प्रतीकात्मक फोटो.
नई दिल्ली:
जम्मू-कश्मीर में बीजेपी-पीडीपी गठबंधन टूटने के बाद अब राज्य में राज्यपाल शासन की तैयारी शुरू हो गई है. लेकिन अब बड़ा सवाल उठ रहा है कि क्या एक बार फिर से आतंकियों के खिलाफ अभियान तेज होगा? सेना के अलावा सीआरपीएफ और पुलिस को खुली छूट मिलेगी, जिससे वे पत्थरबाजों और आतंकियों के समर्थकों के खिलाफ बड़े ऑपरेशन कर सकें.
सेना के मुताबिक इस साल अब तक 68 आतंकी मारे गए हैं और सेना के 16 जवान शहीद हुए हैं, जबकि पिछले पूरे साल 213 आतंकी मारे गए थे और सेना के 62 जवान शहीद हुए थे. ध्यान रहे कि इस साल रमजान के महीने में लाइन ऑफ कंट्रोल पर घुसपैठ करने वाले आतंकियों को छोड़कर सेना ने कश्मीर में आतंकियों के खिलाफ सीजफायर के चलते कोई बड़ा ऑपरेशन लांच नही किया. वहीं सरहद पर पिछले साल 860 बार युद्धविराम का उल्लंघन हुआ था. जबकि इस साल छह महीने में ये आंकड़ा 1000 को पार कर चुका है.
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सेना के सूत्रों के मुताबिक राज्य में राज्यपाल शासन लगने से आतंकियों की खुफिया सूचना आसानी से मिलने लगेंगी. इससे सेना आतंकियों के खिलाफ जोर शोर से कार्रवाई कर पाएगी.
सुरक्षाबलों से जुड़े जानकार बता रहे हैं कि कश्मीर के हालात बद से बदतर होते जा रहे थे. सरेआम श्रीनगर में पत्रकार शुजात बुखारी की हत्या कर दी गई और सेना के जवान औरंगजेब की अगवा कर बुरे तरीके से हत्या कर दी गई. सुरक्षाबलों पर पत्थर फेंकने वाले करीब 9000 लोगों पर से राज्य सरकार ने मुकद्दमें वापस ले लिए थे. पीडीपी का कहना था कि इससे युवाओं को मुख्यधारा में लाने में मदद मिलेगी. इससे सुरक्षाबलों के मनोबल पर खासा असर पड़ा था. यही नहीं आतंकियों और उनके हमदर्दों को लेकर राज्य सरकार के पीडीपी नेताओं का नरम रवैया सुरक्षाबलों को काफी अखर रहा था.
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संभावना है कि अब दक्षिण कश्मीर में आतंकियों के खिलाफ बड़े ऑपरेशन किए जा सकते हैं. 29 जून से अमरनाथ यात्रा शुरू होने जा रही है, ऐसे में सुरक्षाबलों की कोशिश पहले की तरह आतंकियों की फिर से कमर तोड़ने की होगी ताकि इस बार आतंकी पिछली बार की तरह यात्रियों पर कोई कार्रवाई न कर सकें. हालांकि सेना पहले ही ज्यादातर आतंकियों के टॉप कमांडरों को मार गिरा चुकी है. इसके बावजूद सुरक्षाबलों की दिक्कत ये है कि जितने आतंकी मारे जा रहे हैं करीब उतने ही नए तैयार हो रहे हैं. इनसे निपटना आसान नहीं है.
VIDEO : आतंकियों के खिलाफ फिर शुरू होगा अभियान
बेशक सुरक्षाबलों के आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन और धारदार होंगे लेकिन क्या इससे वहां के हालात सुधर जाएंगे. इसका जवाब कश्मीर में आसानी से मिल जाएगा कि अगर ऐसा होता तो कश्मीर की समस्या कब की सुलझ जाती. कश्मीर में तैनात रह चुके सेना के एक अधिकारी बताते हैं कि अब सेना और सरकार को ज्यादा सावधान रहने की जरूरत है. इसके खतरनाक नतीजे भी सामने आ सकते हैं. ये बात पंजाब या फिर नगालैंड में साबित हो चुकी है. बिना सार्थक बातचीत के कोई समस्या नहीं सुलझ सकती है. ऐसे में अगर कश्मीर में कुछ भी गलत होता है तो उसका ठीकरा केन्द्र सरकार पर पड़ना तय है.
सेना के मुताबिक इस साल अब तक 68 आतंकी मारे गए हैं और सेना के 16 जवान शहीद हुए हैं, जबकि पिछले पूरे साल 213 आतंकी मारे गए थे और सेना के 62 जवान शहीद हुए थे. ध्यान रहे कि इस साल रमजान के महीने में लाइन ऑफ कंट्रोल पर घुसपैठ करने वाले आतंकियों को छोड़कर सेना ने कश्मीर में आतंकियों के खिलाफ सीजफायर के चलते कोई बड़ा ऑपरेशन लांच नही किया. वहीं सरहद पर पिछले साल 860 बार युद्धविराम का उल्लंघन हुआ था. जबकि इस साल छह महीने में ये आंकड़ा 1000 को पार कर चुका है.
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सेना के सूत्रों के मुताबिक राज्य में राज्यपाल शासन लगने से आतंकियों की खुफिया सूचना आसानी से मिलने लगेंगी. इससे सेना आतंकियों के खिलाफ जोर शोर से कार्रवाई कर पाएगी.
सुरक्षाबलों से जुड़े जानकार बता रहे हैं कि कश्मीर के हालात बद से बदतर होते जा रहे थे. सरेआम श्रीनगर में पत्रकार शुजात बुखारी की हत्या कर दी गई और सेना के जवान औरंगजेब की अगवा कर बुरे तरीके से हत्या कर दी गई. सुरक्षाबलों पर पत्थर फेंकने वाले करीब 9000 लोगों पर से राज्य सरकार ने मुकद्दमें वापस ले लिए थे. पीडीपी का कहना था कि इससे युवाओं को मुख्यधारा में लाने में मदद मिलेगी. इससे सुरक्षाबलों के मनोबल पर खासा असर पड़ा था. यही नहीं आतंकियों और उनके हमदर्दों को लेकर राज्य सरकार के पीडीपी नेताओं का नरम रवैया सुरक्षाबलों को काफी अखर रहा था.
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बेशक सुरक्षाबलों के आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन और धारदार होंगे लेकिन क्या इससे वहां के हालात सुधर जाएंगे. इसका जवाब कश्मीर में आसानी से मिल जाएगा कि अगर ऐसा होता तो कश्मीर की समस्या कब की सुलझ जाती. कश्मीर में तैनात रह चुके सेना के एक अधिकारी बताते हैं कि अब सेना और सरकार को ज्यादा सावधान रहने की जरूरत है. इसके खतरनाक नतीजे भी सामने आ सकते हैं. ये बात पंजाब या फिर नगालैंड में साबित हो चुकी है. बिना सार्थक बातचीत के कोई समस्या नहीं सुलझ सकती है. ऐसे में अगर कश्मीर में कुछ भी गलत होता है तो उसका ठीकरा केन्द्र सरकार पर पड़ना तय है.
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