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महाभियोग की सिफारिश कैसे?... जस्टिस यशवंत वर्मा पर सुप्रीम सुनवाई, पढ़ें सिब्बल की दलीलें

जस्टिस यशवंत वर्मा की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, पढ़ें, कपिल सिब्बल आखिर दे रहे हैं क्या- क्या दलीलें

महाभियोग की सिफारिश कैसे?... जस्टिस यशवंत वर्मा पर सुप्रीम सुनवाई, पढ़ें सिब्बल की दलीलें
Justice varma
  • जस्टिस यशवंत वर्मा की ओर से पेश हुए सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल
  • सिब्बल बोले, आंतरिक प्रक्रिया के तहत जजों को हटाने की प्रक्रिया अनुच्छेद 124 के अधिकारों का उल्लंघन
  • कपिल सिब्बल: इन-हाउस प्रक्रिया देश का कानून है और यह पिछले 30 वर्षों से लागू है.
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नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा की याचिका पर सुनवाई करते हुए अपना फैसला सुरक्षित रख लिया. जस्टिस वर्मा ने नकदी बरामदगी मामले में आंतरिक जांच समिति की रिपोर्ट को अमान्य करार दिए जाने का अनुरोध किया है. जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एजी मसीह की बेंच में जस्टिस वर्मा की ओर से कपिल सिब्बल ने बहस शुरू की. सिब्बल ने कहा यदि आंतरिक प्रक्रिया के तहत जजों को हटाने की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है, तो यह अनुच्छेद 124 के अधिकारों का उल्लंघन है.  सिब्बल ने दलील दी कि  आंतरिक प्रक्रिया केवल सिफारिश या सलाह तक सीमित है, कार्यवाही शुरू करने का अधिकार नहीं. आंतरिक प्रक्रिया प्रशासनिक शक्तियों के एक भाग के रूप में तैयार की गई थी और इसका कोई बाध्यकारी अधिकार नहीं है. आंतरिक प्रक्रिया समिति को साक्ष्य के संहिताबद्ध नियमों का पालन करने के लिए बाध्य नहीं करती है. जानिए कोर्ट में क्या-क्या दलीलें चलीं... 

जस्टिस दत्ता:  इस आंतरिक प्रक्रिया की हमारे तीन फैसलों में पुष्ट की गई है.हम आपको क्या राहत दे सकते हैं ?
सिब्बल: आंतरिक प्रक्रिया केवल अनौपचारिक, प्रशासनिक प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य मुख्य न्यायाधीश को सहायता और सलाह देना है.

जस्टिस दत्ता: इस न्यायालय के 3 निर्णयों ने आंतरिक प्रक्रिया की पुष्टि की है.
सिब्बल: मैं जिस चीज़ को चुनौती दे रहा हूं वह है निष्कासन की सिफ़ारिश.

जस्टिस दत्ता: सुप्रीम कोर्ट के पास रिमूवल की सिफारिश करने का अधिकार है. सुप्रीम कोर्ट के पास सिविल, आपराधिक, विभागीय और अनुशासनात्मक कार्रवाई की शक्ति है.अगर किसी को जज के खिलाफ आपराधिक केस करना है तो SC की इजाजत लेनी होगी.

जस्टिस दत्ताः जस्टिस वर्मा को यह मुद्दा पहले ही उठाना चाहिए था कि उन्हें जिरह की अनुमति नहीं दी गई. 

कपिल सिब्बल: इस मामले में कोई शिकायत नहीं थी. एक समिति गठित होने के बाद पूरी जांच होती है. ⁠फिर निष्कासन होता है. ⁠फिर जिरह वगैरह होती है. ⁠इस जांच में ऐसी कोई प्रक्रिया नहीं है. 

जस्टिस दत्ता: यह एक प्रारंभिक जांच है और जिरह का कोई सवाल ही नहीं उठता 

कपिल सिब्बल: तो फिर आप महाभियोग की सिफारिश कैसे कर सकते हैं?

जस्टिस दीपांकर दत्ता: तो यह मुद्दा तब उठाया जाना चाहिए था कि आपको जिरह से वंचित कर दिया गया. अगर मुख्य न्यायाधीश को लगता है कि इस मामले की रिपोर्ट की जानी चाहिए, तो वह ऐसा करते हैं. इस रिपोर्ट के आधार पर वह ट्रांसफर कर सकते हैं या न्यायिक कार्य वापस ले सकते हैं.  ⁠मुख्य न्यायाधीश की सिफ़ारिश बाध्यकारी नहीं है. ⁠संसद को निर्णय लेने का अधिकार है 

कपिल सिब्बल: पत्र में कहा गया है कि कार्यवाही शुरू करने के लिए सामग्री मौजूद है. महाभियोग प्रस्ताव में भी यही कहा गया है. न्यायमूर्ति वर्मा को भी स्थानांतरण स्वीकार करने या इस्तीफ़ा देने का निर्देश दिया गया था. मुख्य न्यायाधीश ने निष्कासन की पहल की.

जस्टिस दत्ता: यहाँ क्या गैरकानूनी था? वो बिल्कुल अपनी बात पर अड़े रहे और आंतरिक प्रक्रिया का पालन किया 

कपिल सिब्बल: हम इस प्रक्रिया को चुनौती दे रहे हैं. इन-हाउस प्रक्रिया देश का कानून है और यह पिछले 30 वर्षों से लागू है.
 

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