर छतों, दीवारों की मरम्मत के निर्देश जिला प्रशासन को पहले ही भेजे थे.
- हादसे के वक्त 7वीं कक्षा के 35 बच्चे उस कमजोर बिल्डिंग में थे, जबकि शिक्षक कक्षा से बाहर थे.
Jhalawar School Collapse राजस्थान के झालावाड़ में सरकारी स्कूल की बिल्डिंग का हिस्सा गिरने से 7 बच्चों की मौत हो गई, हादसे में 27 बच्चे घायल हुए हैं. क्या इन मासूम बच्चों को बचाया जा सकता था? अगर जिला प्रशासन समय पर जाग जाता, तो शायद आज 7 बच्चे जिंदा होते. दरअसल, झालावाड़ हादसे से पहले ही शिक्षा विभाग ने इमारत की जर्जर हालत को लेकर जिला प्रशासन को चेताया था. लेकिन जिला प्रशासन ने समय पर कदम नहीं उठाया और इमारत की छत ढह गई. ऐसे में अब झालावाड़ स्कूल हादसे पर सवाल उठ रहे हैं.
जर्जर था स्कूल का भवन
झालावाड़ जिले के मनोहरथाना क्षेत्र के पीपलोदी गांव में सरकारी स्कूल की बिल्डिंग गिरने से 7 बच्चों की मौत के बाद अब शिक्षा विभाग की एक चिट्ठी ने कई सवाल खड़े किए हैं. दरअसल, शिक्षा विभाग ने 14 जुलाई 2025 को ही प्रदेश के सभी सरकारी स्कूलों को मानसून से पहले सुरक्षा इंतजाम पुख्ता करने के आदेश जारी किए थे. लेकिन इस आदेश पर न तो झालावाड़ प्रशासन ने गंभीरता दिखाई और ना ही जिला स्तर कोई ठोस कार्रवाई हुई. नतीजा यह हुआ कि बारिश के बीच जर्जर स्कूल भवन गिरा और मासूम जिंदगियां मलबे में दफन हो गईं.

शिक्षा विभाग ने दिये थे ये निर्देश
स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा जारी आदेश में साफ निर्देश दिए गए थे कि स्कूलों की जर्जर छतों और दीवारों की तत्काल मरम्मत करवाई जाए. खुले बोरवेल, गड्ढे और जलभराव वाले क्षेत्रों को सुरक्षित किया जाए. स्कूल परिसरों में बिजली के खुले तारों व उपकरणों की जांच की जाए. जर्जर स्कूलों की कक्षाएं बंद कर वैकल्पिक व्यवस्था की जाए. प्राथमिकता के आधार पर बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए.

7वीं कक्षा के 35 बच्चे, लेकिन टीचर...
अब सवाल यह उठ रहा है कि जब सरकार ने समय रहते चेतावनी दी थी तो पिपलोदी स्कूल में उस पर अमल क्यों नहीं हुआ? हादसे के बाद सामने आया कि स्कूल बिल्डिंग पहले से ही क्षतिग्रस्त थी. हादसे वाले दिन 7वीं कक्षा के 35 बच्चे उस कमरे में मौजूद थे. स्थानीय लोग बताते हैं कि बिल्डिंग की स्थिति खराब थी, लेकिन कोई निरीक्षण नहीं हुआ. स्कूल में दो शिक्षक मौजूद थे, लेकिन हादसे के समय वे कक्षा से बाहर थे.
चेतावनी थी, तो कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
14 जुलाई को जारी इस पत्र में साफ लिखा गया था कि इस संबंध में समस्त विद्यालय प्रमुखों को आवश्यक कार्यवाही हेतु निर्देशित किया जाए. लेकिन पीपलोदी हादसे ने यह दिखा दिया कि पत्र सिर्फ फाइलों तक सीमित रह गया और ज़मीनी स्तर पर क्रियान्वयन नहीं हुआ. मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने हादसे पर दुख जताया है और उच्च स्तरीय जांच के आदेश दिए हैं. मंत्री ने यह भी स्वीकार किया कि राज्य में हजारों स्कूल भवन जर्जर स्थिति में हैं, जिनकी मरम्मत के लिए 200 करोड़ का प्रस्ताव तैयार किया गया है. लेकिन सवाल ये है कि जब चेतावनी थी, आदेश था, तो कार्रवाई क्यों नहीं हुई? और अगर होती तो 7 मासूम बच्चों की जान बच सकती थी.
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