गुजरात उच्च न्यायालय ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए पुलिस के रवैये को लेकर फटकार लगाई और कहा कि कुछ लोगों को केवल इसलिए गिरफ्तार किया गया तथा उनके साथ ज्यादती की गई क्योंकि वे एक खास समुदाय के थे. न्यायमूर्ति निखिल करील ने 16 मार्च के अपने आदेश में मनसुख देवीपुजक, उनकी पत्नी और एक अन्य दंपति द्वारा दायर याचिका पर राज्य सरकार से यह भी पूछा कि हिरासत में यातना के इस मामले के पीड़ितों को इतना मुआवजा क्यों नहीं दिया जाना चाहिए जो अन्य मामलों के लिए मिसाल हो.
चार याचिकाकर्ताओं में से दो को धंधुका पुलिस ने गिरफ्तार किया और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 328 (जहर से नुकसान पहुंचाना) और 394 (डकैती करते समय चोट पहुंचाना) के तहत एक मामले में झूठा फंसाया. बाद में, निचली अदालत द्वारा उन्हें इसलिए रिहा कर दिया गया क्या उनके खिलाफ एकमात्र सबूत उनका कबूलनामा था.
दो अन्य याचिकाकर्ताओं को एक अन्य पुलिस दल ने आईपीसी की धारा 302 (हत्या) के तहत गिरफ्तार किया था, लेकिन जांच अधिकारी ने मजिस्ट्रेट के समक्ष कहा कि याचिकाकर्ताओं ने पुलिस द्वारा अत्यधिक यातना के कारण कथित अपराधों को स्वीकार किया.
अदालत ने कहा, ‘‘ऐसा प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ताओं को एक विशेष समुदाय में अपने जन्म के कारण पीड़ित होना पड़ा. ऐसा लगता है कि पुलिस अधिकारी इस तथ्य से प्रभावित थे कि याचिकाकर्ता एक विशेष समुदाय से हैं.''
अदालत ने कहा कि वह इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं कर सकती कि याचिकाकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया, पुलिस ने पीटा, बाद में निचली अदालत ने उन्हें बरी कर दिया.
अदालत ने राज्य के गृह विभाग के उप सचिव स्तर के एक अधिकारी को एक हलफनामा दायर करने का आदेश दिया कि सरकार को उन्हें अनुकरणीय मुआवजा देने का निर्देश क्यों नहीं दिया जाना चाहिए.
अदालत ने अहमदाबाद रेंज के पुलिस महानिरीक्षक को याचिकाकर्ताओं की गिरफ्तारी और उनका नाम अन्य अज्ञात अपराधों में शामिल करने के कारणों की जांच करने तथा एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया कि क्या पुलिस अधिकारियों ने ज्यादती की थी.
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