नई दिल्ली:
तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रहीं जे जयललिता का सोमवार रात चेन्नई के अपोलो अस्पताल में निधन हो गया. वर्ष 1990 में जयललिता ने ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम (एआईएडीएमके) को एकजुट कर 1991 में जबरदस्त बहुमत दिलाया था, और तमिलनाडु की राजनीति में वर्चस्व स्थापित करने में सफल रहीं. वर्ष 1999 आते-आते उन्होंने राष्ट्रीय राजनीति में भी दस्तक दे दी थी.
17 अप्रैल, 1999 का वह दिन...
कौन भूल सकता है 17 अप्रैल, 1999 का दिन, क्योंकि इसी दिन 13 माह से केंद्र में चल रही अटल बिहारी वाजपेयी सरकार सिर्फ एक वोट से गिर गई थी. माना जाता है कि जयललिता तब तक सोनिया के करीब नहीं थीं. मार्च, 1999 में एक चाय पार्टी में सोनिया और जयललिता की मुलाकत हुई और वह वाजपेयी सरकार से समर्थन वापस लेने के लिए राजी हो गईं. इसके बाद जो हुआ, वह इतिहास बन गया, और सभी उत्तर भारतीयों की जुबान पर जयललिता का नाम रट गया.
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वहीं, कुछ विश्लेषकों का मानना है कि अटल सरकार की सहयोगी जयललिता तत्कालीन डीएमके सरकार को बर्खास्त करने की मांग पर समर्थन वापस लेने की धमकी दे रही थीं. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने भी जयललिता पर आरोप लगाया कि वह ऐसा इसलिए कर रही हैं, ताकि वह अपने ऊपर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों से बच सकें. दोनों पार्टियों के बीच कोई सहमति नहीं बन सकी. नतीजा यह हुआ कि जयललिता ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया, और संसद में अटल सरकार सिर्फ एक वोट से विश्वासमत हार गई.
कीमत भी चुकानी पड़ी...
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के झंडे 23 दलों को एकत्र कर सरकार बनाई थी. 13 महीने की वाजपेयी सरकार के गिरने के बाद 1999 में मध्यावधि चुनाव हुए, जिसमें बीजेपी को लाभ भी मिला था और जयललिता को चुनाव में बड़ी कीमत चुकानी पड़ी थी.
17 अप्रैल, 1999 का वह दिन...
कौन भूल सकता है 17 अप्रैल, 1999 का दिन, क्योंकि इसी दिन 13 माह से केंद्र में चल रही अटल बिहारी वाजपेयी सरकार सिर्फ एक वोट से गिर गई थी. माना जाता है कि जयललिता तब तक सोनिया के करीब नहीं थीं. मार्च, 1999 में एक चाय पार्टी में सोनिया और जयललिता की मुलाकत हुई और वह वाजपेयी सरकार से समर्थन वापस लेने के लिए राजी हो गईं. इसके बाद जो हुआ, वह इतिहास बन गया, और सभी उत्तर भारतीयों की जुबान पर जयललिता का नाम रट गया.
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वहीं, कुछ विश्लेषकों का मानना है कि अटल सरकार की सहयोगी जयललिता तत्कालीन डीएमके सरकार को बर्खास्त करने की मांग पर समर्थन वापस लेने की धमकी दे रही थीं. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने भी जयललिता पर आरोप लगाया कि वह ऐसा इसलिए कर रही हैं, ताकि वह अपने ऊपर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों से बच सकें. दोनों पार्टियों के बीच कोई सहमति नहीं बन सकी. नतीजा यह हुआ कि जयललिता ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया, और संसद में अटल सरकार सिर्फ एक वोट से विश्वासमत हार गई.
कीमत भी चुकानी पड़ी...
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के झंडे 23 दलों को एकत्र कर सरकार बनाई थी. 13 महीने की वाजपेयी सरकार के गिरने के बाद 1999 में मध्यावधि चुनाव हुए, जिसमें बीजेपी को लाभ भी मिला था और जयललिता को चुनाव में बड़ी कीमत चुकानी पड़ी थी.
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