सोचिए, अगर किसी का एक्सीडेंट हो गया... चोट लगी, हॉस्पिटल में भर्ती हुए, इलाज कराया, अच्छा हुआ कि पहले से मेडिक्लेम पॉलिसी ली थी तो हॉस्पिटल का खर्चा वहीं से कवर हो गया, लेकिन जब इंश्योरेंस कंपनी से जब एक्सीडेंट क्लेम मांगा तो उन्होंने कहा- ‘अरे भाई, तुम्हें तो पहले ही मेडिक्लेम से पैसे मिल चुके हैं. अब हमसे और क्या चाहिए?' अब सवाल ये उठता है कि क्या वाकई ऐसा होना चाहिए? क्या इंश्योरेंस कंपनी सही कह रही है? बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस पर बड़ा फैसला दिया है और ये सिर्फ कानून का मामला नहीं है, बल्कि आपके हक से जुड़ा मुद्दा है. इस फैसले से उन लाखों लोगों को राहत मिलेगी, जो अपनी जेब से इंश्योरेंस का प्रीमियम भरते हैं और मुश्किल वक्त में दोबारा ठगे जाने की कगार पर खड़े होते हैं. तो चलिए इस पूरे मामले को आसान भाषा में और पूरी गहराई से समझते हैं.
क्या है पूरा मामला?
ये केस New India Assurance Company बनाम एक क्लेमेंट के बीच का था। मामला इस तरह था.
- एक व्यक्ति सड़क हादसे में घायल हुआ।
- उसने इलाज करवाया, जिसका खर्च उसकी मेडिक्लेम पॉलिसी से मिल गया.
- बाद में, उसने मोटर एक्सीडेंट क्लेम किया, ताकि उसे मुआवजा मिल सके.
- लेकिन इंश्योरेंस कंपनी ने कहा कि आपको तो पहले ही मेडिकल खर्च मिल चुका है, अब हमसे क्यों मांग रहे हो?
बॉम्बे हाईकोर्ट ने क्या फैसला दिया?
बॉम्बे हाईकोर्ट की फुल बेंच ने इस पर ऐतिहासिक फैसला दिया और बीमा कंपनी की बात को गलत ठहराया. कोर्ट ने कहा कि मेडिक्लेम पॉलिसी से मिला पैसा और मोटर एक्सीडेंट क्लेम, दोनों अलग-अलग चीजें हैं. मेडिक्लेम का पैसा व्यक्ति को इसलिए मिलता है, क्योंकि उसने पहले से बीमा कंपनी से एक कॉन्ट्रैक्ट किया था और उसका प्रीमियम भरा था इसलिए इंश्योरेंस कंपनी को यह हक नहीं कि वो मेडिक्लेम से मिले पैसे को एक्सीडेंट क्लेम से घटा दे. हाईकोर्ट ने साफ-साफ कहा कि अगर किसी ने दूरदर्शिता दिखाते हुए मेडिक्लेम पॉलिसी ली है और उसका फायदा उठाया है तो इसका मतलब ये नहीं कि एक्सीडेंट क्लेम काट लिया जाए. ये उसका हक है और बीमा कंपनियां इसका फायदा नहीं उठा सकतीं.
पुराने फैसले क्या कहते हैं?
यह मामला कई सालों से उलझा हुआ था, क्योंकि अलग-अलग अदालतों के फैसले अलग-अलग थे.कुछ मामलों में ट्रिब्यूनल और हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने बीमा कंपनियों का पक्ष लिया था.वहीं कुछ फैसलों में कहा गया था कि क्लेमेंट को पूरा मुआवजा मिलना चाहिए, चाहे उसे मेडिक्लेम मिला हो या नहीं इसलिए ये मामला बॉम्बे हाईकोर्ट की फुल बेंच के पास भेजा गया, ताकि इस पर एक फाइनल फैसला हो सके.
बीमा कंपनियों की चालाकी कैसे पकड़ी गई?
इंश्योरेंस कंपनियां अक्सर ऐसे मामलों में "डबल कंपन्सेशन" की दलील देकर पैसा बचाने की कोशिश करती हैं, लेकिन कोर्ट ने साफ किया कि मेडिक्लेम पॉलिसी एक निजी अनुबंध (contract) है, जो व्यक्ति और बीमा कंपनी के बीच हुआ था. मोटर एक्सीडेंट क्लेम मोटर व्हीकल्स एक्ट के तहत एक कानूनी अधिकार है. अगर बीमा कंपनियां ऐसा करने लगीं, तो इससे उन्हें अनुचित लाभ मिलेगा, जो कानून के खिलाफ है.
क्लेम करते समय किन बातों का ध्यान रखें?
अगर आपको कभी ऐसी स्थिति का सामना करना पड़े, तो इन 3 बातों को हमेशा याद रखें:-
- मेडिकल खर्च और एक्सीडेंट क्लेम, दोनों का हक रखें. अगर बीमा कंपनी आपको बहाने देकर पैसे काटने की कोशिश करे, तो कोर्ट के इस फैसले का हवाला दें।
- अपने क्लेम के पूरे डॉक्यूमेंट्स तैयार रखें. हॉस्पिटल के बिल, इंश्योरेंस पेपर्स, पुलिस रिपोर्ट- सब कुछ संभालकर रखें, ताकि आपको पूरे हक का भुगतान मिले.
- अगर बीमा कंपनी पैसे देने से इनकार करे, तो मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्रिब्यूनल (MACT) में केस दर्ज करें.
क्यों है ये फैसला इतना जरूरी?
अगर ये फैसला नहीं आता, तो बीमा कंपनियां इसी बहाने से लाखों लोगों के एक्सीडेंट क्लेम काट सकती थीं। लेकिन अब यह स्पष्ट हो गया कि :-
- मेडिक्लेम और एक्सीडेंट क्लेम दो अलग-अलग चीजें हैं।
- बीमा कंपनियां अब किसी का हक नहीं मार पाएंगी।
- जो लोग दूरदर्शिता दिखाकर मेडिक्लेम लेते हैं, उन्हें अब दोबारा नुकसान नहीं उठाना पड़ेगा.
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