प्रतीकात्मक फोटो
अहमदाबाद:
गुजरात के महेसाणा जिले के लक्ष्मीपुरा-भांडु गांव में भीखाभाई सेनमा का परिवार तीन पीढ़ियों से रह रहा है। सन 1996 के आसपास उन्हें दलित होने के कारण सरकारी योजना में आंबेडकर आवास योजना के तहत मकान भी मिले। तीन पीढ़ियों से खेतों में शौच के लिए जाने वाला परिवार पिछले दो सालों से लगातार अपने घर के आंगन में शौचालय बनाने की मशक्कत कर रहा है, लेकिन गांव के अगड़े चौधरी समाज के विरोध के चलते निर्माण नहीं करा पा रहा है।
ग्राम पंचायत से भी नहीं मिली मदद
भीखाभाई का कहना है कि उन्होंने दो साल पहले घर के आंगन में सड़क के किनारे शौचालय बनवाने के लिए ईंट और सीमेन्ट समेत सभी सामग्री मंगवा ली थी लेकिन जैसे ही काम शुरू हुआ, गांव के कुछ लोगों ने इसका विरोध शुरू कर दिया। विरोध के चलते अब भी उन्हें खुले में ही शौच जाना पड़ता है। उनका कहना है कि पुरुष तो अंधेरा होने पर भी खुले में चले जाते हैं, लेकिन महिलाओं का जाना दूभर होता है। भीखाभाई कहते हैं कि उन्होंने स्थानीय ग्राम पंचायत में कई फरियादें दीं लेकिन इसके बावजूद कोई मदद नहीं मिल पाई और वे अपना शौचालय नहीं बना पाए।
सड़क के किनारे शौचालय का विरोध
उधर सेनमा के शौचालय का विरोध करने वाले गांव के चौधरी समाज के लोगों का कहना है कि उन्होंने इसके खिलाफ कोर्ट में याचिका लगाई है। दलसंग चौधरी और लालजी चौधरी कहते हैं कि यह पूरी जमीन गौचर है जो कि पशुओं के चरने के लिए आरक्षित है। लेकिन जब उनसे याचिका की कॉपी मांगी गई तो वे मुकर गए। वह इस सवाल का जवाब भी नहीं दे पाए कि, इसी जमीन पर दूसरे कई लोगों के घर हैं, वहां विरोध क्यों नहीं हो रहा? उनका कहना है कि हम उनके शौचालय बनाने के विरोधी नहीं हैं लेकिन वे सड़क के किनारे न बनाएं। लेकिन भीखाभाई का कहना है कि वे पहले से ही बहुत छोटे घर में रह रहे हैं। उसमें भी अगर शौचालय बना लेंगे तो रहने के लिए जगह नहीं रहेगी।
जिला प्रशासन को समाधान की उम्मीद
जिला प्रशासन का कहना है कि वह इस मामले में जांच कर रहा है और जल्द ही दोनों पक्षों के बीच कुछ समाधान करा लेने के लिए आशा करता है। लेकिन महत्वपूर्ण है कि एक तरफ केन्द्र सरकार शौचालय बनवाने की मुहिम चला रही है और दूसरी तरफ दो-दो सालों से इस तरह के जातिगत मामलों के कारण शौचालय नहीं बन पा रहे हैं। प्रशासन इन मामलों को प्राथमिकता दे ताकि स्वच्छ भारत अभियान सही मायने में सार्थक हो।
ग्राम पंचायत से भी नहीं मिली मदद
भीखाभाई का कहना है कि उन्होंने दो साल पहले घर के आंगन में सड़क के किनारे शौचालय बनवाने के लिए ईंट और सीमेन्ट समेत सभी सामग्री मंगवा ली थी लेकिन जैसे ही काम शुरू हुआ, गांव के कुछ लोगों ने इसका विरोध शुरू कर दिया। विरोध के चलते अब भी उन्हें खुले में ही शौच जाना पड़ता है। उनका कहना है कि पुरुष तो अंधेरा होने पर भी खुले में चले जाते हैं, लेकिन महिलाओं का जाना दूभर होता है। भीखाभाई कहते हैं कि उन्होंने स्थानीय ग्राम पंचायत में कई फरियादें दीं लेकिन इसके बावजूद कोई मदद नहीं मिल पाई और वे अपना शौचालय नहीं बना पाए।
सड़क के किनारे शौचालय का विरोध
उधर सेनमा के शौचालय का विरोध करने वाले गांव के चौधरी समाज के लोगों का कहना है कि उन्होंने इसके खिलाफ कोर्ट में याचिका लगाई है। दलसंग चौधरी और लालजी चौधरी कहते हैं कि यह पूरी जमीन गौचर है जो कि पशुओं के चरने के लिए आरक्षित है। लेकिन जब उनसे याचिका की कॉपी मांगी गई तो वे मुकर गए। वह इस सवाल का जवाब भी नहीं दे पाए कि, इसी जमीन पर दूसरे कई लोगों के घर हैं, वहां विरोध क्यों नहीं हो रहा? उनका कहना है कि हम उनके शौचालय बनाने के विरोधी नहीं हैं लेकिन वे सड़क के किनारे न बनाएं। लेकिन भीखाभाई का कहना है कि वे पहले से ही बहुत छोटे घर में रह रहे हैं। उसमें भी अगर शौचालय बना लेंगे तो रहने के लिए जगह नहीं रहेगी।
जिला प्रशासन को समाधान की उम्मीद
जिला प्रशासन का कहना है कि वह इस मामले में जांच कर रहा है और जल्द ही दोनों पक्षों के बीच कुछ समाधान करा लेने के लिए आशा करता है। लेकिन महत्वपूर्ण है कि एक तरफ केन्द्र सरकार शौचालय बनवाने की मुहिम चला रही है और दूसरी तरफ दो-दो सालों से इस तरह के जातिगत मामलों के कारण शौचालय नहीं बन पा रहे हैं। प्रशासन इन मामलों को प्राथमिकता दे ताकि स्वच्छ भारत अभियान सही मायने में सार्थक हो।
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