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This Article is From May 11, 2019

तीन साल बाद कितनी सफल हो पाई मोदी सरकार की उज्जवला योजना? पढ़ें- ग्राउंड रिपोर्ट

एनडीटीवी ने ज़मीनी हक़ीक़त का जायज़ा लिया और पाया कि गैस चूल्हा और सिलेंडर तो घरों में पहुंच चुका है, लेकिन खाना पकाने के पारंपरिक तौर-तरीक़े ही प्रचलित हैं.

नरेंद्र मोदी सरकार ने 2016 में उज्ज्वला योजना  (Ujjwala Yojana) शुरू की थी.

नई दिल्ली:

नरेंद्र मोदी सरकार ने 2016 में उज्ज्वला योजना  (Ujjwala Yojana) शुरू की थी. इसका मक़सद ग्रामीण क्षेत्रों के गरीब लोगों को चूल्हे से निजात दिलाना और गैस सिलेंडर मुहैया कराना था. प्रधानमंत्री मोदी ने ये योजना पूर्वी उत्तर प्रदेश के बलिया ज़िले से शुरू की थी. तीन साल बाद एनडीटीवी ने ज़मीनी हक़ीक़त का जायज़ा लिया और पाया कि गैस चूल्हा और सिलेंडर तो घरों में पहुंच चुका है, लेकिन खाना पकाने के पारंपरिक तौर-तरीक़े ही प्रचलित हैं. बलिया की गुड्डी देवी एक ईंट भट्ठा मज़दूर की पत्नी हैं और तीन बच्चों की मां हैं. 2016 में उन्हें प्रधानमंत्री की उज्ज्वला योजना  (Ujjwala Yojana) के तहत गैस सिलिंडर मिला था. पूर्वी उत्तर प्रदेश के इस ज़िले में एक कार्यक्रम में उन्हें ये सिलिंडर सीधे प्रधानमंत्री के हाथों से मिला था.

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लेकिन तीन साल बाद भी उज्ज्वला योजना  (Ujjwala Scheme) का चेहरा बनीं जिग्नी ख़ास गांव की गुड्डी देवी हर सुबह कोयले और लकड़ी से अपना चूल्हा जलाती हैं. गुड्डी कहती हैं कि परिवार हर महीने सिलिंडर भराने का ख़र्च नहीं उठा सकता और पुराना चूल्हा जलाना सस्ता पड़ता है. जो गैस एजेंसी है, वो गढ़वार में गुड्डी के घर से तीन किलोमीटर दूर है. उसे 25 गांवों के एक हज़ार घरों में उज्ज्वला कनेक्शन की ज़िम्मेदारी मिली हुई है. इनमें गुड्डी देवी का कनेक्शन भी है. एजेंसी के कर्मचारी कहते हैं, पहले मुफ़्त गैस सिलिंडर के बाद, शायद ही कोई नियमित गैस सिलिंडर भरवाता हो. हर गांव में लगभग यही कहानी है. आउंदी में कलावंती कनौजिया और उनकी बहू पिंकी को दो साल पहले अलग-अलग सिलिंडर मिले. वो दोनों दो परिवार चलाती हैं. दोनों के पति ईंट भट्ठे में मज़दूर हैं. दोनों का कहना है कि वो इतना नहीं कमाते कि हर महीने सिलिंडर भरवा सकें.  

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सिलेंडर का महंगा होना बना सिरदर्द 
2018 नवंबर में कई राज्यों में सीईईडब्ल्यू- यानी काउंसिल ऑन इनर्जी, एनवायरॉन्मेंट ऐंड वाटर- की ओर से कराए गए सर्वेक्षण के मुताबिक खाना पकाने के लिए कोयले-लकड़ी का इस्तेमाल करने वाले घरों का अनुपात 2015 में 85% था जो 2018 में घट कर 61% रह गया. रिपोर्ट के मुताबिक, 2015 में 88% घरों का कहना था कि एलजीपी कनेक्शन का इस्तेमाल न करने की वजह इसका महंगा पड़ना है. 2018 में ये तादाद बस एक फ़ीसदी घट कर 87% रह गई.  

VIDEO: उज्ज्वला योजना की जमीनी स्थिति 

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