वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में श्रृंगार गौरी और अन्य देवी-देवताओं की नियमित पूजा अर्चना की अनुमति से जुड़े मुकदमे के संबंध में हिंदू पक्ष के वकील ने बुधवार को इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वह नक्शा पेश किया, जिसमें मंदिर को ध्वस्त करने से पहले हिंदू देवी-देवताओं की मौजूदगी का संकेत मिलता है.
इसके अलावा, हिंदू पक्ष के अधिवक्ता ने यह भी कहा कि 1993 तक इन देवी-देवताओं की नियमित पूजा अर्चना की जाती थी, लेकिन तत्कालीन राज्य सरकार द्वारा जारी एक आदेश के तहत यह व्यवस्था रोक दी गई. वर्तमान में साल में एक बार लोगों को पूजा की अनुमति दी जा रही है.
प्रतिवादी हिंदू पक्ष की ओर से पेश हुए अधिवक्ता हरिशंकर जैन ने कहा, “इस स्थिति के आलोक में वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में श्रृंगार गौरी और अन्य देवी-देवताओं की नियमित पूजा-अर्चना की अनुमति देने का हिंदू भक्तों का अनुरोध पूरी तरह से न्यायोचित है.”
बुधवार को बहस पूरी होने के बाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति जेजे मुनीर ने गुरुवार (आठ दिसंबर) को भी इस मामले में सुनवाई जारी रखने का निर्देश दिया.
गौरतलब है कि पांच हिंदू महिलाओं ने वाराणसी के ज्ञानवापी परिसर में श्रृंगार गौरी और अन्य देवी-देवताओं की पूजा अर्चना की अनुमति मांगते हुए वाराणसी की अदालत में वाद दायर किया, जिसकी पोषणीयता पर अंजुमन इंतेजामिया ने आपत्ति की और निचली अदालत ने यह आपत्ति खारिज कर दी. निचली अदालत के आदेश को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय में याचिका दायर की गई.
याचिका खारिज करते हुए वाराणसी के जिला न्यायाधीश ने 12 सितंबर के अपने आदेश में कहा था कि इन पांच हिंदू महिलाओं का वाद, पूजा स्थल अधिनियम, वक्फ कानून और यूपी श्री काशी विश्वनाथ मंदिर अधिनियम से बाधित नहीं होता.
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