
भारत-चीन सीमा विवाद के बाद चीनी सामान के बहिष्कार को लेकर बहस शुरू है. अगर भारत सरकार के स्तर पर बहिष्कार का फैसला लिया गया तो रेलवे को लेकर चीनी कंपनियों को खासा नुकसान हो सकता है. इस बीच डेडीकेटेड फ्रेट कॉरीडोर ने काम कम होने का हवाला देते हुए चीनी कंपनी से 4 साल पुराना 471 करोड़ रु का कॉन्ट्रैक्ट कैंसल कर दिया है. पटरियों पर दौड़ती इन ट्रेनों में खासा सामान विदेशों का लगा होता है और अधिकांश सामान का आयात चीन से होता है. कुछ यूरोप के देशों के भी सामान होते हैं पर चीन सबको पीछे छोड़ चुका है. भारत में हर साल सात से आठ हजार रेलवे कोच बनते हैं.
In view of poor progress, it is decided by Dedicated Freight Corridor Corporation of India (DFCCIL) to terminate the contract with Beijing National Railway Research and Design Institute of Signal and Communication Group Co. Ltd. pic.twitter.com/CZerMVSwIf
— ANI (@ANI) June 18, 2020
-आयात होकर कोच में लगने वाले कंपोनेंट में एयर स्प्रिंग दो पहियों के बीच लगता है और हर कोच में लगने वाले चार एयर स्प्रिंग की कीमत चार लाख रुपये तक पड़ती है.
-साथ ही हर कोच में एयर स्प्रिंग को लेकर लगने वाले 1 कंट्रोलिंग सिस्टम की कीमत 1.5 लाख रु होती है.
- एक कोच में एक ब्रेक इक्विपमेंट कीमत 15-20 लाख रु.
- LED लाइट, स्विच और फायर प्रूफिंग इलेक्ट्रिक केबल्स के रॉ मटेरियल की कीमत हर कोच में 10-15 लाख बैठता है.
- शीट और बर्थ में लगने वाले poly urithane foam का रॉ मटेरियल एक कोच में करीब 3-4 लाख का पड़ता है.
इसी तरह ट्रेन के पहियों में लगने वाला axles को लेकर चीन की तीन कंपनियों से 1 करोड़ 83 लाख 55 हज़ार 152 डॉलर का करार पर भी खतरे के बादल मंडरा सकते हैं. 6000 LHB axles को लेकर 44 लाख 70 हज़ार डॉलर का करार इस साल मई के महीने में हुआ जिसकी पूरी डिलीवरी अक्टूबर तक करनी है. इसी तरह 4000 LHB axles को लेकर चीन की एक दूसरी कंपनी से 30 लाख 40 हज़ार 152 डॉलर का करार इसी साल मार्च में हुआ और तीन महीने में पूरी डिलीवरी तय हुई है.15000 ब्रॉड गेज axles का 1 करोड़ 8 लाख 45 हज़ार डॉलर का करार पिछले साल अक्टूबर में हुआ जिसकी पूरी खेप 7 महीने में भारत डिलीवरी की जानी थी लेकिन कोरोना की वजह से मामला अटका है.
इन विवादों के बीच डेडीकेटेड फ्रेट कॉरीडोर ने बीजिंग की एक कंपनी से अपना 4 साल पुराना 471 करोड़ रु का करार खत्म कर दिया. कानपुर से दीन दयाल उपाध्याय मार्ग तक के 417 किलो मीटर में चीन की कंपनी को सिग्नलिंग और टेलीकम्युनिकेशन का काम करना था. इस करार को खत्म करते हुए कहा गया है कि चार साल में महज़ 20% ही काम हुआ है, ऐसे में चीनी कंपनियों के लिए आज के हालात के मद्देनजर संभावनाएं कम भारत में कारोबार को लेकर आशंकाएं ज़्यादा हैं.
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