
भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने केम्ब्रिज विश्वविद्यालय में “न्याय तक पहुंच में तकनीक की भूमिका” विषय पर विचार रखे. उन्होंने कहा कि भारत की 68% आबादी गांवों में रहती है, ऐसे में न्याय प्रणाली में तकनीक की भागीदारी अत्यंत आवश्यक है. संविधान के अनुच्छेद 32, 226 और 39A को उन्होंने न्याय तक पहुंच की संवैधानिक नींव बताया.
उन्होंने कहा कि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग ने दूरदराज के वकीलों को सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचने का अवसर दिया, जिससे स्थान की बाधा समाप्त हुई. कोविड-19 ने डिजिटल परिवर्तन को गति दी; अब ई-कोर्ट्स, वर्चुअल सुनवाई और स्वचालित प्रक्रियाएं न्यायिक व्यवस्था का स्थायी हिस्सा बन गई हैं. SUVAS सॉफ्टवेयर से अंग्रेज़ी कानूनी दस्तावेज़ों का 9 क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद संभव हुआ है. राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड (NJDG) और मामला सूचना प्रणाली (CIS) जैसे प्लेटफॉर्म्स से पारदर्शिता और कार्यकुशलता में सुधार हुआ है.
ई-सेवा केंद्र, न्याय मित्र, न्याय संपर्क और LESA चैटबॉट जैसे उपायों से ग्रामीण और वंचित समुदायों को न्यायिक सहायता आसानी से उपलब्ध कराई जा रही है. उन्होंने डिजिटल डिवाइड (डिजिटल अंतर) पर चिंता जताई—जिससे गरीब और अशिक्षित तबके तकनीकी न्याय से वंचित हो सकते हैं.
AI में पूर्वाग्रह, डेटा सुरक्षा, और मानव निगरानी की आवश्यकता पर जोर दिया; स्वचालित निर्णय लेने में सावधानी की सलाह दी. नीतिगत सुधारों और मानकों के निर्धारण की जरूरत बताई, जिससे तकनीक न्याय का सहयोगी बने, स्थानापन्न नहीं
शैक्षणिक संस्थानों से अपील की कि वे न्यायिक तकनीक के विकास में सहयोग करें.उन्होंने कहा कि तकनीक तभी सार्थक है जब वह समावेश, पारदर्शिता और संवैधानिक मूल्यों के अनुरूप हो
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