कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की मुश्किलें बढ़ गई हैं. गुजरात हाईकोर्ट ने गुरुवार को मोदी सरनेम (Modi Surname Case) वाले मानहानि केस में राहुल गांधी की 2 साल की सजा पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है. अदालत ने कहा, "इस केस के अलावा राहुल गांधी (Rahul Gandhi Conviction) पर 10 आपराधिक मामले पेंडिंग में हैं. ऐसे में हाईकोर्ट को सूरत कोर्ट के फैसले पर दखल देने की जरूरत नहीं है."
वहीं, राहुल गांधी गुजरात हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करेंगे. अगर शीर्ष अदालत से भी राहुल गांधी को राहत नहीं मिलती है, तो उनकी सांसदी चली जाएगी. ऐसा होने पर वो 8 साल तक चुनाव नहीं लड़ पाएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने 11 जुलाई 2013 को अपने फैसले में कहा था कि कोई भी सांसद या विधायक निचली अदालत में दोषी करार दिए जाने की तारीख से ही संसद या विधानसभा की सदस्यता के लिए अयोग्य घोषित हो जाएगा.
राहुल गांधी को मानहानि केस में 23 मार्च को सजा सुनाई गई थी. उनकी संसद सदस्यता 24 मार्च को दोपहर करीब 2.30 बजे रद्द कर दी गई. वह केरल के वायनाड से लोकसभा सदस्य थे. लोकसभा सचिवालय ने पत्र जारी कर इस बात की जानकारी दी थी। लोकसभा की वेबसाइट से भी राहुल का नाम हटा दिया गया है.
हाईकोर्ट ने क्या कहा?
मानहानि केस में राहुल गांधी की सजा को बरकरार रखते हुए गुजरात हाईकोर्ट ने कहा, "राहुल गांधी भारत की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं. उनकी बड़ी उपस्थिति है और वो भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में एक प्रमुख व्यक्ति हैं. उनके के हर कथन को स्वचालित रूप से बड़े पैमाने पर प्रचार मिलता है. आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक मीडिया परिवेश में, यह बड़े पैमाने पर प्रचार बहुत तेज़ होता है. ऐसे में इसे नियंत्रित करना मुश्किल है. ऐसी बातें वेबसाइट लिंक, वीडियो के रूप में एक स्थायी छाप छोड़ती है.
राजनीति में शुचिता होना अब समय की मांग
हाईकोर्ट ने आगे कहा, "राजनीति में शुचिता होना अब समय की मांग है. जन प्रतिनिधियों को स्पष्ट पृष्ठभूमि वाला व्यक्ति होना चाहिए. इस मामले में निम्नलिखित अतिरिक्त प्रतिकारी कारक याचिकाकर्ता के खिलाफ काम करते हैं, जो वर्तमान तथ्यों और परिस्थितियों में अपराध की गंभीरता को बढ़ाते हैं:-
* मानहानि सार्वजनिक चरित्र का अपराध है, जिसमें प्रतिष्ठा और गरिमा का मौलिक अधिकार शामिल है.
* याचिकाकर्ता की सजा में आबादी के एक बड़े हिस्से की गरिमा और प्रतिष्ठा के पोषित मौलिक अधिकार की हानि शामिल है.
* याचिकाकर्ता की सार्वजनिक स्थिति और यह तथ्य कि याचिकाकर्ता का कोई भी कथन बड़े पैमाने पर प्रकाशन को आकर्षित करता है, शिकायतकर्ता और संबंधित पहचाने जाने योग्य वर्ग की प्रतिष्ठा को गंभीर रूप से कमजोर और नुकसान पहुंचाता है.
बड़े वर्ग को प्रभावित करने वाला एक गंभीर मामला
राहुल गांधी की सजा पर गुजरात हाईकोर्ट ने कहा, "ये दलील की अधिकतम सजा दो साल की है, याचिकाकर्ता की सहायता के लिए नहीं होगी. वर्तमान सजा समाज के एक बड़े वर्ग को प्रभावित करने वाला एक गंभीर मामला है. इस न्यायालय को इसे गंभीरता और महत्व के साथ देखने की जरूरत है."
आवेदक के खिलाफ 10 से ज्यादा केस पेंडिंग
गुजरात हाईकोर्ट ने कहा, "आवेदक बिल्कुल गैर-मौजूद आधार पर अपनी दोषसिद्धि पर रोक लगाने की कोशिश कर रहा है. यह कानून का सुस्थापित सिद्धांत है कि दोषसिद्धि पर रोक कोई नियम नहीं है, बल्कि एक अपवाद है. जिसका सहारा दुर्लभ मामलों में लिया जाना चाहिए. अयोग्यता केवल एमपी/एमएलए तक सीमित नहीं है. इसके अलावा, आवेदक के खिलाफ 10 से अधिक आपराधिक मामले लंबित हैं
अदालत ने कहा, "रिकॉर्ड से यह भी पता चलता है कि उक्त शिकायत दर्ज होने के बाद वर्तमान आरोपी के खिलाफ अन्य शिकायतें दर्ज की गईं, जिनमें से एक शिकायत वीर सावरकर के पोते द्वारा पुणे के संबंधित न्यायालय में दायर की गई थी. जब आरोपी ने कैंब्रिज में वीर सावरकर के खिलाफ मानहानि के शब्दों का इस्तेमाल किया था."
आवेदक के साथ नहीं होगा अन्याय
कोर्ट ने कहा, "उक्त परिस्थितियों की पृष्ठभूमि में, दोषसिद्धि पर रोक लगाने से इनकार करने से किसी भी तरह से आवेदक के साथ अन्याय नहीं होगा. उपरोक्त चर्चाओं के मद्देनजर, मेरी सुविचारित राय में, मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में आवेदक की दोषसिद्धि पर रोक लगाने का कोई उचित आधार नहीं है. अपीलीय अदालत द्वारा पारित आदेश उचित, सही और कानूनी है और इसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है. हालांकि, संबंधित जिला न्यायाधीश से यह अनुरोध किया जाता है कि वे आपराधिक अपील को उसके गुण-दोष के आधार पर और कानून के अनुसार यथासंभव शीघ्रता से तय करें."
राहुल गांधी ने किया नैतिक भ्रष्टाचार
गुजरात हाईकोर्ट ने कहा, "भले ही राहुल गांधी का राजनीतिक भाषण का दावा स्वीकार कर लिया जाए, फिर भी राहुल ने चुनाव के नतीजे को प्रभावित करने के लिए गलत बयान देकर 'नैतिक भ्रष्टाचार' किया है." हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि अभियुक्त ने जाहिर तौर पर प्रधानमंत्री के राजनीतिक दल से संबंधित और संबंधित निर्वाचन क्षेत्र के उम्मीदवार के परिणाम को प्रभावित करने के इरादे से सनसनी फैलाने के लिए उनका सरनेम जोड़ने का सुझाव दिया.
अदालत ने कहा कि आरोपी यहीं नहीं रुका, बल्कि उन्होंने आरोप लगाया कि ''सारे चोरों के नाम मोदी ही क्यों है”. इस प्रकार, वर्तमान मामला निश्चित रूप से अपराध की गंभीरता की श्रेणी में आता है.
ये भी पढ़ें:-
"अफवाह फैलाई जा रही है...", राहुल और सोनिया गांधी से मुलाकात की खबरों को पंकजा मुंडे ने किया खारिज
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं