संथारा पर रोक के राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ प्रदर्शन (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट ने जैनों के धार्मिक रिवाज 'संथारा' (मृत्यु तक उपवास) को अवैध बताने वाले राजस्थान हाईकोर्ट के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी है।
राजस्थान उच्च न्यायालय ने इस प्रथा को आत्महत्या जैसा बताते हुए उसे भारतीय दंड संहिता 306 तथा 309 के तहत दंडनीय बताया था। दिगंबर जैन परिषद ने हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
दरअसल, राजस्थान हाईकोर्ट ने ने कहा था कि संथारा या मृत्यु पर्यंत उपवास जैन धर्म का आवश्यक अंग नहीं है। इसे मानवीय नहीं कहा जा सकता, क्योंकि यह मूल मानवाधिकारों का उल्लंघन करता है।
वकील निखिल सोनी ने वर्ष 2006 में ‘संथारा’ की वैधता को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी। याचिका दायर करने वाले के वकील ने ‘संथारा’, जो कि अन्न जल त्याग कर मृत्यु पर्यंत उपवास है, को जीवन के अधिकार का उल्लंघन बताया था।
जैन समाज में यह पुरानी प्रथा है कि जब व्यक्ति को लगता है कि वह मौत के करीब है तो खुद को कमरे में बंद कर खाना-पीना त्याग देता है। जैन शास्त्रों में इस तरह की मृत्यु को संथारा कहा जाता है। इसे जीवन की अंतिम साधना भी माना जाता है, जिसके आधार पर व्यक्ति मृत्यु को पास देखकर सबकुछ त्याग देता है।
राजस्थान उच्च न्यायालय ने इस प्रथा को आत्महत्या जैसा बताते हुए उसे भारतीय दंड संहिता 306 तथा 309 के तहत दंडनीय बताया था। दिगंबर जैन परिषद ने हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
दरअसल, राजस्थान हाईकोर्ट ने ने कहा था कि संथारा या मृत्यु पर्यंत उपवास जैन धर्म का आवश्यक अंग नहीं है। इसे मानवीय नहीं कहा जा सकता, क्योंकि यह मूल मानवाधिकारों का उल्लंघन करता है।
वकील निखिल सोनी ने वर्ष 2006 में ‘संथारा’ की वैधता को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी। याचिका दायर करने वाले के वकील ने ‘संथारा’, जो कि अन्न जल त्याग कर मृत्यु पर्यंत उपवास है, को जीवन के अधिकार का उल्लंघन बताया था।
जैन समाज में यह पुरानी प्रथा है कि जब व्यक्ति को लगता है कि वह मौत के करीब है तो खुद को कमरे में बंद कर खाना-पीना त्याग देता है। जैन शास्त्रों में इस तरह की मृत्यु को संथारा कहा जाता है। इसे जीवन की अंतिम साधना भी माना जाता है, जिसके आधार पर व्यक्ति मृत्यु को पास देखकर सबकुछ त्याग देता है।
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