
फाइल फोटो
- धारा 377 पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी
- सुप्रीम कोर्ट ने फैसला रखा सुरक्षित
- इन याचिकाओं पर 10 जुलाई को सुनवाई शुरू हुयी थी
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धारा 377 में ‘‘ अप्राकृतिक अपराध का जिक्र है और कहता है कि जो भी प्रकृति की व्यवस्था के विपरीत किसी पुरूष, महिला या पशु के साथ यौनाचार करता है, उसे उम्र कैद या दस साल तक की कैद और जुर्माने की सजा हो सकती है.’’ न्यायालय ने नृत्यांगना नवतेज जौहर, पत्रकार सुनील मेहरा, शेफ रितु डालमिया, होटल मालिक अमन नाथ, केशव सूरी और कारोबारी आयशा कपूर तथा आईआईटी के 20 भूतपूर्व और वर्तमान छात्रों की याचिकाओं पर सुनवाई की. इन याचिकाओं में परस्पर सहमति से दो वयस्कों के बीच समलैंगिक यौन रिश्तों को अपराध की श्रेणी में रखने वाली भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को गैरकानूनी और असंवैधानिक घोषित करने का अनुरोध किया गया है.
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यह मुद्दा सबसे पहले 2001 में गैर सरकारी संस्था नाज फाउण्डेशन ने दिल्ली उच्च न्यायालय में उठाया था. उच्च न्यायालय ने सहमति से दो वयस्कों के बीच समलैंगिक रिश्ते को अपराध की श्रेणी से बाहर करते हुये इससे संबंधित प्रावधान को 2009 में गैर कानूनी घोषित कर दिया था. इसके बाद उच्चतम न्यायालय ने 2013 में उच्च न्यायालय का निर्णय निरस्त कर दिया था. शीर्ष अदालत ने अपने फैसले पर पुनर्विचार के लिये दायर याचिकायें भी खारिज कर दी थीं.
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