कोरोना काल में गुना जिले से मानवता को शर्मसार कर देने वाली एक घटना सामने आई है. जिले में स्वास्थ्य व्यवस्थाएं न मिलने के कारण महिला ने सड़क पर ही नवजात को जन्म दिया है. यह मामला गुना जिले के फतेहगढ़ के गांव मारवाड़ का है. दरअसल, गर्भवती महिला घर पर अकेली थी. महिला का नाम जानू बाई बताया जा रहा है. परिवार के सारे सदस्य शादी में गए हुए थे. इसी दौरान उसे दर्द होने लगा. महिला ने आशा कार्यकर्ता को फोन किया, लेकिन आशा कार्यकर्ता कोरोना पॉजिटिव थीं. आइसोलेशन में होने के कारण आशा कार्यकर्ता ने उसे फोन पर ही गांव की आंगनवाड़ी केंद्र पर जाने को कह दिया. लेकिन वहां भी स्टाफ नहीं मिला.
जानू बाई 4 घंटे तक इधर-उधर भटकती रही और स्वास्थ्य विभाग को सूचना देने के बाद भी कोई मदद नहीं मिली, तो ज्यादा प्रसव पीड़ा से गुजर रही जानू बाई पैदल ही करीब 20 किमी दूर गुना स्वास्थ्य केंद्र की तरफ निकल पड़ी.
लेकिन सड़क पर चलते-चलते उनकी प्रसव पीड़ा और बढ़ गई और जानू बाई ने सड़क पर ही नवजात बच्चे को जन्म दे दिया.
यहां न सिर्फ मानवता शर्मसार हुई है, बल्कि जिले में कई वाहन होने के बावजूद भी एक मां को सड़क पर बच्चे को जन्म देने पर मजबूर होना पड़ा. महिला सड़क पर 2 घंटे तक पड़ी रही. सड़क पर निकलने वाले लोगों ने उसे अपने कपड़े उतारकर ढका और मदद के लिए इधर-उधर फोन घुमाते रहे.
वहीं, किसी ने इसकी जानकारी वरिष्ठ अधिकारियों को दी कि महिला ने सड़क पर ही बच्चे को जन्म दिया है और वह सड़क पर पड़ी हुई है और दर्द से तड़प रही है. इसके बाद प्रशासन जागा और जननी एक्सप्रेस को भेजा गया. इसके बाद जननी एक्सप्रेस महिला और बच्चे को लेकर जिला अस्पताल पहुंची, जहां पर दोनों को एडमिट किया गया है और उनका इलाज अभी जारी है.
अच्छी बात ये रही कि सड़क पर निकलने वाले लोगों ने समझदारी दिखाई, जिसके कारण महिला और बच्चे को सुरक्षित बचा लिया गया. लेकिन यहां बड़ा सवाल यह है कि स्वास्थ व्यवस्थाओं के लिए करोड़ों रुपये के फंड आते हैं, लेकिन बावजूद इसके स्वास्थ्य व्यवस्थाएं दुरुस्त क्यों नहीं हो पाती हैं. बड़ा सवाल ये है कि आखिर स्वास्थ्य केंद्र, आंगनवाड़ी केंद्र, आशा कार्यकर्ता, जननी वाहन जैसी सुविधाएं होने के बाद भी 1 महिला को सड़क पर बच्चे को जन्म देने पर मजबूर क्यों होना पड़ा?
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