देश के उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आज जयपुर के बिड़ला ऑडिटोरियम में सीए कॉन्फ्रेंस सत्र को संबोधित किया. इस दौरान उन्होंने कई मुद्दों पर अपनी राय रखी. उन्होंने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की बातों से सहमति जताते हुए देश में जनसांख्यिकीय अव्यवस्था के बढ़ते खतरे पर गहरी चिंता जताई. उन्होंने कहा, डेमोग्राफिक डिसऑर्डर के परिणाम परमाणु बम से कम गंभीर नहीं है.
डेमोग्राफिक डिसलोकेशन पर क्या बोले धनखड़?
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि डेमोग्राफिक डिसलोकेशन कुछ क्षेत्रों को राजनीतिक किले में बदल रही है, जहां चुनावों का कोई वास्तविक मतलब नहीं है. उन्होंने कहा कि यह देखना चिंता की बात है कि किस तरह से इस रणनीतिक बदलाव से कुछ क्षेत्र प्रभावित हुए हैं, वे उन अभेद्य गढ़ों में बदल गए हैं, जहां लोकतंत्र का सार खो जाता है.
भारत के स्थिर वैश्विक शक्ति बने रहने पर जोर
उन्होंने भारत के भविष्य के लिए इस मुद्दे के व्यापक निहितार्थों के बारे में विस्तार से बात की. उपराष्ट्रपति धनखड़ ने इस बात पर जोर दिया कि भारत को एक स्थिर वैश्विक शक्ति बने रहना चाहिए, इस ताकत को उभरना होगा. उन्होंने कहा कि यह सदी भारत की होनी चाहिए, तभी मानवता के लिए अच्छा रहेगा. इससे शांति और सद्भाव आएगा. उन्होंने ये भी कहा कि अगर हम देश में होने वाली डेमोग्राफिकल उथल-पुथल के खतरों से आंखें बंद कर लेते हैं तो यह देश के लिए बहुत नुकसानदेह होगा.
कब भयावह होता है डेमोग्राफिक बदलाव?
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने ये भी साफ किया कि जैविक, प्राकृतिक डेमोग्राफिक बदलाव कभी भी परेशानी भरा नहीं होता है. हालांकि, किसी लक्ष्य को हासिल करने के लिए रणनीतिक तरीके से किया गया डेमोग्राफिक बदलाव बहुत ही भयावह होता है. उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि पिछले कुछ दशकों में इस डेमोग्राफिक बदलाव का विश्लेषण करने से एक परेशान करने वाले पैटर्न का पता चला है, जो हमारे मूल्यों, हमारे सभ्यतागत लोकाचार और हमारे लोकतंत्र के लिए चुनौती पेश कर रहा है.
अगर इस बेहद चिंताजनक चुनौती को सही ढंग से नहीं लिया गया तो यह राष्ट्र के लिए अस्तित्व संबंधी खतरे में बदल जाएगी. दुनिया में ऐसा पहले भी हुआ है. उन्होंने कहा कि उनको उन देशों का नाम लेने की ज़रूरत नहीं है, जिन्होंने इस डेमोग्राफिक डिसऑर्डर, इस उथल-पुथल की वजह से अपनी पहचान पूरी तरह से खो दी.
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