इंदिरा गांधी एक क्षेत्रीय समूह बनाना चाहती थीं, जो सोवियत को अफगानिस्तान में गतिविधियां रोकने के लिए दबाव बना सके
नई दिल्ली:
वर्ष 1980 में अफगानिस्तान में हो रहे सोवियत आक्रमण से चिंतित भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जिया उल हक को 'कब्ज़े' से प्रभावी रूप से निबटने के लिए भारत द्वारा प्रायोजित क्षेत्रीय रणनीति में शामिल होने के लिए राजी करवाने का प्रयास किया था. सीआईए की सार्वजनिक की गई एक रिपोर्ट में यह बात सामने आई है.
अमेरिकी खुफिया एजेंसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि इंदिरा गांधी चाहती थीं कि एक क्षेत्रीय समूह बनाया जाए, जो सोवियत को अफगानिस्तान में उसकी गतिविधियां सीमित करने के लिए दबाव बना सके.
उधर, पाकिस्तान सरकार इस बात से चिंतित थी कि अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा पर तनाव का फायदा उठाकर भारत पाकिस्तान को धमका सकता है अथवा भारत उसके परमाणु प्रतिष्ठानों पर हमला बोल सकता है.
पिछले सप्ताह सार्वजनिक की गई इस रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान नेतृत्व सोवियत और भारत के अलग-अलग या संयुक्त संभावित प्रयासों को लेकर सशंकित था कि वे पाकिस्तान की स्थिरता को कमतर न करें.
रिपोर्ट के अनुसार अफगानिस्तान में वर्ष 1979 के सोवियत आक्रमण के फौरन बाद सत्ता में वापसी करने वाली इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति जिया उल हक को सोवियत कब्जे के विरुद्ध भारत-प्रायोजित क्षेत्रीय रुख अपनाने में शामिल होने के लिए मनाया था.
भारत के प्रयासों को खारिज करते हुए पाकिस्तान के अधिकारियों ने इस योजना से अमेरिकी राजनयिकों को अवगत करवाया था, और इसके बजाय उन्होंने अमेरिकी पेशकश को स्वीकार किया था, जिसमें अफगानिस्तान में सोवियत खतरे से निबटने के लिए पाकिस्तान को हथियार देने की बात थी.
भारत को अपनी ओर से यह आशंका थी कि अमेरिका पाकिस्तान सैन्य संबंधों की बहाली तथा हिन्द महासागर में अमेरिकी नौसेना की उपस्थिति बढ़ने से क्षेत्र में सुपर पॉवर प्रतिस्पर्द्धा बढ़ेगी. इस क्षेत्र में भारत अपना बिना चुनौती वाले दबदबे की आकांक्षा रखता था.
(इनपुट भाषा से भी)
अमेरिकी खुफिया एजेंसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि इंदिरा गांधी चाहती थीं कि एक क्षेत्रीय समूह बनाया जाए, जो सोवियत को अफगानिस्तान में उसकी गतिविधियां सीमित करने के लिए दबाव बना सके.
उधर, पाकिस्तान सरकार इस बात से चिंतित थी कि अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा पर तनाव का फायदा उठाकर भारत पाकिस्तान को धमका सकता है अथवा भारत उसके परमाणु प्रतिष्ठानों पर हमला बोल सकता है.
पिछले सप्ताह सार्वजनिक की गई इस रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान नेतृत्व सोवियत और भारत के अलग-अलग या संयुक्त संभावित प्रयासों को लेकर सशंकित था कि वे पाकिस्तान की स्थिरता को कमतर न करें.
रिपोर्ट के अनुसार अफगानिस्तान में वर्ष 1979 के सोवियत आक्रमण के फौरन बाद सत्ता में वापसी करने वाली इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति जिया उल हक को सोवियत कब्जे के विरुद्ध भारत-प्रायोजित क्षेत्रीय रुख अपनाने में शामिल होने के लिए मनाया था.
भारत के प्रयासों को खारिज करते हुए पाकिस्तान के अधिकारियों ने इस योजना से अमेरिकी राजनयिकों को अवगत करवाया था, और इसके बजाय उन्होंने अमेरिकी पेशकश को स्वीकार किया था, जिसमें अफगानिस्तान में सोवियत खतरे से निबटने के लिए पाकिस्तान को हथियार देने की बात थी.
भारत को अपनी ओर से यह आशंका थी कि अमेरिका पाकिस्तान सैन्य संबंधों की बहाली तथा हिन्द महासागर में अमेरिकी नौसेना की उपस्थिति बढ़ने से क्षेत्र में सुपर पॉवर प्रतिस्पर्द्धा बढ़ेगी. इस क्षेत्र में भारत अपना बिना चुनौती वाले दबदबे की आकांक्षा रखता था.
(इनपुट भाषा से भी)
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