![भारतीयों को अच्छा लड़ाका नहीं मानता ISIS,दोयम दर्जे का होता है सुलूक : रिपोर्ट भारतीयों को अच्छा लड़ाका नहीं मानता ISIS,दोयम दर्जे का होता है सुलूक : रिपोर्ट](https://i.ndtvimg.com/i/2015-11/isis_650x400_51447658303.jpg?downsize=773:435)
फाइल फोटो
नई दिल्ली:
भारत की ओर से अब तक 23 लोग आतंकी संगठन आइएसआइएस के लिए लड़ने जा चुके हैं, इनमें छह की मौत हो गई। लेकिन यह संगठन, भारतीयों और दक्षिण एशिया के लोगों को अच्छे लड़ाके नहीं मानता। उनके साथ दोयम दर्जे का सुलूक होता है। केंद्र सरकार की एक रिपोर्ट में ये दावा किया गया है।
जिहाद की प्रेरणा नहीं देता भारत का इस्लाम
रिपोर्ट के मुताबिक, सीरिया और इराक के बड़े हिस्से पर काबिज आइएसआइएस की राय है कि भारत का इस्लाम जेहाद की प्रेरणा नहीं देता। दरअसल भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में जो इस्लाम पढ़ाया जाता है, आईएसआईएस उसे कुरान ओर हदीस की मूल शिक्षा से अलग बताता है। इसलिए वहां के मुसलमान सलाफी जिहाद की तरफ नहीं जाते हैं।
न अच्छे हथियार मिलते हैं, न वेतन
रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) की रिपोर्ट में लिखा है कि दक्षिण एशिया से आने वाले रंगरूटों के दिलों में जिन्न का डर बैठाया जाता है। उनसे कहा जाता है कि अगर वे अपने देश लौटेंगे तो उन्हें सारी उम्र जिन्न परेशान करेगा। दक्षिण एशिया के लड़ाकों को आईएसआईएस दोयम दर्जे का मानता है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नाइजीरिया और सूडान के इलाकों के नौजवानों को असली लड़ाके नहीं मानता। उन्हें अरब के लड़ाकों से नीचे रखा जाता है। यही नहीं, न तो उन्हें बेहतर हथियार दिए जाते हैं और न ही अरब के लड़ाकों की तरह वेतन।
फिदायीन दस्ते की तरह होता है इस्तेमाल
रिपोर्ट बताती है कि दक्षिण एशिया के रंगरूटों के साथ दूसरे दर्जे का सलूक होता है। इन्हें कम पैसे मिलते हैं और छोटी बैरकों में रहना पड़ता है। इन्हें फिदायीन दस्ते की तरह इस्तेमाल किया जाता है। कई बार इन्हें इस बात की जानकारी नहीं होती कि उनका फिदायीन की तरह इस्तेमाल होगा। रिमोट कंट्रोल से उन्हें उड़ा दिया जाता है। उन्हें कहा जाता है कि सामान लेकर किसी से मिलने जाएं। जब वे अपनी गाड़ी लेकर वहां पहुंचते हैं तो उन्हें फोन के जरिये उड़ा दिया जाता है।
जेहादी बीवियां भी नहीं मिलतीं
गृह मंत्रालय तक पहुंची यह रिपोर्ट बताती है कि ज्यादातर लड़ाके हूरों के चक्कर में जिहाद से जुड़ते हैं। चूंकि आईएसआईएस में महिलाओं की संख्या कम है इसलिए एशिया के लड़कों को बीवियां नहीं मिलती। यहां तवज्जो अरब के लड़ाकों को दी जाती है इसलिए जेहादी बीवियां उन्हें ही मिलती है।
आईएसआईएस की पुलिस रखती है नजर
आईएसआईएस दक्षिण एशिया के लड़कों को फुट सोल्जर के तरह इस्तेमाल करती है। अरब के लड़के इनके पीछे रहते है। यही वजह है कि कि अरब मूल के लड़ाकों के मुकाबले दक्षिण एशियाई मूल के लड़के इस जंग में ज़्यादा मारे गए हैं। दक्षिण एशिया के लड़ाकों पर पूरा भरोसा भी नहीं किया जाता और आइएस की पुलिस इन पर नज़र रखती है। सिर्फ ट्यूनीशिया, सऊदी अरब, फलस्तीन, इराक और सीरिया के अरब ही आईएसआईएस पुलिस मे शामिल हो सकते है।
सोशल मीडिया के जरिये लुभाता है संगठन
वहां से लौटे भारत के लड़कों के अनुभव भी यही बताते हैं। भारत से अब तक 23 लोग आइएसआइएस के लिए लड़ने गए हैं, इनमें से छह की मौत हो चुकी है। यहां नेट और सोशल मीडिया के सहारे इन लड़कों को लुभाया जाता रहा है, जिसे भारत सरकार रोकने की कोशिश में है। सोशल मीडिया पर जेहाद जितना लुभावना लग सकता है, हक़ीक़त में उतना नहीं है। वहां इस्लाम वाली बराबरी नहीं है, अरबी लड़ाकों का दबदबा है जिसके शिकार एशिया के इस हिस्से से लड़के होते हैं। ये जरूरी है कि उनके प्रचार तंत्र को काटा जाए। अब सरकार सोशल मीडिया के जरिये उनसे लड़ने के लिए तैयार हो चुकी है।
जिहाद की प्रेरणा नहीं देता भारत का इस्लाम
रिपोर्ट के मुताबिक, सीरिया और इराक के बड़े हिस्से पर काबिज आइएसआइएस की राय है कि भारत का इस्लाम जेहाद की प्रेरणा नहीं देता। दरअसल भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में जो इस्लाम पढ़ाया जाता है, आईएसआईएस उसे कुरान ओर हदीस की मूल शिक्षा से अलग बताता है। इसलिए वहां के मुसलमान सलाफी जिहाद की तरफ नहीं जाते हैं।
न अच्छे हथियार मिलते हैं, न वेतन
रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) की रिपोर्ट में लिखा है कि दक्षिण एशिया से आने वाले रंगरूटों के दिलों में जिन्न का डर बैठाया जाता है। उनसे कहा जाता है कि अगर वे अपने देश लौटेंगे तो उन्हें सारी उम्र जिन्न परेशान करेगा। दक्षिण एशिया के लड़ाकों को आईएसआईएस दोयम दर्जे का मानता है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नाइजीरिया और सूडान के इलाकों के नौजवानों को असली लड़ाके नहीं मानता। उन्हें अरब के लड़ाकों से नीचे रखा जाता है। यही नहीं, न तो उन्हें बेहतर हथियार दिए जाते हैं और न ही अरब के लड़ाकों की तरह वेतन।
फिदायीन दस्ते की तरह होता है इस्तेमाल
रिपोर्ट बताती है कि दक्षिण एशिया के रंगरूटों के साथ दूसरे दर्जे का सलूक होता है। इन्हें कम पैसे मिलते हैं और छोटी बैरकों में रहना पड़ता है। इन्हें फिदायीन दस्ते की तरह इस्तेमाल किया जाता है। कई बार इन्हें इस बात की जानकारी नहीं होती कि उनका फिदायीन की तरह इस्तेमाल होगा। रिमोट कंट्रोल से उन्हें उड़ा दिया जाता है। उन्हें कहा जाता है कि सामान लेकर किसी से मिलने जाएं। जब वे अपनी गाड़ी लेकर वहां पहुंचते हैं तो उन्हें फोन के जरिये उड़ा दिया जाता है।
जेहादी बीवियां भी नहीं मिलतीं
गृह मंत्रालय तक पहुंची यह रिपोर्ट बताती है कि ज्यादातर लड़ाके हूरों के चक्कर में जिहाद से जुड़ते हैं। चूंकि आईएसआईएस में महिलाओं की संख्या कम है इसलिए एशिया के लड़कों को बीवियां नहीं मिलती। यहां तवज्जो अरब के लड़ाकों को दी जाती है इसलिए जेहादी बीवियां उन्हें ही मिलती है।
आईएसआईएस की पुलिस रखती है नजर
आईएसआईएस दक्षिण एशिया के लड़कों को फुट सोल्जर के तरह इस्तेमाल करती है। अरब के लड़के इनके पीछे रहते है। यही वजह है कि कि अरब मूल के लड़ाकों के मुकाबले दक्षिण एशियाई मूल के लड़के इस जंग में ज़्यादा मारे गए हैं। दक्षिण एशिया के लड़ाकों पर पूरा भरोसा भी नहीं किया जाता और आइएस की पुलिस इन पर नज़र रखती है। सिर्फ ट्यूनीशिया, सऊदी अरब, फलस्तीन, इराक और सीरिया के अरब ही आईएसआईएस पुलिस मे शामिल हो सकते है।
सोशल मीडिया के जरिये लुभाता है संगठन
वहां से लौटे भारत के लड़कों के अनुभव भी यही बताते हैं। भारत से अब तक 23 लोग आइएसआइएस के लिए लड़ने गए हैं, इनमें से छह की मौत हो चुकी है। यहां नेट और सोशल मीडिया के सहारे इन लड़कों को लुभाया जाता रहा है, जिसे भारत सरकार रोकने की कोशिश में है। सोशल मीडिया पर जेहाद जितना लुभावना लग सकता है, हक़ीक़त में उतना नहीं है। वहां इस्लाम वाली बराबरी नहीं है, अरबी लड़ाकों का दबदबा है जिसके शिकार एशिया के इस हिस्से से लड़के होते हैं। ये जरूरी है कि उनके प्रचार तंत्र को काटा जाए। अब सरकार सोशल मीडिया के जरिये उनसे लड़ने के लिए तैयार हो चुकी है।
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