माता-पिता को मिली 5 महीने के मासूम की कस्टडी
जयपुर:
'अदालत मूक दर्शक नहीं बन सकती जब एक 5 महीने के बच्चे के अधिकारों को उसके माता-पिता धर्म के नाम पर दांव पर लगा देते हैं। ये कहना था राजस्थान हाई कोर्ट का जब उनके सामने एक बच्चे को लेकर माता-पिता और दादी-दादा के बीच बच्चे के संरक्षण को लेकर विवाद पहुंचा।
केस दिल दहलाने वाला है। एक माता-पिता ने अपने पांच महीने के बच्चे को एक धर्म गुरु को सौंप दिया। दादा-दादी ने ऐतराज़ जताया और कोर्ट का दरवाज़ा खाटखटाया। उनका कहना था कि गुरु तांत्रिक है और बच्चे का वहां मध्य प्रदेश में उसके आश्रम में रह कर नुकसान भी हो सकता है। केस में अत्यंत संवेदनशीलता दिखाते हुए कोर्ट ने आदेश दिए के बच्चे को गुरु के आश्रम से ला कर उनके सामने पेश किया जाये। बच्चे को लेने उसके माता-पिता गए। 8 दिन बाद, इस पांच महीने के बच्चे को अपनी बांहों में सिमटाये उसकी मां कोर्ट के सामने पेश हुई।
एक हफ्ते से ये बच्चा मध्य प्रदेश के खंडवा में गुरु के आश्रम में था लेकिन अपने पोते को गुरु को गोद देने से उसके दादा-दादी सहमत नहीं थे। पहले तो बेटे बहु को समझने की कोशिश की और जब वो अपने फैसले पर अड़े रहे तो आखिरकार दादा-दादी ने अदालत में अर्ज़ी लगाई।
बच्चे को कोर्ट में पेश होते हुए देख दादा राजेंद्र पुरोहित की आंखों में आंसू भर आये। 'आज वो बच्चा वहां सात दिन रहा तो उल्टी दस्त हो रही है उसे, और उसका वजन कम हो गया है, अगर सात दिन में ये हाल हुआ तो आगे क्या हाल होता।'
दादी अनसूया कुमारी चिंतित थी। उन्होंने कहा, 'मेरे को यही चिंता थी कि मेरा बेटा अगर कहीं चला गया तो मेरा पोता, उसका क्या हाल होगा। इतना सा बच्चा है, साधु संत जो खुद शादीशुदा नहीं हैं, वो संन्यासी है, वो इधर उधर घूमता है, उसका संरक्षण कौन करेगा? चेले चाटी?
लेकिन कोर्ट में आ कर एक हफ्ते बाद भी बच्चे को अपने गोद में लेकर माता-पिता की ममता नहीं पिघली। उन्होंने कोर्ट में भी कहा की उन्होंने जो कुछ भी किया क़ानून के मुताबिक किया।
बच्चे की मां पूजा ने कहा, 'हमने बच्चे को स्वेच्छा से गुरुजी को दिया, हम लोग पढ़े लिखे हैं, मैंने डॉक्टरेट किया है मेरे पति ग्रेजुएट हैं, हमने जो कुछ किया बच्चे के अच्छे के लिए किया।' उसका एक बड़ा बेटा और है जो 8 साल का है।
राजस्थान हाई कोर्ट ने इस अजीबोगरीब पहल की सुनवाई ज़रूर की लेकिन आखिरकार कहा की बच्चे के भलाई फिलहाल माता-पिता के साथ रहने में ही है।
इस केस को लेकर कई सवाल उठते हैं। एक तरफ हैं माता-पिता जिन्होंने अपना खुद का बच्चा एक धर्म गुरु को दे दिया, दूसरी ओर दादा-दादी जो कहते हैं, हम अपना बच्चा कैसे किसी और को दे सकते हैं। राजस्थान हाई कोर्ट ने फिलहाल एक अंतरिम ऑर्डर ही पास किया है जिसमें उन्होंने कहा है कि बच्चा माता-पिता के साथ ही रहेगा।
लेकिन ये बड़ा उलझा हुआ केस है और ये एडॉप्शन को लेकर कई सवाल खड़े करता है और हो सकता है आगे जा कर राजस्थान हाई कोर्ट इन सवालों के जवाब दे। चार हफ्ते बाद कोर्ट ने इस केस में सभी पार्टीज को तालाब किया है।
केस दिल दहलाने वाला है। एक माता-पिता ने अपने पांच महीने के बच्चे को एक धर्म गुरु को सौंप दिया। दादा-दादी ने ऐतराज़ जताया और कोर्ट का दरवाज़ा खाटखटाया। उनका कहना था कि गुरु तांत्रिक है और बच्चे का वहां मध्य प्रदेश में उसके आश्रम में रह कर नुकसान भी हो सकता है। केस में अत्यंत संवेदनशीलता दिखाते हुए कोर्ट ने आदेश दिए के बच्चे को गुरु के आश्रम से ला कर उनके सामने पेश किया जाये। बच्चे को लेने उसके माता-पिता गए। 8 दिन बाद, इस पांच महीने के बच्चे को अपनी बांहों में सिमटाये उसकी मां कोर्ट के सामने पेश हुई।
एक हफ्ते से ये बच्चा मध्य प्रदेश के खंडवा में गुरु के आश्रम में था लेकिन अपने पोते को गुरु को गोद देने से उसके दादा-दादी सहमत नहीं थे। पहले तो बेटे बहु को समझने की कोशिश की और जब वो अपने फैसले पर अड़े रहे तो आखिरकार दादा-दादी ने अदालत में अर्ज़ी लगाई।
बच्चे को कोर्ट में पेश होते हुए देख दादा राजेंद्र पुरोहित की आंखों में आंसू भर आये। 'आज वो बच्चा वहां सात दिन रहा तो उल्टी दस्त हो रही है उसे, और उसका वजन कम हो गया है, अगर सात दिन में ये हाल हुआ तो आगे क्या हाल होता।'
दादी अनसूया कुमारी चिंतित थी। उन्होंने कहा, 'मेरे को यही चिंता थी कि मेरा बेटा अगर कहीं चला गया तो मेरा पोता, उसका क्या हाल होगा। इतना सा बच्चा है, साधु संत जो खुद शादीशुदा नहीं हैं, वो संन्यासी है, वो इधर उधर घूमता है, उसका संरक्षण कौन करेगा? चेले चाटी?
लेकिन कोर्ट में आ कर एक हफ्ते बाद भी बच्चे को अपने गोद में लेकर माता-पिता की ममता नहीं पिघली। उन्होंने कोर्ट में भी कहा की उन्होंने जो कुछ भी किया क़ानून के मुताबिक किया।
बच्चे की मां पूजा ने कहा, 'हमने बच्चे को स्वेच्छा से गुरुजी को दिया, हम लोग पढ़े लिखे हैं, मैंने डॉक्टरेट किया है मेरे पति ग्रेजुएट हैं, हमने जो कुछ किया बच्चे के अच्छे के लिए किया।' उसका एक बड़ा बेटा और है जो 8 साल का है।
राजस्थान हाई कोर्ट ने इस अजीबोगरीब पहल की सुनवाई ज़रूर की लेकिन आखिरकार कहा की बच्चे के भलाई फिलहाल माता-पिता के साथ रहने में ही है।
इस केस को लेकर कई सवाल उठते हैं। एक तरफ हैं माता-पिता जिन्होंने अपना खुद का बच्चा एक धर्म गुरु को दे दिया, दूसरी ओर दादा-दादी जो कहते हैं, हम अपना बच्चा कैसे किसी और को दे सकते हैं। राजस्थान हाई कोर्ट ने फिलहाल एक अंतरिम ऑर्डर ही पास किया है जिसमें उन्होंने कहा है कि बच्चा माता-पिता के साथ ही रहेगा।
लेकिन ये बड़ा उलझा हुआ केस है और ये एडॉप्शन को लेकर कई सवाल खड़े करता है और हो सकता है आगे जा कर राजस्थान हाई कोर्ट इन सवालों के जवाब दे। चार हफ्ते बाद कोर्ट ने इस केस में सभी पार्टीज को तालाब किया है।
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